जनजाति लोगों ने संस्कृति और परम्परा को बनाये रखा
एसएनए में आयोजित हुआ जनजातीय भागीदारी उत्सव कार्यक्रम
लखनऊ: उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी गोमतीनगर लखनऊ में चल रहे जनजातीय भागीदारी उत्सव के तहत आयोजित संस्कृति और विकास गोष्ठी कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री विद्या बिन्दु सिंह ने कहा कि जनजाति संस्कृति की विशेष पहचान केवल लोकनृत्य से नहीं है बल्कि उनसे जुड़े हर गतिविधि व क्रियाकलापों से है। जनजातीय समुदाय की सहज जीवन शैली ही इनकी विशेषता है। कहा कि इनके यहां मुखिया का अनुशासन पाया जाना इनकी खास विशेषता है। उन्होंने कहा कि देवी-देवताओं एवं प्रकृति के क्षेत्र में न केवल इनका भय बल्कि विश्वास दोनों ही शामिल हैं। जहां ये एक तरफ प्रकृति को नुकसान करने से डरते हैं वहीं भगवान से उम्मीद करते हैं कि वह दिव्य शक्ति उनकी प्राकृतिक आपदाओं से उनकी रक्षा करेगा।
बिरसा मुण्डा को उनके बलिदान, साहस एवं शौर्य के कारण ही जनजाति के लोग उन्हें भगवान मानकर पूजते हैं। जनजाति लोग घुमक्कड़ जीवन शैली पसंद करते हैं और प्रकृति के बीच में रहना चाहते हैं। डॉ. मालिनी अवस्थी ने कहा कि कोरोना के बाद पूरे विश्व की सोच में बदलाव आया। आज लोग लौटकर पुन: प्रकृति की ओर आ रहे हैं। लोगों ने प्रकृति के महत्व को समझा और अनुभव किया कि प्रकृति हमें आक्सीजन, जल इत्यादि प्रदान करती है। जनजाति समाज की जीवन शैली ही आध्यात्म है।
प्रसन्नता व साझेदारी से कार्य किया जाए तो आध्यात्म को खोजना नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सोनभद्र इलाके में रहने वाली खरवार जनजाति में कर्मा लोकनृत्य प्रसिद्ध है और यह उनकी जीवन शैली का अंग है। जनजाति लोग आज भी अपनी साक-सब्जी स्वयं उगाते हैं। कपड़ा भी स्वयं बुनते हैं और इस प्रकार वे सुखी एवं खुशहाल जीवन व्यतीत करते हैं। जनजाति समाज से दर्जा प्राप्त मंत्री ट्रासजेन्डर वेलफेयर बोर्ड देविका देवेन्द्र एस. मंगलामुखी ने कहा कि संस्कृति का ही भाग है आध्यात्म।
उन्होंने कहा कि सहरिया एवं गरसिया जनजाति राजस्थान, यूपी में प्रमुखता से पाई जाती है। उन्होंने कहा कि दोनों ही जनजातियों में बेटी के जन्म को अच्छा माना जाता है। दोनों ही जनजातियों में बेटी को ब्याहने के जगह पर दामाद को घरजमाई बनाने की परम्परा है। इस जनजाति के लोग अपने हाथोें पर सीता की रसोई इत्यादि गुदवाते है। यह उनका आध्यात्मिक पहलू है। मिशनरियों ने दलित व आदिवासी समाज पर ही अपना प्रभाव जमाना शुरू किया। परन्तु जनजाति लोगों ने अपनी संस्कृति और परम्परा को बनाये रखा।
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