कीट, रोग एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति को लेकर किसान भाइयों को दिया गया सुझाव

संत कबीर नगर, 06 मई 2025(सू0वि0)।* जिला कृषि रक्षा अधिकारी डा0 सर्वेश कुमार यादव ने बताया है कि फसलों में प्रतिवर्ष कीट, रोग एवं खरपतवारों से होने वाली क्षति एवं कृषि रक्षा रसायनों के अविवेकपूर्ण प्रयोग से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के दृष्टिगत परंपरागत कृषि विधियों यथा मैड़ों की साफ-सफाई, ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के साथ-साथ बीजशोधन एवं भूमिशोधन को अपनाया जाना नितांत आवश्यक है। इससे कीट, रोग एवं खरपतवार का प्रकोप कम होने के साथ उत्पादन में वृद्धि होती है तथा कृषकों की उत्पादन लागत कम होने से उनकी आय में वृद्धि होती है। कीट एवं रोग नियंत्रण की आधुनिक विधा एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन (आई०पी०एम) के अंतर्गत भी इन परंपरागत विधियों को अपनाने का बल दिया जाता है। ग्रीष्मकालीन कीट, रोग एवं खरपतवार प्रबंधन मानसून आने से पूर्व मई-जून माह में किया जाता है।
    उन्होंने बताया कि मेड़ों की साफ-सफाई करने पर मेड़ो पर उगने वाले खरपतवारों की सफाई से किनारों की प्रभावित फसलों के बीच खाद एवं उर्वरकों की प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है। खरपतवारों को नष्ट करने से हानिकारक कीटों एवं सूक्ष्म जीवों के आश्रय नष्ट हो जाते है। जिससे अगली फसल में इनका प्रकोप कम हो जाता है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई कराने से मृदा की संरचना में सुधार होता है, जिससे जलधारण क्षमता बढ़ती है। खेत मे उगे खरपतवार एवं फसल अवशेष मिट्टी में दबकर सड़ जाते है। जिससे मृदा में जीवांश की मात्रा बढ़ती है। गहरी जुताई के बाद खरपतवारों जैसे- पथर चट्टा, जंगली चौलाई, दुग्धी, पान पत्ता, मकरा आदि के बीच सूर्य की तेज किरणों के संपर्क में आने से नष्ट हो जाते है। जमीन में वायु संचार बढ़ जाता है जो लाभकारी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि एवं विकास में सहायक होता है। मृदा के अंदर छिपे हानिकारक कीट जैसे दीमक, सफेद गिडार, कटुआ, बीटल एवं मैगट के अंडे, लार्वा व प्यूपा नष्ट हो जाते है जिससे अग्रिम फसल में कीटों के प्रकोप कम रहता है।
इसी प्रकार भूमिशोधन से जैविक फफूंदनाशक ट्राईकोडर्मा 2.5 किग्रा को 65-70 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखकर बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय भूमि में मिता देने से फफूँद से फैलने वाले रोग जैसे जड़ गलन, तना सड़न, उकठा एवं झुलसा का नियंत्रण हो जाता है। ब्युवेरिया बैसियाना से बायो- पेस्टिसाइड की 2.5 किग्रा मात्रा को 65-70 किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिन तक छाया में रखकर बुवाई से पूर्व अंतिम जुताई के समय भूमि में मिला देने से दीमक, सफेद गिडार, कटवॉर्म एवं सूत्रकृमि का नियंत्रण हो जाता है। मिट्टी में मौजूद फास्फोरस, पोटाश एवं अन्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है। पौधों की जड़ो का विकास अच्छा होता है। भूमिशोधन करने से भूमिजनित कीट रोग के प्रकोप से बचाव में प्रयोग होने वाले रसायनों पर आने वाले व्यय में कमी आती है। बीजशोधन बुवाई से पूर्व 2.5 ग्राम थीरम 75 प्रतिशत अथवा काबेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 02 ग्राम अथवा धीरम 75 प्रतिशत डब्लू0पी0 02 ग्राम $ कार्बेडाजिम 50 प्रतिशत डब्लू0पी0 अथवा यथासंभव ट्राईकोडर्मा 4-5 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से बीजशोधन करना चाहिए। बीजशोधन से बीज के सड़न की रोकथाम होती है, जिससे जमाव अच्छा होता है तथा पौधा स्वस्थ होता है जिसके फलस्वरूप उत्पादन में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। बीज जनित रोगों के प्रकोप से बचाव में होने वाले रसायनों पर आने वाले व्यय में कमी आती है। बीजशोधन से बीज जनित रोग जैसे बीज गलन, उकठा आदि का नियंत्रण हो जाता है।

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