कैट चेयरमैन के अधिकार पर सवाल, केंद्र सरकार से हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
कोर्ट ने कहा, स्थानांतरण अधिकार का इस्तेमाल क्षेत्राधिकार प्राप्त करना नहीं
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण प्रयागराज के क्षेत्राधिकार के मुकदमों की नई दिल्ली प्रधान पीठ के चेयरमैन द्वारा नजदीकी के आधार पर सीधे सुनवाई करने को विधायिका की मंशा के विपरीत करार दिया है। कहा है कि चेयरमैन ने धारा 25 व नियम 6 में मुकदमों के स्थानांतरण के अधिकार की गलत व्याख्या की है। कोर्ट ने कहा प्रदेश के 14 जिले जो लखनऊ पीठ के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, उसको छोड़कर उत्तराखंड सहित पूरे प्रदेश के मुकदमों की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्रयागराज की पीठ को है प्रयागराज पीठ में वकीलों के प्रदर्शन के कारण न्यायिक कार्य न हो पाने और दिल्ली के नजदीकी जिलों के केस दिल्ली की प्रधानपीठ द्वारा सुने जाने के अधिकार पर उठे सवालों का केंद्र सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई की तिथि 17 जुलाई नियत की है। कोर्ट ने याची का तबादला कानपुर से पुणे करने के आदेश व कार्य से अवमुक्त करने के आदेशों पर रोक लगा दी है।
कोर्ट ने कहा धारा 25 चेयरमैन को किसी केस को एक पीठ से दूसरी पीठ में स्थानांतरित करने का अधिकार देता है। किन्तु नजदीकी जिलों के मुकदमों की सीधे सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। यह क्षेत्राधिकार प्राप्त करने जैसा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अजित कुमार की एकलपीठ ने कानपुर चकेरी प्रधान नियंत्रक डिफेंस एकाउंट विभाग में सीनियर एडीटर राजेश प्रताप सिंह की याचिका पर दिया है। याचिका में तबादला व कार्यमुक्त करने के आदेश की वैधता को चुनौती दी गई है। याची का कहना है कि वह आल इंडिया डिफेंस एकाउंट एसोसिएशन का चुना हुआ पदाधिकारी है। सरकारी नीति के अनुसार उसका तबादला नहीं किया जा सकता। याची अधिवक्ता ने कहा ऐसे ही एक मामले में अनुराग शुक्ल के तबादले व कार्य मुक्ति आदेश पर न्यायाधिकरण ने रोक लगा दी है। वकीलों की हड़ताल के कारण न्यायाधिकरण में काम नहीं हो रहा इसलिए हाईकोर्ट में सीधे याचिका दायर की गई है।
न्यायाधिकरण में सुनवाई न होने के कारण याची राहत विहीन हो गया है। इसलिए सीधे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। हालांकि केंद्र सरकार के अधिवक्ता सौमित्र सिंह ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की। कहा गया दिल्ली के आसपास के नजदीकी जिलों के मुकदमे दिल्ली की प्रधानपीठ में सुने जा रहे हैं। चेयरमैन को इसका अधिकार है। प्रयागराज 700 किमी और मेरठ से दिल्ली 100 किमी है। एक मामले में आफिस व कैट लखनऊ में है किंतु वादी दिल्ली में रहता है। जब दिल्ली में चेयरमैन सुन सकते हैं तो सीधे हाईकोर्ट में याचिका क्यों। कोर्ट ने चेयरमैन की कानूनी शक्ति के उपबंधों पर विचार किया और कहा स्थानांतरण अधिकार से क्षेत्राधिकार नहीं लिया जा सकता। और इस सवाल का जवाब मांगा है कि क्या दूरी के आधार पर दूसरे न्यायाधिकरण के क्षेत्राधिकार के किसी मुकदमे की सुनवाई चेयरमैन कर सकते हैं।
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