बजरंगी भाईजान बनाम मोदी भाईजान
@ राकेश अचल
आज मुझे देश के वरिष्ठ हिंदी कवि श्री नरेश सक्सेना के बारे में लिखना था । आज उनका जन्मदिन है। वे शतायु हों,लेकिन आज मै लिख रहा हूँ नरेंद्र मोदी जी के बारे में। नरेंद्र मोदीजी नरेश सक्सेना की तरह तो नहीं है किन्तु हैं सबसे अलग। दुर्भाग्य ये है कि वे सबसे अलग होते हुए भी नकल कर रहे हैं हमारे सलीम भाई के लख्तेजिगर सलमान खान की। कहाँ मोदी जी और कहाँ सलमान खान ? सलमान खान को कबीर खान ने 2015 में ' बजरंगी भाईजान ' बनाया था और अब 2024 में भाजपा माननीय मोदी जी को ' मोदी भाईजान ' बना रही है।
माननीय मोदी जी जन नायक हैं और सलमान खान फिल्मों के नायक। दोनों में न कोई मुकाबला है और न बराबरी। हाँ दोनों जनता के लिए काम करते है। जनता का मनोरंजन दोनों का परमधर्म है। आज की राजनीति जब आकंठ धर्म में डूब चुकी है तब जनता का मनोरंजन करने के लिए कोई भी ' भाईजान ' बने कबीले तारीफ़ है। लेकिन यहां ये सवाल बहुत बड़ा है कि हमारे नयनतारे नरेंद्र मोदी को ' मोदी भाईजान' क्यों बनाया जा रहा है और वे इसके लिए राजी क्यों हो गए हैं। वे त्रिपुंडधारी ,रामनामी ओढ़े नरेंद्र भाई मोदी ही अच्छे लगते हैं। वे लोग मोदी जी के शुभचिनतक नहीं हैं जो चंद वोटों के लिए मोदी जी को ' मोदी भाईजान ' बना रहे हैं।
देश में भाई का दर्जा हर समाज में महत्वपूर्ण और स्नेह से पगा होता है ,लेकिन मुस्लिम समाज में भाईजान शब्द में एक अलग तरह की खुशबू होती है। शायद यही खुशबू भी भाजपाइयों को आकर्षित करने लगी है ,क्योंकि किसी भी समाज में सेंध लगाने के पीछे खुशबू एक जरिया है। असल मकसद तो वोट बैंक है ,और कोई भी बैंक हो वहां केवल लाभ के लिए जाया जाता है। हमारे माननीय मोदी जी अयोध्या में रामलला का मंदिर बनवाकर और आगामी 22 जनवरी को वहां रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कराकर हिन्दू हृदय सम्राट तो बन गए हैं ,लेकिन ये आधा सम्राट होना होना है। इस देश में 20 करोड़ अहिन्दू भी रहते है। उनके हृदय का सम्राट बने बिना कोई सम्पूर्ण हृदय सम्राट कैसे हो सकता है ? ये 20 करोड़ वे लोग हैं जो मंदिर नहीं जाते,जो शाकाहारी नहीं हैं ,लेकिन वोटर हैं।
भाजपा का 'शुक्रिया मोदी भाईजान 'अभियान 12 जनवरी से शुरू कर दिया गया है। इसके तहत राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मुस्लिम भागीदारी की रूप रेखा सुनिश्चित करने पर मंथन होगा। लखनऊ से शुरू हो रहे इस अभियान का नारा है ‘ना दूरी है, ना खाई है, मोदी हमारा भाई है...’। हर जिले में इस अभियान के तहत सभाएं होंगी। अभियान में केंद्र सरकार की उन योजनाओं के बारे में बताया जाएगा, जिनसे मुस्लिमों को खास लाभ हुआ है।मोदी भाईजान के जरिये तीन तलाक के मामले पर मुस्लिम महिलाओं को जोड़ा जाएगा और बताया जाएगा कि उसका कितना लाभ उन्हें हुआ। अभियान के जरिये भाजपा ये जानना चाह रही है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मुस्लिमों की क्या भागीदारी हो सकती है ? सबसे बड़ा मंथन इस पर होगा कि मदरसों को प्राण प्रतिष्ठा समारोह से कैसे जोड़ा जाए ? क्योंकि भाजपा की सरकारें अतीत में मदरसों को कुचल चुकी हैं। क्या कुछ मदरसों में दीप जलाने जैसा आयोजन किया जा सकता है या फिर मुस्लिम अपने आवास पर दीप जलाएं, ऐसा कुछ किया जा सके। हालांकि मोर्चा ने अक्षत वितरण में खुद को शामिल नहीं किया है पर इसी तरह का कोई कार्यक्रम करने की महिलाओं की तैयारी है।
