एसआरएन अस्पताल की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट चिंतित

डीएम, नगर आयुक्त सीएमओ सीएमएस सहित कई अफसर तलब

एसआरएन अस्पताल की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट चिंतित

एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट में खामियों का खुलासा

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज प्रयागराज से संबद्ध स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल की दयनीय हालत पर चिंता जताते हुए जिलाधिकारी, नगर आयुक्त, सीएमओ, सीएमएस व अस्पताल के इंचार्ज अधीक्षक को शुक्रवार को हाजिर होने का निर्देश दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने डॉ अरविंद कुमार गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है। इससे पहले प्रशासन की रिपोर्ट पर सवालिया निशान लगने पर कोर्ट ने अस्पताल के हालात का जायजा लेने के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। एमिकस क्यूरी की अंतरिम रिपोर्ट में अस्पताल में सुविधाओं की खामियों का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट में अस्पताल के विभिन्न विभागों में गंभीर खामियों का खुलासा हुआ है, जिनमें गैर-क्रियाशील एयर कंडीशनिंग इकाइयां, आवश्यक दवाओं की कमी और मरीजों के साथ दुर्व्यवहार शामिल है।

कोर्ट ने गत आठ मई के आदेश के अनुपालन में यह रिपोर्ट प्राप्त की थी, जिसमें अधिवक्ता ईशान देव गिरि एवं प्रभूति कांत त्रिपाठी को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था। कोर्ट ने मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल द्वारा पहले प्रस्तुत की गई गुलाबी तस्वीर को अस्वीकार किया था, जिसके बाद एमिकस क्यूरी की नियुक्ति की गई।

--एमिकस क्यूरी अंतरिम रिपोर्ट में उजागर प्रमुख खामियां

गैर क्रिया शील एयरकंडीशनिंग इकाइयां: अस्पताल परिसर में 90 प्रतिशत से अधिक एयर कंडीशनिंग इकाइयां, जिनमें केंद्रीय, स्प्लिट और विंडो एसी शामिल हैं, मरम्मत और गैर-कार्यशील स्थिति में पाए गए विशेष रूप से सामान्य वार्डों और प्रतीक्षालयों में।

--दवाओं की कमी

स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल के केंद्रीय चिकित्सा भंडार डिपो में बड़ी संख्या में जेनेरिक दवाएं उपलब्ध नहीं थीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 16 मई 2025 को केवल एक यूनिट एल्ब्यूमिन 100 एम एल और 10 यूनिट पैरासिटामोल 100 एम एल जैसी आवश्यक दवाएं जारी की गईं, जो दैनिक रोगी प्रवेश दर से काफी कम हैं।

--डॉक्टरों के अनियमित दौरे

मरीजों ने शिकायत की कि डॉक्टरों के निर्धारित दौरे अक्सर नहीं होते हैं। गंभीर हालत वाले मरीजों को भी मेडिकल या पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा तुरंत अटेंड नहीं किया जाता था।

--कर्मचारियों की कमी और दुर्व्यवहार

इकोकार्डियोग्राफी कक्ष में प्रतिदिन लगभग 200 रोगियों के बावजूद, मरीजों को विभिन्न विभागों के बीच ले जाने के लिए केवल एक वार्ड अटेंडेंट उपलब्ध था, जिससे अटेंडेंट को मरीजों को स्ट्रेचर पर खुद ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। आर्थोपेडिक विभाग के वार्ड में एक मरीज ने स्टाफ द्वारा असहयोग पर और प्रकृति के बुलावे जैसी सबसे बुनियादी चीजों की व्यवस्था के लिए पैसे मांगने की शिकायत की।

--जन औषधि केंद्र बंद

अस्पताल परिसर स्थित जन औषधि केंद्र दिन में लगभग 11 बजे बंद पाया गया जबकि इसके संचालन का समय सुबह नौ से शाम छह बजे के बीच है। इससे मरीजों को बाहर की निजी फार्मेसियों से दवाएं खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

--खराब बिस्तर और लिनन

मरीजों को दिए गए बिस्तर घटिया थे और चादरें अपर्याप्त थीं। कार्डियो इंटेंसिव केयर यूनिट के बिस्तर पर भी चादरें नहीं थीं।

