वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम सुनवाई पूरी

कोर्ट ने याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

 वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम सुनवाई पूरी

  • सरकार यह तय नहीं कर सकती कि कौन से मुद्दे उठाए जा सकते
  • सिब्बल बोले- 200 साल पुराने कब्रिस्तान भी छिन जाएंगे
  • सरकार अपनी गलती का फायदा नहीं उठा सकती

नई दिल्ली। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने वक्फ संशोधन कानून पर तीन दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन कानून में वक्फ करने के लिए 5 साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम के प्रावधान पर दलील रखी। कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर वकील कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताई कि किसी भी हिंदू धर्मस्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है। अगर आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं, तो यहां क्यों नहीं।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ संशोधन कानून में वक्फ करने के लिए 5 साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम के प्रावधान पर दलील रखते हुए कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी, तलाक, वसीयत आदि के लिए खुद को मुस्लिम साबित करना होता है। इस कानून में अंतर बस इतना है कि इसमें कम से कम पांच साल की समय सीमा तय की गई है। वक्फ करने के लिए 5 साल से इस्लाम प्रैक्टिस करने की शर्त रखी गई है। मेहता ने आदिवासी इलाकों में बढ़ते वक्फ सम्पत्तियों को लेकर कहा कि अगर कोई आम आदमी आदिवासी इलाके में जमीन खरीदना चाहता है तो ऐसा नहीं कर सकता है, क्योंकि राज्य का कानून इसकी इजाजत नहीं देता।

लेकिन अगर वही व्यक्ति वक्फ करना चाहे तो वक्फ करने के बाद उसका संरक्षण करने वाला जो चाहे कर सकता है। यह व्यवस्था बहुत खतरनाक है जिसपर रोक लगाए जाने की जरूरत है। मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत वक्फ अपने आप में राज्य है। ऐसे में यह दलील नहीं दी जा सकती कि इसमें किसी एक सम्प्रदाय के लोग शामिल होंगे। वक्फ संशोधन कानून के समर्थन में राजस्थान सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि वक्फ बाय यूजर इस्लाम का मुख्य अंग नहीं है। इससे पहले 21 मई को सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा था कि वक्फ एक इस्लामिक अवधारणा है, इस पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

मेहता ने कहा था कि हमने वक्फ को लेकर 2023 में कुछ कमियों को नोटिस किया था। उसे दूर करने के लिए कानून लेकर आए। यहां कुछ याचिकाकर्ता आए हैं। ये कुछ लोग मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। मेहता ने कहा था कि ये कानून संयुक्त संसदीय कमेटी की ओर से व्यापक विचार-विमर्श कर पारित किया गया। इससे पहले 20 मई को सुनवाई के दौरान वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि वक्फ काउंसिल्स में गैर-मुस्लिमों को सदस्य बनाना धर्मनिरपेक्षता नहीं है। हमारी आपत्ति भी यही है कि किसी भी हिंदू धर्म स्थान की बंदोबस्ती में एक भी व्यक्ति गैर हिंदू नहीं है। अगर आप अन्य धार्मिक समुदाय को विशेषाधिकार दे रहे हैं तो यहां क्यों नहीं।

सिब्बल ने कहा था कि अगर आप 14 राज्यों के वक्फ बोर्ड को देखें तो सभी सदस्य मनोनीत हैं, कोई चुनाव नहीं होता। जिस तरह शैक्षणिक संस्थानों को प्रबंधन का अधिकार है, उसी तरह धार्मिक संस्थानों को भी अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है। वक्फ का निर्माण ही धर्मनिरपेक्ष कार्य नहीं है, यह मुसलमानों की संपत्ति है जिसे वे ईश्वर को समर्पित कर देते हैं। 200 साल पुराने कब्रिस्तान भी छिन जाएंगे।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि ये संशोधन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाबी हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा है कि वक्फ कानून में संशोधन संपत्तियों के धर्मनिरपेक्ष प्रबंधन के लिए है। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि वक्फ संशोधन कानून किसी भी तरह से संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन नहीं करता है। ये संशोधन सरकार के कार्यक्षेत्र के तहत किया गया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि जो संपत्तियां पहले से वक्फ के रुप में रजिस्टर्ड हैं उन्हें बाय यूजर के प्रावधान से कोई असर नहीं पड़ेगा। ये गलत नैरेटिव फैलाया जा रहा है कि इससे सदियों पुराने वक्फ संपत्तियों पर असर पड़ेगा।

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