उम्मीद की किरण

उम्मीद की किरण

मंगलवार को आप नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की रिहाई और उससे पहले दिल्ली क़े ऐतिहासिक रामलीला मैदान में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की महारैली की सफलता विपक्ष क़े हौसला बढ़ाने क़े लिए अच्छे संकेत हैं। संजय सिंह की रिहाई क़े बाद नेतृत्वविहीन लग रही आम आदमी पार्टी में नई ऊर्जा आ सकती है तो वहीं महारैली में भाजपा विरोधी सभी बड़े नेताओं की मौजूदगी और एकजुटता भी अच्छे संकेत हैं। विपक्ष का मानना है कि यदि तीसरी बार भी मोदी सरकार बनी, तो देश का संविधान बदलने की शुरुआत होगी। शासन और भी एकाधिकारवादी हो जाएगा। लोकतंत्र की आत्मा खत्म कर दी जाएगी। यहां तक आगाह किया गया कि देश में आग लग जाएगी।
 
इनके अलावा अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, शरद पवार, सीताराम येचुरी, भगवंत मान आदि विपक्षी नेताओं ने रोजगार का संकट, बेरोजगारी, महंगाई, किसानों का एमएसपी, जांच एजेंसियों की निरंकुशता और प्रशासन आदि के साझा मुद्दे उठाकर विपक्ष क़े लोकसभा चुनाव अभियान को गति दी। वास्तव में तमाम नाउम्मीदी क़े बीच विपक्ष की साझा रैली कई मायनों में असर छोड़ गई। एक बार फिर ‘इंडिया’ बिखरने के बजाय लामबंद होता दिखाई दिया। आपसी विरोधाभास को भी उन्होंने स्वीकार किया। बेशक ममता बनर्जी और स्टालिन सरीखे मुख्यमंत्री रैली में नहीं आए, लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि भेजकर स्पष्ट किया कि वे आज भी ‘इंडिया’ के घटक हैं।
 
विपक्षी नेताओं ने चुनावों को ‘लोकतंत्र-संविधान बचाने’ की सामूहिक कोशिश चित्रित किया। एक तरफ़ विपक्ष था तो थोड़े ही फ़ासले पर मेरठ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 1857 की प्रथम क्रांति की मूलभूमि से चुनाव के दूसरे हिस्से का आगाज किया। मोदी ने जहाँ ‘भारत-रत्न’ चौधरी चरण सिंह के ‘गौरव समारोह’ के जरिए पश्चिमी उप्र के किसानों, जाटों और ‘मसीहा’ के भक्त-समर्थकों को साधने की कोशिश की तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चुनावी लड़ाई की शुरुआत की। उन्होंने जनता से वादा किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी और जनता का जो पैसा लूटा गया है, वह उसे लौटा रहे हैं। अभी तक 17,000 करोड़ रुपए से अधिक लोगों को वापस किए जा चुके है। इन दोनों जनसभाओं क़े बाद यह स्पष्ट है कि अगर एका हो तो 2024 का लोकसभा चुनाव उतना एकतरफ़ा नहीं, जितना एकतरफा आम चुनाव माना जा रहा है।
 
अनेक जगह मोदी सरकार क़े खिलाफ अंडर करंट माना जा रहा है। उप्र और राजस्थान सरीखे राज्यों में जिस तरह एकतरफा मोदी लहर आंकी जा रही थी, वह स्थिति नहीं है। बेशक भाजपा के पक्ष में भ्रष्टाचार से लड़ाई क़े अलावा, अयोध्या राम मंदिर निर्माण, लाभार्थी योजनाएं, महिला वोट बैंक और मोदी सरकार की विभिन्न परियोजनाएं आदि हैं, पर यदि समूचा विपक्ष एक सीट, एक साझा उम्मीदवार की रणनीति को अभी भी अमलीजामा पहना दे और देश भर में सघन अभियान चलाए, तो मोदी और भाजपा-एनडीए की ‘दुर्जेय’ छवि को तोड़ा जा सकता है।विपक्षी दलों को आपस में भाजपा-विरोधी वोटों को ध्रुवकृत करने की रणनीति मजबूत करने की आवश्यकता है। बेशक 2024 में भाजपा को परास्त करना बहुत मुश्किल काम है, लेकिन भविष्य क़े लिए यदि विपक्ष मोदी सरकार को 250- 300 सीटों तक रोक सका तो यह भाजपा क़े मनोबल को तोड़ने क़े लिए काफी है।
 
 
 
 
 
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