भाजपा का नारा अबकी बार 400 पार! तो फिर जिले में स्वास्थ्य सुविधा क्यों लाचार : डाॅ. बीपी त्यागी
गाजियाबाद। ( तरूणमित्र )
हालातों को समझिए, ऐसी व्यवस्था पर क्या आपको तरस नहीं आता, अगर अभी भी न जागे तो फिर कुछ बचेगा नहीं, मतलब साफ है कि अगर भाजपा को वोट दिया तो देश के हालात बद से बदतर होने से कोई नहीं रोक सकता, इन सब बातों का जिक्र करते हुए राष्ट्रवादी जनसत्ता दल के चिकित्सा प्रकोष्ठ के प्रभारी और महासचिव डाॅ. बीपी त्यागी ने कहा कि बीजेपी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में वीके सिंह की जगह अतुल गर्ग पर दांव लगाया है। उन्हें गाजियाबाद लोकसभा सीट से टिकट दिया गया है। डाॅक्टर त्यागी ने कहा कि अब जरा सोचिये कि इस सीट से विजय पताका फहराना गर्ग के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। गाजियाबाद से विधायक अतुल गर्ग के सामने सिर्फ एक चुनौती नहीं बल्कि चुनौतियों का एक बड़ा पहाड़ है। उनके सामने जातीय समीकरण से लेकर पार्टी के नेताओं का विरोध और स्थानीय लोगों की नाराजगी जैसी कई मुसीबतें हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जब गर्ग और उनके बेटे को स्थानीय लोगों का विरोध भी झेलना पड़ा है हालांकि, गाजियाबाद सीट पर जीत हमेशा से बीजेपी के लिए आसान रही है लेकिन इस बार जीत की ये राह अतुल गर्ग के लिए आसान नहीं होगी। गाजियाबाद की सबसे बड़ी टाउनशिप में से एक क्रॉसिंग रिपब्लिक में कई बैठकों से गर्ग और उनके बेटे को बाहर का रास्ता भी दिखाया गया था। यहां अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों का कहना है कि अतुल गर्ग ने विधायक के अपने कार्यकाल के दौरान बहुमंजिला सोसाइटियों की भलाई के लिए कभी कोई काम किया ही नहीं। इसके अलावा राज्य स्वास्थ्य मंत्री होते हुए भी अनदेखी की भावी सांसद ने किसी भी अस्पताल की सूरत बदलने में रुचि नहीं दिखाई अब अस्पताल का विकास तो हुआ नहीं लेकिन नेता जी की संपत्ति में जरूर विकास हुआ है अब आपको बताते हैं कैसे दरअसल 2022 में निर्वाचन आयोग को दिए गए हलफनामें के मुताबिक 2017 से लेकर 2022 के बीच अतुल गर्ग की संपत्ति लगभग दोगुनी हो गई है। 2017 में उनके पास जहां 12 करोड़ 19 लाख की संपत्ति थी तो वहीं ये संपत्ति बढ़कर 22 करोड़ 18 लाख हो गई। नामांकन पत्र में 66 वर्षीय विधायक अतुल गर्ग ने बताया कि उनकी बीवी सुधा गर्ग के पास 3 करोड़ 63 लाख की संपत्ति है। इसके अलावा एक रिवाल्वर और एक बंदूक भी है। डाॅ. बीपी त्यागी ने साफगोई के साथ कहा कि जरा सोचिए आखिर इतना ग्रोथ कैसे हुआ। इसी के साथ सबसे बड़ी बात ये है कि नतीजतन शहर की जनता को इलाज के लिए दिल्ली जाना पड़ता है। गाज़ियाबाद के जिला स्तरीय अस्पतालों में मरीजों के लिए न तो डॉक्टर हैं और न दवाई और उससे भी बड़ी बात ये है कि मरीज के लिए न तो बैठने की कोई सुलभ व्यवस्था है। ये तो वही बात हुई मरता क्या न करता इसी मजबूरी में तपती हुई गर्मी में भी मरीजों को अस्पताल के बाहर जमीन पर सोना पड़ रहा है। जहां मरीजों के परिजनों को ठीक होने की यह आस होती है और वह दिन रात एक करके अपने मरीज के लिए अस्पताल परिसर में पशुओं की तरह लेटे हुए हैं जिसकी गवाही ये तस्वीर देने के लिए काफी है, इसलिए सचेत रहें और वोट की चोट से हम सब उबर पाएंगे, अन्यथा कोई विकल्प नहीं बचा, चूंकि देश की दुर्दशा को बचाने का काम हमारा एक-एक वोट करेगा।
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