इमरजेंसी..!!!! अगर नहीं लगी होती..!!!

इमरजेंसी..!!!! अगर नहीं लगी होती..!!!

(पवन सिंह)
 
2014 से अब तक कुछ हुआ हो या न हुआ हो लेकिन एक बात तो हुई है कि संघ और उसके अनुवांशिक संगठनों द्वारा गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह से लेकर गणेश जी को दूध और नदी नहाकर मोक्ष की प्राप्तियों के जो भी "कट-पेस्ट विचार" विगत 78 सालों में पूरी एक पीढ़ी के भीतर ठूंसे गये थे, वो सब पोपले साबित हुए..!! तथ्यात्मक बात करना और भविष्य निर्माण पर बात करना, कभी संघ को नहीं भाया..!!! शायद ही आपने कभी सुना हो कि संघ और उसके संगठनों ने बेहतरीन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, ज्ञान, विज्ञान और प्रगतिशीलता से लेकर पर्यावरण के गंभीर हो चले विषयों पर कोई जनांदोलन खड़ा किया हो? इनसे धर्म और पता नहीं "कौन सी संस्कृति" से आगे कभी बात नहीं हुई। कुछ लोगों का भविष्य ही हर साल बे-सिर-पैर के मुद्दे उखाड़कर पीढ़ियों को बरगलाना, सामाजिक समरसता को समाप्त करना और धार्मिक उन्माद को पैदा करते हुए लोगों को पाखंड के काला सागर में फेंकते रहना यही उद्देश्य रहा है। 

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि जिस देश में साइंस, टेक्नोलॉजी, शानदार सरकारी लैबोरेटरीज, रिसर्च सेंटरों और चीन द्वारा तबाह कर दिये गये मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरों को बचाने की बात होनी चाहिए थी, वह "अतीत दिवस" मनाते हैं। इनसे वर्तमान और भविष्य पर सवाल करके देखिए तो जरा आपको सीधे 1947 तक खींच ले जायेंगे!!! "इनका झूठ हर पल मजबूत" और इतना भयावह है कि ये आपसे "एक वृक्ष मां के नाम" पर लगाने को कहेंगे और दूसरी ओर हजारों हेक्टेयर जंगल साफ करवा देंगे। ये इतने खतरनाक हैं कि ये आपको राम के पदचिन्हों पर डाक्यूमेंट्री दिखायेंगे और दंडकारण्य क्षेत्र के ही जंगल निपटा देंगे...! 

आज ये फिर एक लाश यानी "1975 की इमरजेंसी" निकाल कर लाये हैं..!!! हर साल लाते हैं और आगे भी लायेंगे। कांग्रेसियों का लंबे समय तक सत्ता शासन रहा लेकिन वो कभी आम जनता के बीच अपने विरोध के खिलाफ तथ्यों को लेकर सामने नहीं आए..!! वह यह बता ही नहीं पाए कि देश में यदि 25 जून, 1975 को इमरजेंसी न लगती तो CIA एक समूचे राष्ट्र को ही निपटाने की तैयारी कर चुका था। बात शुरू करते हैं पूज्य होमी जहांगीर भाभा से ...यह महान आत्मा चाहती थी कि भारत 1980 तक एक स्वतंत्र परमाणु शक्ति बन कर उभरे। दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि 

दिनांक 24 जनवरी, 1966 को एक विमान दुर्घटना हुई  और तमाम रहस्यों में उलझी हुई उनकी मृत्यु हो गई...!! यह ऐसी विमान दुर्घटना थी जिसका न तो मलबा मिला, न कोई शव मिला, न विमान का ब्लैक बॉक्स मिला..!! इसके बाद पता चला कि इस दुर्घटना में अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA का हाथ था। वही अमेरिका जिसके लिए तथाकथित राष्ट्रवादी लोग अपना अंगौछा बिछाए रहते हैं..!!! इस "हाथ" के होने की पुष्टि भी हो गई जब CIA के एक पूर्व अधिकारी "रॉबर्ट क्रॉली" ने स्वीकार किया कि- “हमें भाभा को रोकना ही पड़ा क्योंकि वो परमाणु बम बनाने के बहुत करीब थे।”

अमेरिका भारत की औद्योगिक, स्पेस साइंस, चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति का कभी भी पोषक नहीं रहा...!! आज भी इससे खतरनाक और धूर्त देश दुनिया में दूसरा नहीं है। सीआईए की इस हरकत से भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम बुरी तरह से प्रभावित हो गया। 
लेकिन तत्कालीन सत्ता नेतृत्व नहीं टूटा और न उसकी हिम्मत टूटी...विक्रम साराभाई को परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, और उन्होंने भाभा के अधूरे कार्यों को पूरा किया । पूज्य भाभा थी के निधन के बाद, परमाणु परीक्षणों में कुछ देरी हुई, लेकिन 1974 में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया गया, जो भाभा के दृष्टिकोण का परिणाम था। 

