श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के महानायक अशोक सिंहल
लखनऊ। अयोध्या में भगवान राम की जन्मभूमि पर रामलला का भव्य मंदिर आकार ले रहा है। आगामी 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं पूज्य संतों की उपस्थिति में रामलला भव्य मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होंगे। यह सुअवसर 496 वर्ष बाद आया है। राम जन्मभूमि के लिए हिंदू समाज ने अनवरत संघर्ष किया। इसकी प्राप्ति के लिए असंख्य राम भक्तों ने अपना बलिदान दिया। आज जब जन्मभूमि पर भव्य मंदिर बन रहा है तो इस पुनीत अवसर पर श्रीराम जन्मभूमि की 77वीं लड़ाई के अग्रदूत दिवंगत अशोक सिंहल की याद आना स्वाभाविक ही है। राम मंदिर आंदोलन इस सहस्राब्दि का सबसे बड़ा जन आंदोलन था।
राम मंदिर आंदोलन से जन-जन को जोड़ने का काम अशोक सिंहल ने किया। वह कुशल संगठक के साथ-साथ शौर्य के प्रतिमान थे। अशोक सिंहल की सिंह गर्जना रामभक्तों में जोश व उत्साह का संचार करती थी तो वहीं विरोधियों के मन में भय का संचार करने वाली होती थी।विश्व हिन्दू परिषद में आने से पहले वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रांत के प्रांत प्रचारक थे। मीनाक्षीपुरम में सामूहिक धर्मान्तरण की घटना के बाद देश में हिन्दू जन जागरण की महती आवश्यकता थी। ऐसे समय में अशोक सिंहल को विश्व हिन्दू परिषद में भेजा गया। वह अपने जीवनमूल्यों व मानबिंदुओं के प्रति श्रद्धावान आग्रही और आक्रामक हिन्दू शक्ति खड़ा करने के अभियान में जुटे।
श्री रामजन्मभूमि मंदिर को तोड़कर निर्मित राष्ट्रीय अपमान के प्रतीक ढांचे को हटाने के लिए कारेसवा उनके नेतृत्व में ही हुई। राम मंदिर आंदोलन को तत्कालीन केंद्र व प्रदेश की सरकारों ने अड़ंगा डालने का सदैव काम किया लेकिन अशोक सिंहल ने कार्यकर्ताओं के मन में कभी निराशा का भाव आने नहीं दिया। आज वह सशरीर हमारे बीच विद्यमान नहीं हैं फिर भी उनकी प्रेरणा आज काम कर रही है। उनके नेतृत्व में हर विपरीत परिस्थितियों में राम मंदिर आंदोलन को विजय प्राप्त हुई। प्रयाग कुंभ के अवसर पर विहिप कार्यालय केसर भवन में एक संत कार्यकर्ताओं से कह रहे थे कि जितना आपलोग जानते हैं उससे अधिक अशोक सिंहल जी ने काम किया है। मास्को में हिंदी संस्थान की स्थापना से लेकर यूरोप के कई देशों में भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व को लेकर उनका कार्य ऐतिहासिक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक रहे अशोक सिंहल को श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के नींव का पत्थर कहा जाता है। अजेय और अपराजेय योद्धा रहे अशोक सिंहल का जन्म आगरा में 15 सितंबर 1926 को हुआ था। महज 16 साल की अवस्था में वह संघ से जुड़े तो आजीवन संघ कार्य में लगे रहे। काशी हिंदू विश्वविद्यालय स्थित आईआईटी से उन्होंने इंजीनियरिंग (मेटलर्जी) की पढ़ाई पूरी की और आजीवन संघ के प्रचारक हो गए। उत्तर प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर संघ प्रचारक के रूप में कार्य करते रहे। इसी दौरान देश में आपातकाल लगा और इंदिरा गांधी की तानाशाही के खिलाफ वह संघर्ष करते रहे। आपातकाल के बाद उनको दिल्ली प्रांत का प्रचारक बनाकर भेजा गया।
बाद में वह विश्व हिंदू परिषद के संगठन मंत्री और फिर अध्यक्ष के नाते वर्षों तक कार्य करते रहे। साल 2001 के कुंभ के अवसर पर प्रयाग में धर्मसंसद का आयोजन होना था। पता चला कि एक अखाड़ा के संत नाराज हो गए हैं, वह अखाड़ा धर्मसंसद में भाग नहीं लेगा। अशोक सिंहल सुनते ही बेचैन हो गए थे और तुरंत अखाड़े की तरफ संतों का मान-मनौव्वल करने चले गए। नाराज संत अशोक सिंहल को सामने पाकर अपनी सारी नाराजगी भूल गए और धर्मसंसद सकुशल सर्वसम्मत सम्पन्न हुआ।अशोक सिंहल ने देश के संत महात्माओं और चारों शंकराचार्यों को एक मंच पर लाने का जो अदभुत कार्य करके दिखाया व हिन्दुत्व के पुनर्जागरण के इतिहास में सदा अविस्मरणीय रहेगा।
संघ के वरिष्ठ प्रचारक राजेन्द्र बताते हैं कि मीनाक्षीपुरम की घटना के बाद बंगलुरु में देशभर के सभी जिला प्रचारकों का पांच दिनों का वर्ग हुआ था। उस बैठक में अशोक सिंहल बाद में पहुंचे थे। उस समय विराट हिन्दू समाज नाम के मंच से कार्यक्रम करना तय किया गया। उसका पहला समागम दिल्ली में हुआ था जिसका संचालन अशोक सिंहल ने किया था। उस सम्मेलन में करीब छह लाख लोग आये। हिन्दुत्व जागरण का यह प्रकटीकरण था। उस समागम की सफलता को स्थायित्व देने के लिए अशोक सिंहल को विहिप में भेजा गया। अशोक सिंहल ने विश्व हिन्दू परिषद का कायाकल्प कर दिया। अशोक सिंहल ने हिन्दुत्व के लिए लड़ने वाले और आवाज उठाने वालों की फौज खड़ी कर दी। अयोध्या की सदियों पुरानी मर्मांतक पीड़ा से मुक्ति उन्होंने ही दिलाई।
वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय लिखते हैं कि अशोक सिंहल पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो चिंगारी को दावानल बनाने में समर्थ हुए। उन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया। अशोक सिंहल संकल्पवान थे पर अहंकार रहित थे। उन्होंने अयोध्या की पीड़ा को अपने अंतरमन में उतारा। ऐसा व्यक्तित्व दुर्लभ होता है।अशोक सिंहल के नेतृत्व में चले राम मंदिर आंदोलन को कभी पराजय नहीं मिली। 1990 मेें जब लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की तो अयोध्या में कारसेवा का नेतृत्व अशोक सिंहल कर रहे थे। मुलायम सिंह यादव सरकार दमन पर उतारू थी। अनेक बार आंदोलन के दौरान पुलिस उनको पकड़ना चाही लेकिन उनको पुलिस पकड़ नहीं पायी। राम मंदिर का ताला खुलवाने से लेकर गांव-गांव राम शिला पूजन और उसके बाद शिलान्यास एवं कारसेवा उनके ही नेतृत्व में हुई।