जबलपुर पुलिस की चकरघिन्नी जाँच पर हाईकोर्ट ने दिए DGP को जांच के आदेश

जबलपुर पुलिस की चकरघिन्नी जाँच पर हाईकोर्ट ने दिए DGP को जांच के आदेश

जबलपुर। एक एक्सीडेंट केस की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में जबलपुर पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर न केवल सवाल खड़े हुए बल्कि सामने आए तथ्यों ने शहर की पुलिस व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस मामले में कोर्ट ने डीजीपी को जाँच के आदेश दिए हैं।

दरअसल, मामला 26 मार्च 2017 को डुमना रोड, जबलपुर एयरपोर्ट की ओर नेहरा कंपनी के पास हुई एक सड़क दुर्घटना से जुड़ा था। लेकिन हादसे की FIR तीन महीने बाद ऐसे थाने में जो घटना स्थल के क्षेत्राधिकार में ही नहीं आता था, 19 जून 2017 को दर्ज की गई। FIR दर्ज करने में कई थानों की संदिग्ध भूमिका सामने आने पर कोर्ट के आदेश के बाद DGP ने जांच शुरू कर दी है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिर्फ लापरवाही का नहीं है ,बल्कि इसमें पुलिस अधिकारियों की भूमिका की जाँच होना चाहिए।

यह एफआईआर उस वक्त लिखी गई जब पहले से ही केस डायरी में कई चौंकाने वाली विसंगतियां मौजूद थीं। कोर्ट ने इसे गंभीर कदाचार बताते हुए, इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक व आपराधिक कार्रवाई की सिफारिश की। हाईकोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि तत्कालीन गोरा बाजार थाना प्रभारी और सब इंस्पेक्टर ने घटना के 3 महीने बाद पूरे तथ्य विपक्ष में होने के बाद भी एक गलत FIR दर्ज की और ऐसा एक्सीडेंटल क्लेम में लाभ पहुंचाने की मंशा से किया गया।

कोर्ट में पेश की गई केस डायरी में जो दस्तावेज मिले उनमे भारी अनियमितता के साथ कई ऐसी विसंगतियां भरी पड़ीं थी जो लचर कार्य प्रणाली को दर्शाती है। ऋषभ द्वारा लिखा गया 31 मार्च 2017 का पत्र केस डायरी में मिला, लेकिन उसमें कोई दस्तखत नहीं थे और लेटर में मार्जिन इतनी सफाई से काटे गए थे कि कोई पहचान नहीं हो सके। इतना ही नहीं, केस डायरी में 1 जून 2017 का एक और पत्र मिला, जो पुलिस थाना घमापुर से था और उसमें SP के एक काल्पनिक पत्र संख्या 1804/2017 दिनांक 30 मई 2017 का हवाला दिया गया था, जबकि ऐसा कोई पत्र रिकॉर्ड में मौजूद ही नहीं था। कोर्ट ने इस बात को एक कहानी माना, जो एफआईआर को वैध दिखाने के लिए तैयार की गई थी।

पुलिस द्वारा संलग्न की गई एक्स-रे रिपोर्ट वास्तव में सिर्फ जामदार अस्पताल के डॉक्टर शिरीष नाइक द्वारा दिया गया एक प्रेस्क्रिप्शन था। इसमें ना कोई मेडिकल सर्टिफिकेट था, ना फीस रसीद और ना ही इसे जब्त करने का कोई मेमो, इसके साथ ही यह तथा कथित X-RAY रिपोर्ट एक्सीडेंट से 2 महीने पहले यानी जनवरी 2017 की थी। वहीं बाइक की मेकेनिकल क्षति रिपोर्ट 22 जून 2017 की थी, यानी दुर्घटना के 3 महीने बाद। रिपोर्ट में बाइक के फुटरेस्ट, गियर और टायरों को क्षतिग्रस्त बताया गया, लेकिन किसी मेकैनिकल एक्सपर्ट या मूल्यांकनकर्ता के हस्ताक्षर नहीं थे और न ही बाइक की तस्वीरें केस डायरी का हिस्सा थीं।

