आलू उत्पादकों को अच्छी एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिये समसामयिक सलाह पर ध्यान दें
ब्रजेश त्रिपाठी
प्रतापगढ़। जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार शर्मा ने जनपद के आलू उत्पादकों (कृषकों) को अच्छी एवं गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिये समसामयिक सलाह जारी करते कहा है कि इन दिनों खेतों की नमी बनाये रखने हेतु सिंचाई कम अंतराल पर जरूर करें क्योंकि पूरे उत्तर भारत में न्यूनतम तापमान बहुत कम रह रहा है। कुछ क्षेत्रों में आलू की शीर्ष पत्तियों पर हल्का पीलापन हो रहा है जोकि मौसम के साफ होने एवं सूर्य की अच्छी धूप पड़ने से स्वतः ठीक हो जायेगा। अन्तिम सिंचाई खुदाई के दस दिन पहले रोक दें। भण्डारण हेतु रखी जाने वाली फसल के पत्ते काटने के दस से पन्द्रह दिन के पश्चात् आलू की त्वचा अच्छी तरह से पकने पर ही खुदाई करें।
जिन किसान भाईयों ने आलू की फसल में अभी तक फफूंदनाशक दवा का पर्णीय छिड़काव नही किया है या जिनकी आलू की फसल में अभी पिछेता झुलसा बीमारी प्रकट नही हुई है, उन सभी किसान भाईयों को यह सलाह दी जाती है कि वे मैन्कोजेब/प्रोपीनेब/क्लोरोथेलोंनीलयुक्त फफूंदनाशक दवा का रोग सुग्राही किस्मों पर 0.2-0.25 प्रतिशत की दर से अर्थात् 2.0-2.5 किलोग्राम दवा 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव तुरन्त करें।साथ ही साथ यह भी सलाह दी जाती है कि जिन खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी हो।
उनमें किसी भी फफूंदनाशक-साईमोक्सेनिल + मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 लीटर पानी) की दर से अथवा फेनोमिडोन+मैन्कोजेब का 3.0 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (1000 लीटर पानी) की दर से अथवा डाईमेथोमाफ 1.0 किग्रा0 +मैन्कोजेब 2.0 किग्रा0 (कुल मिश्रण 3.0 किग्रा0) प्रति हेक्टेयर (1000 लीटर पानी) की दर से छिड़काव करें। फफूंदनाशक को दस दिन के अन्तराल पर दोहराया जा सकता है। लेकिन बीमारी की तीव्रता के आधार पर इस अन्तराल को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। किसान भाईयों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि एक ही फफूंदनाशक का बार-बार छिड़काव न करें। कवकनाशी, कीटनाशी, उर्वरकों एवं अन्य रसायनों के टैंक मिश्रण का छिड़काव किसी विशेषज्ञ की देखभाल में ही करें।
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