नमन तुम्हें ओ खाकी मेरा तूने देश बचाया है...

नमन तुम्हें ओ खाकी मेरा तूने देश बचाया है...

  विद्यापतिनगर(समस्तीपुर ) । मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति जी की समाधि भूमि पर आयोजित ग्यारहवें विद्यापति राजकीय महोत्सव के दूसरे दिन रविवार को कवि सम्मेलन आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन एसडीओ प्रियंका कुमारी ने दीप प्रज्वलित कर किया। उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए एसडीओ ने कहा कि मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति जी की की रचनाएं हमेशा ही कालजयी व प्रसांगिक बनीं रहेंगी। विद्यापति जी ने भक्ति, श्रृंगार, देवी दर्शन सहित विभिन्न भाषाओं मसलन मैथिली, संस्कृत व अवहट्ट को एक महत्वपूर्ण आयाम दिया है। जब तक साहित्य रहेगा विद्यापति जी की रचनाएं साहित्यानुरागी लोगों के बीच जीवंत रहेंगे। विद्यापतिधाम रेलवे मैदान में आयोजित कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रुप में पधारे राष्ट्रीय मंचों के चर्चित वीर रस कवि विजय गिरि बारूद ने अपनी स्वरचित रचनाएं "दिल में ज्वाला, गंगा जल हो, हो प्रेम की परिभाषा आशा,मस्तक ऊंचा करके कहना में विद्यापति बिहारी हूं ...जब भगत सिंह के गले को फांसी वाली रस्सी चूमी होगी, घर के सारे रिश्ते भूले,नमन तुम्हें ओ खाकी मेरा तूने देश बचाया है..की प्रस्तुति से लोंगों ने राष्ट्रीयता का भाव जगाया। साहित्यकार व लेखक डा. सुधीर प्रसाद सिंह सुधीर ने महाकवि विद्यापति जी पर आधारित अपनी स्वरचित रचना चलें चलें विद्यापतिधाम,जन जन करते गौरव गान की प्रस्तुति से महोत्सव में आध्यात्म साहित्य का भाव जगाया। युवा साहित्यकार मिन्टू कुमार झा कि कविता " उनकी आंखों में चिंगारी देखी है " कि प्रस्तुति ने उपस्थित श्रोताओं को तालियां बजाने पर विवश कर दिया। युवा कवियित्री प्रीति प्रियदर्शिनी ने आशाओं का गांव,श्यूम जावेद ने या रब उन्हें अक्ल दे नहीं भूल कर कश्मीर में दखल दे ,ख्यातिलब्ध साहित्यकार व कवि देवनीति राय ने अपनी रचना हे गे मैयो आय हमरा बगिया बनाय दे कोठी में धान छै कूट के पिसाय दे ...कविता सुनाकर लोगों को बाग बाग कर दिया। कवि आलोक मिश्रा की कविता अहां छी शान मिथिला कै, अहां पहचान मिथिला कै, श्रीराम राय ने मैं संत हूं राम जैसा को श्रोताओं ने जमकर प्रशंसा किया। मंसूरचक से आएं कवि कुमार अमरेश ने पड़ोसी पांव ना रख दे हिफाजत कर रहे हैं वो,यहां निश्चिंत सोते जो सियासत कर रहे हैं वो के जरिए राजनीतिक परिदृश्य का वर्णन सुनाया। कवियित्री रंजना लता ने सुनाई जाते-जाते मुझे वो सजा दे गया, दर्द का एक नया सिलसिला दे गया को लोगों ने खूब सराहा। कवि सत्यसंघ भारद्वाज ने जो सवा लाख से एक लड़े,हम मानव हैं मानवता के ही हित की बातें करते हैं,दुनियाँ की है परवा किसे हम नहीं किसी से डरते हैं...,डा. शैलेंद्र शर्मा त्यागी ने घर से बाहर ताक चोट खाती है बेटियां...गणेश गिरि कवि ने विद्यापति के यहां शिव सेवक बनल मोर... की प्रस्तुति से लोगों को भाव विभोर कर दिया। कवि सम्मेलन में श्रीराम राय, देवनीति राय,आमित मिश्रा, डा. शैलेन्द्र शर्मा त्यागी, रंजना लता, प्रीती प्रियदर्शनी, राजाराम महतो, सौरव वाचस्पति, मिथिलेश कुमारी, कुशेश्वर प्रसाद सिंह, द्वारिका राय सुबोध, डा .सुधीर प्रसाद सिंह, आनंद मोहन, डा. गगनदेव चौधरी, सुरेश शेनोई आदि कवियों ने मैथिली मगही, मैथिली, बज्र,भोजपुरी, अंगिका आदि में अपनी रचनाओं से वाह वाही लूटी। स्वागत भाषण विद्यापति परिषद के अध्यक्ष गणेश गिरि कवि ने दिया। संचालन विनोद समीर ने किया।

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