रामायण पर्यावरण ग्रंथ - डॉ अनिल मेहता
उदयपुर। वाल्मीकि रामायण एक पर्यावरण ग्रंथ है। पेड़ों, पहाड़ों, वनों, नदी, तालाबों, वन्य जीवों का संरक्षण ही सच्चा रामराज्य है। यह विचार रविवार को आयोजित झील संवाद में पर्यावरण चिंतकों ने व्यक्त किये गए। संवाद में पर्यावरणविद डॉ अनिल मेहता ने रामायण में अंकित श्लोक, यावत् स्थास्यन्ति गिरयस्सरितश्च महीतले, तावद्रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति, का उदाहरण देते हुए कहा कि जब तक पहाड़ों व नदियों का धरती पर अस्तित्व रहेगा, रामायण जन-जन में बनी रहेगी। मेहता ने कहा कि यह प्रतिपादित करता है कि पहाड़ों, नदियों, तालाबों को चोट पहुंचाना भारत की सामाजिक, आध्यात्मिक व पर्यावरणीय चेतना का अपमान है। चित्रकूट में राम भरत मिलन का उल्लेख करते हुए मेहता ने कहा कि भरत से राम पूछते हैं कि वन क्षेत्र सुरक्षित नहीं रहने से क्या तुम दुखी हो। यह दर्शाता है कि राम वनों की चिंता करते थे। यही नहीं, वन क्षेत्रों में स्थित आश्रम में जाते वक्त यह ध्यान रखा जाता था कि वृक्ष, जल, भूमि, पर्यावरण को कोई क्षति नहीं पहंुचे।
मेहता ने कहा कि उदयपुर सहित भारत के अन्य झील शहरों को रामसर वेटलैण्ड सिटी बनाने की प्रक्रिया चल रही है। सच्चे अर्थों में यह तभी संभव होगा जब राम अनुसार सरोवर बनेंगे। झील प्रेमी तेज शंकर पालीवाल ने कहा कि रामराज्य उस शुद्ध वायु का उल्लेख है जो मन्द गति से चलती थी और सुखद स्पर्श का अनुभव कराती थी। पालीवाल ने कहा कि रामायण से प्रेरणा लेकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहिए। सामाजिक कार्यकर्ता नंद किशोर शर्मा ने कहा कि वनस्पतियों, पशु-पक्षियों, इंसानों में एक ही प्रकार की चेतना व संवेदना को मानने वाले राम का जीवन पारिस्थितिकी संतुलन का महान संदेश है। युवा पर्यावरण प्रेमी कुशल रावल ने कहा कि उदयपुर की झीलों, नदियों, पहाड़ों, वनों को सुरक्षित संरक्षित करना प्रभु राम की सबसे बड़ी आराधना है। संवाद में रमेश चंद्र राजपूत, द्रुपद सिंह ने रामायण के पर्यावरण संदेश के व्यापक प्रचार प्रसार का आग्रह रखा। इस अवसर पर स्वच्छता श्रमदान कर झील सतह व किनारों से कचरे को हटाया गया।
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