संपादकीय : तुर्की -एक नया दुश्मन
आपरेशन सिंदूर के दौरान जिस तरह तुर्की ने भारत के मुकाबले पाकिस्तान को तरजीह दी, वह भारत के लिए हैरान करने वाला फ़ैसला था। भारत ने तुर्की के साथ हमेशा मजबूती से खड़े रहने का हौसला दिखाया, हर आपदा में उसकी हर प्रकार मदद की लेकिन ज़ब भारत को तुर्की के साथ की जरुरत पड़ी तो वह एक दहशतगर्द मुल्क पाकिस्तान के साथ खड़ा हो गया। देखा जाए तो भारत के लिए इस्लामिक देशों के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखते हुए अपने हितों का संरक्षण करना हमेशा से काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। उधर भारत का पड़ोसी देश कभी भी एक विश्वस्त पडोसी साबित नहीं हुआ, चीन की विस्तारवादी रणनीति हमेशा के लिए खतरा बनी रही। इसी कड़ी में अरुणाचल प्रदेश पर वह हमेशा अपना दावा जताता रहा। चीन और पाकिस्तान का साथ आना पहले ही भारतीय सीमाओं की सुरक्षा के लिहाज से चुनौतीपूर्ण था। अब इस गठजोड़ में तुर्की का शामिल होना नया सिरदर्द बनने जा रहा है। साउथ एशिया में चीन अपने कर्ज का मकड़जाल फैलाकर कई पुराने भरोसेमंद दोस्तों को भारत से दूर करने की कोशिश कर चुका है। चीन-पाकिस्तान और तुर्की की तिकड़ी भारत की चुनौती और बढ़ा सकती है। पाकिस्तान और चीन के मंसूबे हमेशा से ही भारत के खिलाफ रहे हैं। भारत के साथ बड़े व्यापारिक संबंधों के बावजूद चीन खुलकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के साथ खड़ा नजर आता है। अब तुर्की भी इस कड़ी में शामिल हो गया है। दुनिया के बदलते राजनैतिक समीकरण में जहां सऊदी अरब और यूएई अब अपनी कट्टर इस्लामिक छवि को पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप एर्दोआन अपनी निजी महत्वाकांक्षा को अमली जामा पहनाने में जुटे हैं। वह खुद को मुस्लिम उम्माह के स्वाभाविक नेतृत्वकर्ता के तौर पर पेश करना चाहते हैं। यही वजह है कि वे पाकिस्तान को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं। तुर्की और चीन पाकिस्तान को लगातार महंगे आधुनिक हथियारों की सप्लाई कर रहे हैं, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने में करता है। पाकिस्तान ने तुर्की की सरकारी रक्षा कंपनी के साथ हाल में 1.5 अरब डॉलर का करार किया है। उधर, चीन के निवेश की वजह से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को बल मिलता है और यह भी भारत के लिए सही नहीं है। चीन ने पाकिस्तान में भारी निवेश कर रखा है और साउथ एशिया में अपने विस्तारवादी मंसूबों को अंजाम देने के लिए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान के ग्वादर एयरपोर्ट में भारी निवेश किया है। चाइना- पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर बेल्ट और रोड इनिशिएटिव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। असल में यह चीन की विस्तारवादी सोच को धरातल पर उतारने की कोशिश है। चीन यूरोप के बड़े बाजार तक पहुंचने के लिए अपनी भौगोलिक दूरी को कम करते हुए वहां कब्जा जमाना चाहता है। पाकिस्तान चीन की रणनीति में अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से अहम है और इसलिए शी जिनपिंग खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आते हैं। चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और तुर्की नाटो समूह का सदस्य है। वैश्विक कूटनीति और रणनीतियों को प्रभावित करने की दिशा में ये दोनों देश अहम हैं। इसलिए आपरेशन सिंदूर के बाद भारत को अब अपनी विदेश नीति को जरुर समीक्षित करना पड़ सकता है।
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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
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