क़ल से बढ़ जाएगा झाँसी -ललितपुर में चुनावी तापमान 

अखिलेश, राहुल, योगी गर्म करेंगे झाँसी -ललितपुर का चुनाव

क़ल से बढ़ जाएगा झाँसी -ललितपुर में चुनावी तापमान 

* पीडीए फार्मूले पर वोटर को लुभाएंगे अखिलेश * 2017 के बाद राहुल -अखिलेश का फिर एक मंच पर आना कोई गुल खिलाएगा? * रोड शो के जरिये हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का बिगुल फूंकेंगे योगी 

झाँसी। झाँसी -ललितपुर लोकसभा चुनाव कड़े दौर से गुजर रहा है क्योंकि यहां मुख्यतः दो प्रत्याशी ही मुकाबले में हैं। पहले वर्तमान सांसद अनुराग शर्मा, जिन्हें पार्टी ने दोबारा टिकट थमाया है, दूसरे इंडिया गठबंधन के कांग्रेस प्रत्याशी प्रदीप जैन। प्रदीप को गठबंधन धर्म के नाते समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के साथ अन्य स्थानीय व क्षेत्रीय दलों का समर्थन प्राप्त हो रहा है तो भाजपा प्रत्याशी भी स्वयं के कार्यों के मुकाबले मोदी की गारंटी के सहारे दर दर जाकर वोट मांग रहे हैं। अब 14 मई को इंडिया गठबंधन प्रत्याशी के समर्थन में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव किले के मैदान स्थित क्राफ्ट मैदान में वोट माँगने आ रहे हैं। तो 16 मई को भाजपा प्रत्याशी की ओर से प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी रोड शो करेंगे। इन दोनों कार्यक्रम के बाद झाँसी ललितपुर का चुनाव और अधिक रोचक हो जाएगा क्योंकि योगी कट्टर हिंदुत्व के चेहरे हैं और प्रधानमंत्री मोदी पहले ही चुनाव को हिन्दू -मुस्लिम में तब्दील कर चुके हैं। लेकिन अगर योगी का दौरा बहुसंख्यक वोटर्स को ध्रुवीकृत करेगा तो अखिलेश व राहुल की यूपी के लड़कों की जोड़ी भी 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद झाँसी के मतदाताओं से रूबरू होगी। लेकिन 2017 के मुकाबले इस बार दृश्य कुछ परिवर्तित हैं इसलिए इस जोड़ी का बुंदेलखंड की धरती पर आगमन कुछ गुल अवश्य खिलाएगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस बुंदेलखंड और झाँसी में कमजोर स्थिति में है। धनबल, जनबल और बाहुबल तक की इफरात भाजपा प्रत्याशी के पास है। क्योंकि एक तो वे खुद ही बड़े उद्योगपति हैं तो दूसरे सत्ताधारी दल के प्रत्याशी होने के साथ सांसद भी हैं। मगर दिलचस्प ये है कि व्यक्तिगत छवि के मामले में प्रदीप जैन का कोई तोड़ भाजपा प्रत्याशी के पास नहीं है। दो बार के विधायक और एक बार के सांसद प्रदीप केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं फिर भी उनकी साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि और जनता से सहज जुड़ाव उन्हें लोकप्रियता के मामले में भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले अलग ही खड़ा करता है। उधर भाजपा प्रत्याशी के मामले में यह मान्यता है कि वे सोने की चम्मच मुंह में लेकर पैदा हुए हैं और अपने पांच साल के कार्यकाल में वे खुद ही इस पर मुहर लगा चुके हैं। उनकी कोठी और दरबान के बाद चमचों की फ़ौज को पार कर ही मतदाता उनतक पहुँच सकता है, जो बीते पांच सालों में लगभग दुष्कर काम ही रहा है। चुनाव के दौरान तक में ये देखा जा रहा है कि उनतक पहुँच पाना किसी के लिए सहज सरल नहीं है। बीते 5 वर्ष के कार्यकाल के दौरान उनके नाम क्षेत्र के लिए कोई काम आने की उपलब्धि भी दर्ज नहीं है। बल्कि उनके कार्यकाल में झाँसी रेलवे स्टेशन का नाम बदले जाने का कलंक भी दर्ज है।

बहरहाल, अखिलेश -राहुल की जोड़ी की जनसभा के बाद जहां गठबंधन प्रत्याशी के पक्ष में मुस्लिम और यादव वोट के ध्रुवीकरण की उम्मीद है तो इस बार की अखिलेश यादव की चुनावी रणनीति के अंतर्गत अति पिछड़े और दलित यानी पीडीए फार्मूले का लाभ भी प्रदीप को मिलने की आशा बलवती होगी। इस सभा के तुरंत बाद योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व का बिगुल फूँकने आएंगे तो जाहिर है कि चुनाव मतदान के चार -पांच दिन पहले से दिलचस्प मोड लेगा। जीत उसी की होगी जो मतदान के दिन तक मतदाताओं के मन तक पहुंचेगा।

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