सीबीआई जांच, भगदड़ में मृतकों के आश्रितों को मुआवजे की मांग में दाखिल याचिका खारिज

सीबीआई जांच, भगदड़ में मृतकों के आश्रितों को मुआवजे की मांग में दाखिल याचिका खारिज

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महाकुम्भ में गड़बड़ी की सीबीआई से जांच कराने, महाकुम्भ के दौरान हुई अनियमितताओं व दुर्घटना की जांच कर दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने तथा भगदड़ में हुई मौत पर आश्रितों को मुआवजे की मांग में दाखिल जनहित याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने केशर सिंह, योगेंद्र कुमार पांडेय व कमलेश सिंह की जनहित याचिका को खारिज करते हुए दिया है। जनहित याचिका में महाकुम्भ की सभी गड़बड़ियों की सीबीआई जांच और आवश्यक कार्यवाही के लिए सम्पूर्ण रिपोर्ट सम्बंधित अधिकारियों को प्रस्तुत करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

याचिका में कहा गया था कि 144 वर्षों बाद महाकुम्भ व अमृत वर्षा की भविष्यवाणी पर 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु देश-विदेश से आए और केंद्र व राज्य सरकार ने इस आयोजन के लिए करोड़ों रुपये के साथ अभूतपूर्व व्यवस्थाएं की। लेकिन मेला प्रशासन की लापरवाही के कारण कई गड़बड़ी हुईं। हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया है तथा कहा कि घटित घटना की जांच सरकार के आदेश से कमेटी कर रही है। याचिका में कोई ठोस साक्ष्य याचिका में उठाए गए मुद्दों को लेकर प्रस्तुत नहीं किया गया है। याचिका केवल अखबार में छपी खबरों पर आधारित है जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

याचिका में कहा गया था कि प्रशासन की लापरवाही के कारण ही 30 पांटून पुल में केवल कुछ ही खुले थे, जिससे स्नानार्थियों को 30-40 किमी पैदल चलना पड़ा। सरकार ने स्नानार्थियों के लिए शटल बस की व्यवस्था की थी लेकिन मेला प्रशासन की लापरवाही के कारण वह नकारात्मक थी। इसी उदासीनता के कारण शहर के होटलों व नाव में अत्यधिक किराया वसूला गया। स्नानार्थियों के रास्ते में पानी, खाना, सोने व बाथरूम की समुचित व्यवस्था नहीं थी जबकि करोड़ों रुपये उप्र सरकार ने स्वीकृत किए थे। कहा गया था कि मौनी अमावस्या की भगदड़ भी सिर्फ प्राशसनिक लापरवाही के कारण हुई। ड्रोन सिस्टम काम नहीं कर रहा था। भगदड़ की घटनाओं की रिपोर्ट व उससे प्रभावित लोगों की जानकारी अब तक सरकार को नहीं दी गई। प्रशासनिक अधिकारियों का कोई तालमेल नहीं था और न ही उन्हें किसी बात की जानकारी थी। हाईकोर्ट ने इन सभी कथनों को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इसका कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। यह केवल अखबार में छपी खबरों पर आधारित है।

 

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