आगे बढ़ते हैं, होमी जहांगीर भाभा जी की हत्या के बाद CIA अपने मानस पुत्रों के जरिए भारत में सत्ता परिवर्तन की योजना में लगा। वर्ष, 1970 के दशक में CIA ने भारत में अपने मानस पुत्रों की जबरदस्त मदद की ताकि भारत को युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि विचारों के मैदान में निपटा दिया जाए। यहीं से, CIA का “Soft Regime Change” मॉडल सामने आया...!! तमाम अमेरिकी फाउंडेशनों के जरिए और अमेरिकी गुट के देशों की युनिवर्सिटीज के जरिए भारत के तथाकथित पत्रकारों, बुद्धिजीवियों और छात्रों पर जबरदस्त वैचारिक नियंत्रण का अभियान शुरू हुआ। ...और  अंततः यह एक बहुत बड़े छात्र आंदोलनों के रूप में दिखा और फिर इसे एक जनक्रांति का रूप दे दिया गया। इसके बाद न्यापालिका के जरिए खेल शुरू हुए और कुछ फैसले ऐसे कराये गये जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो।

इसी बीच जेपी आंदोलन शुरू हुआ  और वह वैचारिकता से आगे हिंसक होता चला गया। रेलें रोकी जाने लगीं, सरकारी संपत्तियाँ जलाई जाने लगीं, सरकारी अफसरों को घेरा जाने लगा ...खतरा तब और बढ़ा जब  जे०पी० साहेब  ने सार्वजनिक रूप से सेना और पुलिस से आह्वान किया कि वे सरकार के आदेश को अस्वीकार कर आंदोलन से जुड़े। CIA का रचा खेल अब अंतिम रंग बिखेरने वाला था। इंदिरा गांधी की नजर इस पूरे मामले पर थी...कहते हैं कि सोवियत रूस ने भी इंदिरा गांधी जी को कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं से अवगत करा दिया था और कहा था कि अब समय नहीं है...अगर आपने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो पूरा देश अराजकता की भेंट चढ़ जाएगा। अंततः 25 जून श, 1975 को इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 का प्रयोग किया और आंतरिक संकट के मद्देनजर आपातकाल लागू कर दिया। CIA की पूरी की पूरी योजना एक झटके में निपट गई। मैं इंदिरा गांधी को तब तानाशाह मानता जब वह दोबारा विधिवत लोकसभा का चुनाव न करातीं लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। तानाशाह मतदान नहीं कराया है।  CIA का गेम बजाने के बाद इंदिरा गांधी ने 1977 में आपातकाल हटाया और निष्पक्ष चुनाव कराकर खुद चुनाव हार भी गईं लेकिन इसी देश की जनता ने पांच साल बाद उन्हें दोबारा चुना। 

CIA ने होमी जहांगीर भाभा की कथित हत्या के बाद जिस भारतीय मीडिया, अदालतों और  छात्र आंदोलनों के मोर्चे खोले थे वे सब ध्वस्त हो गये..!!! भारत "अमेरिकी गंध" का शिकार होने से बच गया। इंदिरा गांधी ने असली वाला "आपरेशन सिंदूर" किया और सीआईए को मात दी...!!! वह नहीं झुकीं और न राष्ट्र को  झुकने दिया। इंदिरा गांधी तक भी नहीं झुकीं जब भारत को सख्त नापसंद करने वाला व भारतियों से लगभग घृणा करने वाला अमेरिका पाकिस्तान की ओर से भारत के खिलाफ लड़ने को तैयार हो गया था। 

वैसे मानस पुत्रों का इतिहास रहा है ये मुगलों की बात तो करते हैं लेकिन गोरी चमड़ी वालों का कभी विरोध नहीं करते। अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक शासन किया। 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद, अंग्रेजों ने भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करना शुरू कर दिया, और 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने तक, ब्रिटिश क्राउन का शासन रहा....!! इस बीच हमारे पूर्वजों के साथ कैसी भयावह नृशंसता हुई...कैसे अंग्रेजी हुकूमत ने  आमजनता तक के घरों से जेवर लूटे और विक्टोरिया के खजाने भरे...उस पर ये हमेशा खामोश रहे हैं...!!!

इमरजेंसी की माफी भी मांग ली लेकिन अब क्या है..??? कम से कम "घोषित" तो कर दो कि "अघोषित इमरजेंसी" चालू आहे..!!! फिल्म की कहानी पास कराओ..!!! नौकरियों पर सवाल मत करो? नार्थ ईस्ट और चीनी कब्जे पर खबर न करो.. अर्थव्यवस्था का सच दिखाना मना है..किसी भी तरह की जवाब देही नहीं..? जो चाहो बेच दो... निर्वाचन आयोग के खेल....और ये इमरजेंसी का विरोध करेंगे..

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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