जाते साल की पीड़ा, नये बरस की आस में कटती ‘पूस की रात’!
यूपी रोडवेज और परिवहन विभाग में कार्यरत तमाम आउटसोर्सिंग कर्मी हुए बेबस
- चार माह से नहीं मिला वेतन, आउटसोर्स कंडक्टर पहुंचे निगम मुख्यालय
- सुनाया दर्द, कमरा भाड़े पर है, होटल वाला नहीं देगा खाना, कंपनी का किनारा
- बोले रामराज्य में भी नहीं दिख रही उम्मीद की किरण, भगवान ही है मालिक
रवि गुप्ता
लखनऊ। 2023 का यह बीतता हुआ साल वैसे तो तमाम घटनाक्रमों के लिये जाना जायेगा, मगर आगे आने वाले रामराज्य में जिस सत्ता-शासन-प्रशासन और सरकार की परिकल्पना की जा रही है, उसमें तो फिलहाल यूपी रोडवेज और परिवहन विभाग में कार्यरत तमाम आउटसोर्स युवा कर्मी तो नहीं फिट बैठते प्रतीत हो रहे। स्थितियां इन युवा संविदा कर्मियों की यह हो गई है कि अब यह कड़ाके की ठंडक वाली पूस की रात उनके लिये काफी कष्टकारी होती जा रही है।
अभी एक दिन पूर्व ही विभिन्न जनपदीय आरटीओ-एआरटीओ कार्यालयों में डीएल संबंधी कार्यों के लिये काफी समय से लगाये गये युवाओं का एक दल परिवहन विभाग मुख्यालय पहुंचा और अपील की कि भले ही वो किसी निजी एजेंसी द्वारा यहां पर कार्यरत हैं, मगर इस संविदा नौकरी को लेकर आकर्षण होने का एक बड़ा कारण यह भी रहा है और आगे भी रहेगा कि...कार्य करने का स्थान और कार्यालय एक सरकारी विभाग यानी परिवहन विभाग के अधीन होगा जहां पर उनके मानदेय, वेतन और कार्यप्रणाली को लेकर कोई शोषण नहीं होगा। बहरहाल, उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि उनकी कंपनी का टेंडर खत्म हो गया है और आगे जिस कंपनी का टेंडर फाइनल होगा, उसके तहत ही शासनादेश के तहत इस पर कोई विचार किया जायेगा। ऐसे में ये युवा निराश होकर वापस अपने गंतव्य आ गये और नये साल की उम्मीदों को लेकर इधर-उधर देखने लगे।
कुछ ऐसा ही दृश्य शुक्रवार को परिवहन निगम मुख्यालय पर भी दिखा जहां पर तकरीबन 50 की संख्या में आउटसोर्स कंडक्टर अपने वेतन भुगतान को लेकर मुख्यालय पर ही यहां-वहां भागते फिर रहे थे। ऐसे ही मथुरा डिपो में कार्यरत संविदा कंडक्टर ज्ञानप्रकाश और एटा डिपो के जितेंद्र आदि ने बताया कि उन्हें चार माह से वेतन नहीं मिला और अब जबकि कंपनी प्रतिनिधियों से बात की जाती है तो वो कहते हैं मुख्यालय अधिकारियों से मिलो और यहां आने पर किसी से मिलने ही नहीं दिया जाता। बताया कि कुल मिलाकर तमाम रीजनों में तकरीबन साढ़े तीन हजार ऐसे संविदा कंडक्टर हैं जोकि इस विषमकाल से गुजर रहे हैं। सभी ने एकस्वर में कहा कि अब वो आगे कुछ ही दिनों बाद सैकड़ों की संख्या में मांग नहीं पूरा होने पर विरोध प्रदर्शन करेंगे। ऐसे ही परिवहन आयुक्त कार्यालय पर तैनात चतुर्थ श्रेणी के तकरीबन दो दर्जन युवा चपरासियों को भी बीते दो माह से वेतन नहीं मिला।
इनकी मानें तो जब वो कार्यालय नज़ारत से इसको लेकर बात करते हैं तो उन्हें कंपनी से बात करने को कहा जाता है। कुछ ने तो यह भी कहा कि भईया, अब तो कमरे का भाड़ा भी देना है, यही हाल रहा तो होटल जहां खाना खाते हैं वो भी मना कर देगा। कुल मिलाकर इन सभी युवा संविदा कर्मियों का यही मत रहा कि उनके लिये रामराज्य का तो कोई मतलब नहीं रह गया। इन लोगों ने सवाल भी उठाये कि जब सीएम योगी खुद आउटसोर्स नीति को प्रभावी और बेहतर बनाने की बात कहते रहते हैं तो फिर संबंधित विभाग इसको लेकर क्यों नहीं गंभीर होता है...आखिर उनके लिये यह बीतता हुआ साल तो पीड़ादायक है ही और आगे आ रहे नये बरस में भी केवल उम्मीदों की हल्की किरण ही दिख रही, आगे राम ही मालिक हैं।