गेहूं की आखिरी सिंचाई अतिमहत्वपूर्ण, पैदावार पर पड़ता है असर

 गेहूं की आखिरी सिंचाई अतिमहत्वपूर्ण, पैदावार पर पड़ता है असर

कानपुर । गेहूं की आखिरी सिंचाई अति महत्वपूर्ण है। गेहूं की फसल में अंतिम पानी से पैदावार पर असर पड़ता है। जिससे आखिरी पानी देने का तरीका गेहूं की पैदावार को बढ़ा और घट सकता है। किसान भाइयों को अन्तिम पानी देते समय बहुत कई जानकारी होना आवश्यक है। यह जानकारी शनिवार को चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कृषि एवं मौसम वैज्ञानिक डॉ.एस.एन.सुनील पांडेय ने दी।

उन्होंने बताया कि गेहूं में पानी देने का तरीका आपकी पैदावार को बढ़ा या घट सकता है। जितना जरूरी फसल में खाद और न्यूट्रिएंट्स होते हैं। उतना ही जरूरी सही समय पर पानी को चलाना भी होता है। बाली बनने के समय पौधे को पर्याप्त मात्रा में नमी की आवश्यकता होती है। लेकिन फिर भी किसान अक्सर इस समस्या में घिरे रहते हैं कि वह आखिरी पानी कब लगाएं या आखिरी पानी कब बंद करें। इसके लिए मैं आपको कुछ तरीका बताऊंगा। जिसको ध्यान में रखकर आप आखिरी पानी दे सकते हैं।

उन्होंने बताया कि गेहूं में आखिरी सिंचाई करते समय हमें कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। नहीं तो आपको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। आखरी पानी पर आपके भूसे की क्वालिटी भी निर्भर करती है। इसके लिए हमें नीचे दी गयी कुछ बाताें को ध्यान में रखना काफी जरूरी है।

गेहूं में हमें आखिरी सिंचाई हल्की करनी चाहिए। गेहूं में पानी खड़ा न करना करें। दूसरा पानी लगाने से पहले किसान साथी जांच लें कि आगे का दो-तीन दिन के मौसम में हवा ना हो। अगर तेज हवाएं चलती हैं तो इस समय गेहूं को गिरने की संभावनाएं बनी रहती हैं। अगर आपके खेत में पर्याप्त नमी है, तो आपको बार-बार पानी चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

गेहूं में आखिरी सिंचाई हर क्षेत्र और जमीन में अलग-अलग होती है। गेहूं में बालियां निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना बहुत ज्यादा आवश्यक है। अगर आपके खेत में पर्याप्त नमी है, तो आपको पानी चलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसका अंदाजा आप खुद लगाएं कि आपके खेत में नमी है या नहीं। अगर नमी कम है और जमीन सुखी है तो आप पानी चला सकते है।

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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