आयात पर रोक से बांग्लादेश को 770 मिलियन डॉलर का झटका : जीटीआरआई
कोलकाता, 19 मई। भारत द्वारा बांग्लादेश से आयातित कई वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से पड़ोसी देश को लगभग 770 मिलियन डॉलर का झटका लगने वाला है, जो कि दोनों देशों के बीच कुल आयात का करीब 42 प्रतिशत है। यह जानकारी ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के ताजा विश्लेषण में सामने आई है।
बांग्लादेश से वस्त्र, प्रसंस्कृत खाद्य और प्लास्टिक उत्पादों जैसे प्रमुख आयातित सामान अब केवल कुछ सीमित समुद्री बंदरगाहों से ही भारत में आ सकेंगे या फिर पूरी तरह भूमि सीमा से प्रतिबंधित कर दिए गए हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओर से 17 मई को जारी आदेश के अनुसार यह कदम भारत की व्यापार नीति में एक अहम मोड़ का संकेत है, जिसमें स्पष्ट रूप से राजनीतिक संदेश छिपा है। जीटीआरआई ने कहा कि यह फैसला अचानक नहीं लिया गया है, बल्कि यह बांग्लादेश द्वारा भारतीय उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंधों और चीन की ओर उसके कूटनीतिक झुकाव का जवाब प्रतीत होता है।
बांग्लादेश से आयातित वस्त्र, जिसकी वार्षिक लागत करीब 618 मिलियन डॉलर है, अब केवल कोलकाता और न्हावा शेवा बंदरगाहों के माध्यम से ही भारत में प्रवेश कर सकेंगे। इससे बांग्लादेश की मुख्य भूमि व्यापार गलियारों तक पहुंच लगभग बंद हो जाएगी। यह निर्णय विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की सिफारिश पर लिया गया है और इसे भारत की एक रणनीतिक प्रतिक्रिया माना जा रहा है। दिसंबर 2024 से बांग्लादेश ने भारतीय वस्तुओं पर कई व्यापारिक प्रतिबंध लगाए हैं। अप्रैल में उसने पांच प्रमुख स्थल सीमा बंदरगाहों से भारतीय सूती धागे के आयात पर रोक लगाई । चावल के निर्यात पर कड़े नियंत्रण किए और तंबाकू, मछली और दूध पाउडर समेत दर्जनों भारतीय वस्तुओं पर रोक लगा दी। इसके अलावा, बांग्लादेश ने भारतीय कार्गो पर 1.8 टका प्रति टन प्रति किलोमीटर का ट्रांजिट शुल्क भी लगा दिया, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत और अधिक बढ़ गई।
इन प्रतिबंधों से भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान हुआ और भारतीय व्यापार संगठनों में जवाबी कार्रवाई की मांग तेज़ हो गई। बांग्लादेशी बंदरगाहों पर देरी और सख्त जांच ने स्थिति को और बिगाड़ दिया। भारत ने 2020 में बांग्लादेश को दी गई एक अहम ट्रांजिट सुविधा नौ अप्रैल को रद्द कर दी, जिसके तहत वह भारतीय बुनियादी ढांचे, विशेष रूप से दिल्ली हवाई अड्डे के माध्यम से यूरोप और मध्य पूर्व को सामान भेज सकता था। अब यह सुविधा केवल नेपाल और भूटान तक सीमित कर दी गई है।
बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुहम्मद यूनुस की हालिया चीन यात्रा के दौरान दिए गए बयानों ने विवाद को और बढ़ा दिया। यूनुस ने कहा कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य भूमि से घिरे हैं और उन्हें समुद्री पहुंच के लिए बांग्लादेश पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने बांग्लादेश को हिंद महासागर का “एकमात्र संरक्षक” भी बताया और चीन को अपने व्यापारिक मार्गों के इस्तेमाल की पेशकश की। भारत में इन बयानों को उकसावे वाला माना जा रहा है। भारत-बांग्लादेश के बीच व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों में आई इस ताज़ा तल्ख़ी ने क्षेत्रीय स्थिरता को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।
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