थैलेसीमिया से 50 हजार बच्चे इस बीमारी से ग्रसित :डा.निशांत

थैलेसीमिया पीड़ित से नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचें :प्रो. सुजाता देव

थैलेसीमिया से 50 हजार बच्चे इस बीमारी से ग्रसित :डा.निशांत

लखनऊ। थैलेसीमिया एक स्थायी आनुवांशिक रक्त विकार है जिसमें लाल रक्त कणों में हीमोग्लोबिन नहीं बनता है और शरीर में एनीमिया यानि खून की कमी हो जाती है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा.निशांत वर्मा बताते हैं कि यह बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है। इसमें आयरन व ग्लोबिन प्रोटीन से मिलकर बनता है। ग्लोबिन दो तरह का– अल्फ़ा व बीटा ग्लोबिन। थैलीसीमिया के रोगियों में ग्लोबीन प्रोटीन या तो बहुत कम बनता है या नहीं बनता है। जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं और शरीर को आक्सीजन नहीं मिल पाती है व  व्यक्ति को बार-बार खून चढ़ाना पड़ता है। तीन से चार फीसद माता-पिता इसके वाहक हैं और देश में हर साल लगभग 50 हजार बच्चे इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। हर साल 10,000 से 15,000 बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ जन्म लेते हैं।

डा.निशांत बताते हैं कि थैलेसीमिया तीन प्रकार का होता है- मेजर, माइनर और इंटरमीडिएट। मेजर थैलेसीमिया में संक्रमित बच्चे के माता और पिता दोनों के जींस में थैलेसीमिया होता है वहीं माइनर में माता-पिता दोनों में से किसी एक के जींस में और इंटरमीडिएट थैलीसीमिया में मेजर व माइनर थैलीसीमिया दोनों के ही लक्षण दिखते हैं।

थैलीसिमिया से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से चार या छह महीने में नजर आते हैं। कुछ बच्चों में पांच से 10 साल के मध्य दिखाई देते हैं। त्वचा, आंखें, जीभ व नाखून पीले पड़ने लगते हैं। प्लीहा और यकृत बढ़ने लगते हैं, आंतों में विषमता आ जाती है, दांतों को उगने में काफी कठिनाई आती है और बच्चे का विकास रुक जाता है।  

केजीएमयू की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ प्रो. सुजाता देव बताती हैं कि महिला या पुरुष यदि कोई भी एक या दोनों ही थैलेसीमिया से पीड़ित है तो महिला को  गर्भधारण करने में समस्या  आ सकती है। पुरुषों में थैलीसीमिया के कारण इनफर्टिलिटी की समस्या होती है क्योंकि जननांगों में आयरन एकत्र हो जाता है। रोग से बचने के उपाय हैं कि शादी से पहले लड़के व लड़की के खून की जांच करवाएं । नजदीकी रिश्ते में विवाह करने से बचें। गर्भधारण से चार महीने के अन्दर भ्रूण की जांच करवायें।

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थैलेसीमिया ग्रसित गर्भवती की सामान्यतः हीमोग्लोबिन, थायरॉयड, लिवर,  शुगर की जांच,  एचबीए-1 सी, हृदय की जांच तो की जाती है इसके साथ ही  भ्रूण के विकास की निगरानी के लिए  हर माह अल्ट्रा साउंड किया जाता है और गर्भवती की स्थिति को देखते हुए अन्य जॉचें भी की जाती है। गर्भवती को फॉलिक एसिड की गोलियों का सेवन करने की सलाह दी जाती है जो कि भ्रूण के मस्तिष्क और स्पाइन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके साथ ही हरी सब्जियां, खट्टे फल, चुकंदर, नारियल का तेल, नारियल पानी,केले,फलियां,और खूब मात्रा में पानी लेना चाहिए।

उन्होंने बताया थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित गर्भवती को खून चढ़ाया जाता है ।इसलिए  चिकित्सक की सलाह के बगैर  उसे आयरन सप्लीमेंट नहीं लेना चाहिए । थैलेसीमिया मेजर पीड़ित गर्भवती को मांसाहारी खाद्य पदार्थ और हरी सब्जियों का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें आयरन की अधिकता होती है।

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