टास सर्वे ने जगाई आस, बच्चों को न करें नजरअंदाज
फाइलेरिया को देखते हुए प्रदेश के 13 जनपदों में हो रहा अहम सर्वे
लखनऊ। प्रदेश के 13 जिलों में फाइलेरिया के प्रसार की स्थिति जानने के लिए ट्रांसमिशन असेसमेंट सर्वे शुरू किया गया है। यह सर्वे पहली बार देश में विकसित क्यू-फैट किट के माध्यम से किया जा रहा है,जो एक महत्वपूर्ण नवाचार है। 6 से 7 वर्ष के बच्चों में संचालित इस सर्वे के माध्यम से यदि कोई बच्चा पॉजिटिव पाया जाता है, तो उसे नियमानुसार 12 दिन तक दवा दी जाएगी,जिसकी निगरानी आशा कार्यकर्ता करेंगी।
राज्य फाइलेरिया अधिकारी डॉ. ए.के. चौधरी ने पांच मई से शुरू हुए टास सर्वे की प्रगति की समीक्षा के दौरान सर्वे से जुड़े सभी स्वास्थ्यकर्मियों को निर्देश दिए हैं कि वे निर्धारित प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करें और इस अभियान को गंभीरता से लें। साथ ही, उन्होंने सर्वे में समुदाय विशेषकर अभिभावकों से सहयोग की अपील की है।
क्योंकि यह सर्वे तीस मई को समाप्त होगा और अगला मौका दो वर्ष बाद ही आएगा। उन्होंने समुदाय में इस अपील को दोहराने को कहा कि अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए अभिभावक सर्वे टीमों का सहयोग करें, क्योंकि यह फाइलेरिया जैसी जटिल बीमारी से निपटने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
डॉ. ए.के. चौधरी, राज्य फाइलेरिया अधिकारी का कहना है “हर बच्चे की जांच व्यक्तिगत रूप से की जाए और उन्हें अनुकूल वातावरण मिले। यदि कोई बच्चा पॉजिटिव मिलता है, तो उसे नियमानुसार दवा दी जाए। हमारा लक्ष्य है कि राज्य को पूरी तरह फाइलेरिया मुक्त घोषित किया जा सके।”
अपर निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं ने बताया की टास सर्वे नियमानुसार तीन चरणों में किया जाता है पहले चरण में पास होने पर (मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) बंद कर दिया जाता है दो साल बाद फिर दूसरा चरण होता है अगर उसमें भी पास होता है तो अगले दो साल बाद फिर तीसरा चरना होता है जब कोई जिला टास सर्वे तीन बार पास कर लेता है तो जनपद को पूरी तरह फाइलेरिया मुक्त माना जाता है।
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