कोई माने या न माने या मोदी जी की आलोचना करे किन्तु मै अकेला ऐसा व्यक्ति हों जो मानता हूँ कि मोदी जी एक कामयाब जन नेता और कामयाब ' कामरूप' हैं। वे मुस्लिमों को लुभाने के लिए 'कामरूप' की तरह यति यानि भाईजान बन सकते हैं ,लेकिन मोदी जी को भाईजान बनाने वाले शायद नहीं जानते की 'भावनाओं की सीता' को 'यति' वेश से अपहृत तो किया जा सकता है किन्तु अपना नहीं बनाया जा सकता। भेद खुलते ही सब गुड़-गोबर हो सकता है। देश में मोदी जी से दुखी बहुत से लोग हैं जो मुस्लिम महिलाओं को जाकर बता देंगे कि मोदी जी और उनकी पार्टी ने लोकसभा,राज्य सभा और विधानसभाओं से मुस्लिमों को एक -एककर बाहर कर दिया है। भाजपा न मुसलमान को टिकिट देती है और न उनके मदरसों को चलाना चाहती है।
बहरहाल हम तो चाहते हैं कि इस देश में माननीय मोदी जी बिखरे हुए विपक्ष की मौजदगी का पूरा-पूरा लाभ उठायें और रोज कामरूप बनकर भावनाओं की सीताओं का हरण कर उन्हें अपनी अशोकवाटिका में टिकाएं । ये भी सबका साथ,सबका विकास करने का एक तरीका है। अन्यथा भगवान भी मोदी जी को भाईजान नहीं बना सकता,लेकिन ये मोदी जी की दरियादिली है की वे अपनी पार्टी के उत्थान और आरएसएस के एजेंडे को पूरा करने के लिए कोई भी रूप धरने के लिए तैयार हो जाते हैं। भाईजान का किरदार होता भी बड़ा प्यारा है। मोदी जी बजरंगी भाईजान यानि पवन कुमार चतुर्वेदी की तरह लोकसभा चुनाव के लिए बनाई जा रही इस नई फिल्म में ' मोदी भाईजान ' बनकर कैसे फबेंगे कहने की जरूरत नहीं है । वे हर रूप में फबते है। उन्हें ईश्वर ने इतना ' फोटोजनिक ' चेहरा दिया है की कभी-कभी उनसे ईर्ष्या होने लगती है। मुझे तो लगता है कि कैमरे भी मोदी जी से जलते होंगे।
मेरा अपना अनुभव है कि राजनीति छल-छंद का दूसरा नाम है । राजनीति चाहे कांग्रेस की हो ,भाजपा की हो मायावती जी की हो सबमें छल-छंद निहित हैं ,अन्यथा आज के हालात में कोई मायावती जी की तरह अकेले चुनाव मैदान में उतरने का दुस्साहस कर सकता है ? मायावती आने वाले आम चुनाव में भाजपा से लड़ेंगी,कांग्रेस से लड़ेंगी या समाजवादी पार्टी से लड़ेंगी ,ये कोई नहीं जानता । मुमकिन है कि वे अपने आप से लड़ रहीं हों ,या उन्हें किसी ने इस बात के लिए विवश कर दिया हो कि वे बुआ बनकर नहीं बल्कि 'आपा ' बनकर एकला चलें। हकीकत क्या है ये केवल ऊपर वाला जानता है। इधर मोदी भाईजान बने हैं और उधर दिल्ली में आम आदमी वाले बजरंगी भाईजान बन रहे है। आप यानि अरविंद केजरीवाल सर दिल्ली में अब हर मंगलवार सुंदर कांड का पाठ कर देश की सियासत को सुंदर बनाने की कोशिश करेंगे। मै सभी की कामयाबी के लिए प्रार्थना करता हूँ,क्योंकि सब के सब लोकतंत्र की रक्षा के लिए कामरूप बन रहे है।
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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
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