कोर्ट ने जबलपुर के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक की भूमिका पर भी सवाल उठाए। तीन थानो की सीमा विवाद के बाद जबलपुर एसपी ने पीड़ित की शिकायत को एक ऐसे थाने में भेज दिया जिसका इस मामले से कोई लेना-देना ही नहीं है।कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार इस जवाब देना चाहिए कि मामले को गलत थाने में भेजने के बाद एसपी पर क्या कार्यवाही की गई। क्या एसपी को जबलपुर की भौगोलिक स्थिति पता नहीं थी यदि नहीं तो एक बार अपने अधीनस्थ अधिकारीयों से कह सही थाना चुनने के लिए निर्देश दिए जाने थे। पुलिस थाना घमापुर से भेजा गया एक पत्र भी केस डायरी में मिला, जबकि घमापुर इस विवाद से दूर था। दरअसल पुलिस अधीक्षक के द्वारा गोहलपुर थाने को भेजे गए पत्र के कुछ दिनों बाद घमापुर थाने से एक पत्र जारी हुआ जिसमें बताया गया कि यह थाना क्षेत्र रांझी का है और रांझी थाने में 3 महीने बीत जाने के बाद भी जीरो FIR कायम कर इसकी डायरी गोरा बाजार थाने भेज दी गई।

यह है मामला

शिकायतकर्ता ऋषभ जैन द्वारा 31 मार्च 2017 को एक्सीडेंट की सूचना के आवेदन के माध्यम से दी थी। हुई थी, जिसमें उन्होंने ऋषभ ने बताया कि वह अपने दोस्त आनंद पाठक के साथ डुमना एयरपोर्ट से लौट रहे थे, और नेहरा कंपनी के पास उनकी मोटरसाइकिल को एक होंडा सीवीआर बाइक MP-20/MW-8612 ने टक्कर मार दी। ऋषभ के अनुसार इस हादसे में ऋषभ को माथे, दाहिनी कलाई और कमर में खरोंचें आईं थी और उनकी बाइक को भी नुकसान हुआ। चोट लगने के बाद उनके दोस्तों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया। लेकिन जब पुलिस कार्रवाई की बात आई, तो उन्हें तीन थानों डुमना चौकी, रांझी और सिविल लाइंस जाना पड़ा क्योंकि तीनों थानों का यह कहना था कि दुर्घटना क्षेत्र हमारे थाने में नहीं आता, इसके बाद उन्होंने एसपी ऑफिस में 31 मार्च को शिकायत की। ऋषभ द्वारा दिए गए आवेदन पर एसपी कार्यालय ने 1 अप्रैल 2017 की मुहर लगाई, लेकिन उन्हें गोहलपुर थाना भेज दिया, जो न तो दुर्घटना स्थल से जुड़ा था और न ही सीमा विवाद वाले 3 थानों में शामिल था।

कोर्ट ने यह मानते हुए कि एफआईआर झूठे तथ्यों पर आधारित थी और जबलपुर पुलिस के द्वारा इसे वैध ठहराने की कोशिश की, लिहाजा FIR और उससे संबंधित समस्त कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने DGP को स्पष्ट आदेश दिया कि इस मामले में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों की जांच की जाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में दोषी पाए जाने वाले लोगों पर विभागीय और यदि आवश्यकता हो तो आपराधिक कार्यवाही की जाए। डीजीपी को निर्देशित किया गया है कि वह दो महीने के भीतर जांच पूरी कर याचिकाकर्ताओं को परिणाम सूचित करें, और यदि यह न किया गया, तो याचिकाकर्ता DGP के खिलाफ अवमानना याचिका दाखिल कर सकते हैं। इस मामले में तत्कालीन थाना प्रभारी और वर्तमान DSP डी पी एस चौहान सहित जांच के दायरे में फंसे सब इंस्पेक्टर हरिनारायण मिश्रा ने जबलपुर हाईकोर्ट में सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ अपील दायर की लेकिन एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा की डिविजनल बेंच ने कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया और उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच होनी चाहिए।

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