सत्ता बदली, सरकारे बदली पर नहीं बदला टेंडर मैनेजमेंट का खेल

सत्ता बदली, सरकारे बदली पर नहीं बदला टेंडर मैनेजमेंट का खेल

सुल्तानपुर। ऐसा नहीं है कि टेंडर मैनेजमेंट आज के दौर की देन है। बल्कि इसकी इसकी नींव दशकों पूर्व पड़ी थी। जिस पर कमीशन की ईट से इमारते खड़ी होती चली आ रही है। लोक निर्माण विभाग में टेंडर मैनेजमेंट में दशकों के बीच कुछ नहीं बदला अगर बदला है तो सिर्फ जनप्रतिनिधियों के कमिशन का रेट। ठेकेदार तो पुराने है,लेकिन महंगाई के हिसाब से कमीशन की दर बढ़ती जा रही है। वर्तमान स्थिति पर नजर डाले तो इसौली क्षेत्र में विपक्षी विधायक होने के चलते निविदा प्रक्रिया में कंपटीशन हो रहा है। बाकी चार विधानसभा सत्ता के दबाव में सेलेक्शन। जिले में कुल पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। इसौली में समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। इसके अतिरिक्त तीन विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के और एक में गठबंधन दल निषाद पार्टी के विधायक हैं। लोक निर्माण विभाग पूरी तरह से सत्ता के दबाव में है। इसका प्रमाण इसौली विधानसभा अपने आप दे रही है। इसौली क्षेत्र में जहां टेंडर विभागीय रेट से 30 से 33 परसेंट कम रेट पर पढ़ रहे हैं। वही बाकी विधानसभा में मैनेजमेंट के चलते विभागीय दर या विभागीय दर से 50 पैसे कम रेट पर हो रहे हैं। निविदा प्रक्रिया में हिस्सा लेने वाली फर्मे तो पुरानी है, लेकिन इन्हीं फर्मो को बार-बार कार्य हासिल हो रहा है। ऐसा नहीं है कि टेंडर मैनेजमेंट गोरखधंधा का नया हो बल्कि इसकी नीव लगभग दो दशक पूर्व पड़ चुकी थी। वर्ष 2000 के आसपास सिंचाई विभाग के टेंडर को लेकर पूर्वांचल के कुछ माफियाओं का हस्तक्षेप भी यहां हुआ था। लोक निर्माण विभाग परिसर में वर्ष 2012-13 के दौरान गोली कांड भी हो चुका है। एक बार एक ठेकेदार का अपहरण सपा सरकार के दौरान प्रांतीय खंड परिसर से हुआ था। कुछ महीनो पूर्व जिले के दो विधायकों के प्रबंधकों के बीच मार मारपीट की घटनाएं हुई, जिनके मुकदमे भी दर्ज हैं। फिलहाल उठा पटक के बाद जनप्रतिनिधियों के टेंडर प्रबंधकों के बीच समझौता हो चुका है। अब शांतिपूर्ण ढंग से निविदा प्रक्रिया बिना किसी शराबे के साथ संपन्न हो रही है। महगाई बढ़ने के साथ मैनेजमेंट गुरुओं के कमीशन का रेट 3 प्रतिशत से बढ़कर 7 से 8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इस दौरान प्रदेश में सपा बसपा की सरकारें रही और अब भाजपा की सरकार है। टेंडर मैनेजमेंट का खेल कभी नहीं रुका। लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता संतोष मणि त्रिपाठी का भले ही यह दावा हो कि सब कुछ पारदर्शी है लेकिन इसौली और बाकी विधान सभाओं की तुलना उनके दावे की पोल खुद खोल देती है।

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