ड्रैगन के साथ संबंधों को लेकर जयशंकर की दो टूक

ड्रैगन के साथ संबंधों को लेकर जयशंकर की दो टूक

नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को चीन के साथ भारत के संबंधों पर विचार किया। उन्होंने ऐतिहासिक बारीकियों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि कैसे अधिक भारत केंद्रित दृष्टिकोण चीन के साथ अपने संबंधों को अलग तरह से आकार दे सकता था।

जयशंकर ने कहा, यदि हम ज्यादा भारत होते, तो चीन के साथ हमारे संबंधों के बारे में कम गुलाबी नजरिया होता। राष्ट्रीय राजधानी में अपनी पुस्तक 'व्हाई भारत मैटर्स' के विमोचन के अवसर पर जयशंकर ने कहा, जिन तीन देशों-पाकिस्तान, चीन और अमेरिका को लेकर मैंने बात की है, उनके साथ शुरुआती वर्षों में वास्तव में हमारे संबंध बहुत विवादित थे।

जयशंकर ने चीन पर भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच नोट और पत्रों के आदान-प्रदान का जिक्र करते हुए ऐतिहासिक रिकार्ड का हवाला दिया। उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर भारत के शुरुआती रुख की जटिलताओं पर प्रकाश डालते हुए दोनों नेताओं द्वारा व्यक्त किए गए बिल्कुल अलग-अलग विचारों का उल्लेख किया।

पिछले 10 साल परिवर्तनकारी रहे हैं
भाजपा नीत सरकार के तहत अपने 10 साल के कार्यकाल को ''परिवर्तनकारी'' बताते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि ऐसे समय से जब भारतीयों को वीजा के संबंध में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था, आज कई देश कार्यस्थल की गतिशीलता का पता लगाने के लिए स्वयं नई दिल्ली का अनुसरण कर रहे हैं।

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आज आपूर्ति श्रृंखलाओं और डिजिटल प्रवाह के अलावा वैश्विक कार्यस्थल के क्षेत्र में भी एक बड़ा अवसर मौजूद है। जयशंकर ने अपनी पुस्तक 'व्हाई भारत मैटर्स' में अनुच्छेद 370 से लेकर भारत की सीमा स्थिति (विशेषकर चीन के साथ एलएसी) समेत उन तमाम मुद्दों पर खुलकर चर्चा की है, जिनसे वह जुड़े रहे हैं।

जयराम ने कहा- जयशंकर ने बौद्धिक ईमानदारी खो दी
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मंगलवार को 'नेहरू की चीन नीति' पर टिप्पणी के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर की आलोचना की और कहा कि जयशंकर ने सभी बौद्धिक ईमानदारी और निष्पक्षता खो दी है। इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर जयराम ने लिखा कि विदेश मंत्री एक 'नव-धर्मांतरित' व्यक्ति हैं।

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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