नव संवत्सर की पूर्व संध्या पर सरस काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन

नव संवत्सर की पूर्व संध्या पर सरस काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन

 

फिरोजाबाद ,साहित्यिक चेतना के संवर्धन और नव संवत्सर के स्वागत हेतु साहित्य सृजन संस्था (पंजी.), फिरोजाबाद के तत्वावधान में गीता भवन, गोपाल आश्रम, फिरोजाबाद में एक भव्य सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
 इस अवसर पर नगर के प्रतिष्ठित कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
यह काव्य गोष्ठी साहित्य प्रेमियों और विद्वानों के लिए एक प्रेरणादायक मंच बनी, जिसमें कवियों ने अपनी उत्कृष्ट काव्य रचनाओं से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
गोष्ठी में शामिल कवियों ने विविध रसों में डूबी अपनी काव्य रचनाओं का पाठ किया। नव संवत्सर के स्वागत में ओज, श्रृंगार, हास्य और वीर रस की कविताएं प्रस्तुत की गईं, जिन्हें श्रोताओं ने खूब सराहा। उनकी प्रस्तुतियों में एक ओर देशप्रेम और सांस्कृतिक गौरव की भावना थी, तो दूसरी ओर जीवन की सूक्ष्म संवेदनाओं और मानवीय मूल्यों का चित्रण भी।
गोष्ठी का शुभारंभ सरोज सौदामिनी द्वारा मधुर सरस्वती वंदना से हुआ, जिसने वातावरण को आध्यात्मिक आभा से आलोकित कर दिया। इसके पश्चात के. के. सिंह आमद साधुपुरी ने अपनी मार्मिक कविता संवेदना का गीत प्रस्तुत करते हुए समाज की पीड़ा को इन शब्दों में व्यक्त किया—
"चाँद रोता है ,होता मर्डर देखकर,
तारों का दिल दुखी है, गटर देखकर।
सूर्य का भी न होता है, उगने का मन,
देखता है, पड़ा रेप का जब वो तन।"
वही कुलदीप शुक्ला ने जीवन की अनिश्चितताओं और बदलते परिवेश को अपने शब्दों में पिरोया—
"कभी - कभी बदलती रही ये दुनियाँ थी,
अपने जज्बात में टलती रही ये दुनियाँ थी।"
सरोज सौदामिनी ने भारतीय संस्कृति और नारी शक्ति का चित्रण इन पंक्तियों में किया—
"मंत्र पूजा हवन को भजन कह दिया,
ध्यान भटके नहीं मन मगन कह दिया।
घर की तुलसी बनी शक्ति का रूप है,
बेटियों को पराया रतन कह दिया।"
नव संवत्सर पर हरीशंकर बदन ने अपनी कविता में आशा और उज्ज्वल भविष्य की कामना की
"सूर्य नूतन वर्ष का चमकता रहे,
कीर्ति अंजुल कलश भी दमकता रहे।
हो प्रसारित सुखद लालिमा भोर की,
मंजरी मोद मधुबन महकता रहे।"
माँ के स्वरूप और करुणा पर मृदुल माधव पाराशर ने अपनी हृदयस्पर्शी कविता सुनाई—
"प्रेम रूप माँ अनूप दयावती मात,
आप काट दो माँ सारे पाप करुणा माँ कीजिए।
माँ बहन बेटियों को कुदृष्टि से देखे,
ऐसे पातकी निशाचरों के लहू को पी लीजिए।"
नव संवत्सर के स्वागत में प्रियाचरण उपाध्याय ने जोशीले स्वर में अपनी रचना प्रस्तुत की—
"सोने वाले मन जाग जरा,
स्वागत कर ले नव संवत का।"
वहीं, प्रवीन राजपूत ने बीते समय की भावनाओं को इन शब्दों में व्यक्त किया—
"जब कटोरियाँ साँवली सलोनी खुरदरी थी,
और होता था टीका उन पर कारोंच का,
तब हृदय गुलजार था।"
रामकिशोर राजौरिया ने जातिवाद और आरक्षण पर कटाक्ष करते हुए राष्ट्र की एकता पर बल दिया—
"जब तक करोगे जातिवाद और आरक्षण पर रार,
आज देश की जरूरत है ,गरीबी पर वार।"
नारी सशक्तिकरण को स्वर देते हुए श्रीमती कल्पना राजौरिया ने कहा—
"चल रहा है , मिशन शक्ति नारी का अधिकार बढ़ाते हैं,
जो कुचलते थे, कोमल मन को अब कुचले जाते हैं।"
जीवन की क्षणभंगुरता पर डॉ. निधि गुप्ता ने अपनी संवेदनशील रचना प्रस्तुत की—
"जीवन सफर बस चलता जा रहा,
'मैं' की आग में जलता जा रहा।
छोड़कर सब कुछ खाली हाथ जाने को,
ना जाने क्यों रंजिशों में पलता जा रहा।"
अतर सिंह प्रेमी ने परिश्रम और दृढ़ता की शक्ति पर अपने विचार रखे—
"यत्न के रत्न जिसने संभाले नहीं,
जिसके हाथों में मेहनत के छाले नहीं।
जो अंधेरे से लढ़ने में कतरा गया,
उसके हाथों में आया उजाला नहीं।"
 महाराणा प्रताप की वीरगाथा को स्मरण करते हुए पूरन चंद्र गुप्त ने हल्दीघाटी के वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की—

"पीली थी जो लाल हो गई लहू से जिसकी माटी,
अब तक गाथा सुना रही राणा की हल्दीघाटी।"

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दयालु राम दयालु शास्त्री  ने माँ के त्याग और समाज के दकियानूसी विचारों पर अपनी गहन अनुभूति को इन पंक्तियों में व्यक्त किया—

"अपनी चिंता कुछ नहीं, ऐसा विकट कुरोग।
जीवन भर खटका रहा, क्या बोलेंगे लोग।।"

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे  योगेश चंद्र पलिया औघड़ ने नव संवत्सर के नवीन संकल्पों और सामाजिक समरसता पर बल देते हुए कहा—
"नव संवत नव चेतना, नवल भूमि श्रंगार।
शपथ ग्रहण नव कीजिए, बटे न घर परिवार।"
कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रियाचरण उपाध्याय ने प्रभावशाली अंदाज में किया, जो श्रोताओं को अंत तक बांधे रखने में सफल रहा। अंत में पूरन चंद गुप्त ने उपस्थित अतिथियों, कवियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
इस सरस काव्य गोष्ठी ने नव संवत्सर के स्वागत को साहित्यिक भव्यता प्रदान की। हर कवि की प्रस्तुति में समाज, संस्कृति, राजनीति, नारी शक्ति और मानवीय संवेदनाओं का सुंदर समन्वय देखने को मिला। यह आयोजन साहित्यिक दृष्टि से प्रेरणादायी और हृदयस्पर्शी रहा, जिसमें विजेन्द्र कुमार उपाध्याय, कुलदीप शुक्ल हरीशंकर शर्मा आदि की भी उपस्थिति रही।

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