योगासन संगीत दोनों ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण

योगासन संगीत दोनों ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण

लखनऊ। संगीत और योग दोनों ही मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण है और दोनों में गहरा संबंध है। संगीत एक कला है जो भावनाओं को व्यक्त करने और आनंद प्रदान करने का एक शक्तिशाली माध्यम है, वहीं योग एक प्राचीन अभ्यास है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। संगीत और योग दोनों की ही चर्चा हमें हमारे वेदों ,पुराणों और उपनिषदों में देखने को मिलती हैं। महर्षि भरत मुनि और महर्षि पतंजलि यह दो नाम संगीत और योग्य के क्षेत्र में अति पूजनीय है क्योंकि उनके द्वारा बताए गए जो भी सिद्धांत हैं वो अति विशिष्ट हैं।

आगे चलकर यह महसूस किया गया कि दोनों साधना को यदि साथ में जोड़ दिया जाए तो मनुष्य की उन्नति और शीघ्र गति से होने लगेगी तो इसलिए जब इनका साथ लेकर चला गया तो यह परिणाम मिला कि एक निरोगी काया अर्थात् एक स्वस्थ शरीर ,स्वस्थ मन और एक स्वस्थ मस्तिष्क सामने आया वैसे भी कहा जाता है कि किसी भी कार्य को करने में एक निरोगी काया की आवश्यकता होती है और इसके लिए हम यदि योग करें तो हमारे शरीर की जो भी समस्याएं हैं उसका निराकरण हो सकता है जैसे अनुलोम विलोम की जो प्रक्रिया होती है वह हमारे श्वास पर नियंत्रण करती है।

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संस्कृत में सांस अंदर लेने को 'पूरक 'कहा जाता है और बाहर छोड़ने को 'रेचक' कहा जाता है सांस अंदर लेने और बाहर छोड़ने के बीच सांस रोक के रखना से श्वास लंबी हो जाती है इस रोक के रखने की प्रक्रिया को 'कुंभक' कहा जाता है। अनुलोम विलोम की प्रक्रिया हमारे कान,हमारी नाक सब पर प्रभाव डालती है और जो हमारे गायन का क्षेत्र है यदि उसमें भी इस प्रकार के आसन किये जाए तो बहुत लाभकारी सिद्ध होगा और जब शरीर स्वस्थ होगा तो एकाग्रता  अपने आप आ जाएगी जो कि हमारे संगीत के लिए अति आवश्यक है ।संगीत के कलाकार, विद्यार्थी, शिक्षक इत्यादि को विशेष कर योग अपनाना चाहिए ।

संगीत में कहते हैं कि बिल्कुल सीधे बैठकर गाइए और योग में भी जब हम पद्मासन पर बैठते हैं तो सीधे ही बैठते हैं, हमारे रीड की हड्डी सीधी होती है ।वादन के समय भी कुछ विशिष्ट आसान हैं जिस पर बैठकर यदि वादक अपना वादन करें तो उसे आराम मिलेगा।रागों के चक्रों का प्रभाव..... भारतीय संगीत के रागों का संबंध मानव शरीर के चक्र से जोड़ा गया है ।

मूलाधार चक्र: राग भूपाली या राग देश जो स्थिरता और सुरक्षा का अनुभव कराते हैं 
अनाहत चक्र: राग यमन या राग केदार जो प्रेम और करुणा को जागृत करते हैं 
सहसवान चक्र: राग दरबारी कान्हड़ा जो आत्मज्ञान और शांति का अनुभव कराता है। योगाभ्यास के दौरान इन रागों को सुनने से चक्र सक्रिय होते हैं, शरीर में ऊर्जा का प्रभाव बेहतर होता है।
 अत: मेरा यह स्पष्ट रूप से मानना है कि भारतीय संगीत और योग का मेल न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है बल्कि यह आत्मा  को भी उन्नति की ओर ले जाता है।

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