नली निकालने में मोटापा व छोटी गर्दन जानलेवा: डॉ मोनिका
जबड़े की चोट में फाइबर ऑप्टिक ब्रोंकोस्कोप बचा सकता है जान: डॉ प्रेमराज
लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के एनेस्थीसिया और क्रिटिकल केयर विभाग ने एयरवे मैनेजमेंट फाउंडेशन के सहयोग से एएमएफ एयरवे कार्यशाला का आयोजन किया गया। सांस का रास्ता जान बचाए रखने में सबसे अहम है। दो दिन तक चले मंथन में बहुत सी जानकारी साझा की गई। नई तकनीकों से जान बचाना बहुत हद तक संभव है। चोटिल व्यक्ति में मुंह से नली डालकर सामान्यतः सांस का प्रबंध किया जाता है। किंतु जबड़े की चोट में जबड़ा इस नली का भार नहीं उठा सकता। ऐसी अवस्था में बहुत कारगर है -फ़ाइब्रोऑप्टिक ब्रोंकोस्कोपी,इसमें नाक के सहारे छोटी नली सांस के रास्ते में डाल देते हैं।
इसमें लगा कैमरा पूरा रास्ता देखने में सहायक है। इसको मॉनिटर पर कनेक्ट भी किया जा सकता है। रेशा का बना होने से किसी भी जांच को यह प्रभावित नहीं कर सकता। इसी प्रकार चोटिल रोगियों में वीडियो फेफड़ाओं को सुनने का एक यंत्र की महत्त्वता बताते हुए कहा कि वीडियो से रास्ता साफ दिखता है। तरल पदार्थ, रुकावट या खून के थक्के को आसानी से निकाला जा सकता है। उच्च दबाव जेट वेंटिलेशन से रोगी को शीघ्रता से ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है,जो गंभीर रोगियों के दिमाग को ऑक्सीजन की कमी से होने वाली चोट से बचाता है।
नली डालते हुए जख्म से रक्तस्राव के साथ साथ दांत टूट सकते हैं। कई स्थिति में नली निकालना भी बहुत जटिल होता है, जैसे मोटे लोग, छोटी गर्दन वाले लोग, छोटे बच्चे, जिनमें किसी कारण मुंह या गर्दन की सर्जरी हुई हो (कैंसर रोगी)। ऐसे में नली से निकले पदार्थ सांस के रास्ते में प्रवेश कर जाते हैं। इससे मृत्यु हो जाती है।
इस कार्यशाला का उद्घाटन केजीएमयू की कुलपति प्रो. सोनिया नित्यानंद ने किया। इस मौके पर डीन-अकादमिक्स प्रो. अमिता जैन, एएमएफ के निदेशक डॉ. राकेश कुमार, एनेस्थीसिया विभाग की प्रमुख एवं आयोजन अध्यक्ष डॉ. मोनिका कोहली, आरएमएलआईएमएस, लखनऊ के एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ. पी. के. दास, प्रो. ममता हरजाई और आयोजन सचिव डॉ. प्रेम राज सिंह सहित कई प्रतिष्ठित डॉक्टर और विशेषज्ञ मौजूद रहे।
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