--पेयजल की समस्या

स्थापित भारी शुल्क वाले आरओ मशीनों में से केवल एक ही कार्यशील स्थिति में थी। नल खराब थे, जिससे जनता को लंबी कतारों में खड़ा होना पड़ा या वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों से पानी खरीदना पड़ा।

--शौचालय सुविधाओं की कमी

अस्पताल में शौचालय और बाथरूम की सुविधाएं दैनिक रोगी प्रवाह के लिए अपर्याप्त थीं। कुछ शौचालय स्टाफ के लिए बंद पाए गए, जिससे मरीजों और उनके अटेंडेंट को असुविधा हुई। शौचालयों में पुरुष, महिला और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए उचित साइनेज और वर्गीकरण का भी अभाव था। निजी एम्बुलेंस का वर्चस्व: निजी एम्बुलेंस वार्डों के करीब खड़ी पाई गईं जबकि सरकारी एम्बुलेंस काफी दूर खड़ी थीं, जिससे वे मरीजों के लिए दुर्गम हो गईं।

--बंद सीसीटीवी कैमरे और चोरी

सीसीटीवी कैमरे लगे हैं लेकिन उनमें से अधिकांश या तो निष्क्रिय या बिजली की आपूर्ति से जुड़े नहीं थे, जिससे नियमित चोरी के मामलों में वृद्धि हुई। सिस्टम के लिए डीवीआर और हार्ड डिस्क जैसे आवश्यक भंडारण उपकरण भी स्थापित थे जिससे रिकॉर्डिंग की पुनर्प्राप्ति असंभव हो गई।

--अनधिकृत व्यक्तियों की उपस्थिति अस्पताल परिसर ने अनधिकृत व्यक्ति थे, जो मरीजों और उनके अटेंडेंट के साथ प्रवेश या अन्य चिकित्सा उपचार के लिए वित्तीय विचार-विमर्श में लगे थे। इनको बाहरी फार्मेसियों और डायग्नोस्टिक केंद्रों के लिए कमीशन एजेंट के रूप में काम करते हुए भी देखा गया।

--आउटसोर्स कर्मचारियों का शोषण

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को निजी रोजगार एजेंसियों के माध्यम से आउटसोर्स किया जा रहा था। कर्मचारियों ने आरोप लगाया कि ये एजेंसियां उनके हकदार वेतन का एक बड़ा हिस्सा हड़प रही थीं। अस्पताल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भारी कमी भी बताई गई है।

--मशीनरी का अप्रयुक्त होना:

हालांकि कुछ विभागों में उन्नत नैदानिक मशीनरी थी, लेकिन उनके उचित संचालन के लिए सक्षम और पर्याप्त प्रशिक्षित कर्मियों की कमी के कारण उनका प्रभावी उपयोग बाधित हुआ। ऑन्कोलॉजी विभाग में, 2016 में खरीदी गई हाई डोज रेट ब्रेकीथेरेपी मशीन आवश्यक बुनियादी ढांचे की कमी के कारण अभी तक स्थापित नहीं की गई है, जिससे गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज से वंचित होना पड़ रहा है।

--निजी चिकित्सा प्रतिनिधियों की उपस्थिति:

ओपीडी घंटों के दौरान निजी चिकित्सा प्रतिनिधियों का प्रवेश वर्जित होने के बावजूद, उनकी उपस्थिति अस्पताल और विभिन्न विभागों में व्यापक थी। डॉक्टरों द्वारा इनके द्वारा अनुशंसित दवाएं नियमित रूप से निर्धारित की जा रही थीं।

--फर्जी बिलिंग प्रथाएं:

रेडियो डायग्नोसिस विभाग में कुछ उपकरण गैर-कार्यशील पाए गए, फिर भी गुणवत्ता आश्वासन परीक्षण और वार्षिक रखरखाव अनुबंध बिल नियमित रूप से उठाए जा रहे थे और विभाग द्वारा सत्यापित किए जा रहे थे।

--आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति की अनुपलब्धता:

मरीजों को दस्ताने, सर्जिकल आइटम और सिरिंज जैसी आवश्यक चिकित्सा आपूर्ति प्रदान नहीं की जा रही थी जबकि ये अस्पताल के दवा स्टोर पर उपलब्ध थीं। मरीजों को इन वस्तुओं को अस्पताल परिसर के बाहर के स्टोर से खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ रहा था।

--डॉक्टरों की अनुपस्थिति और सीमित ऑपरेशन के घंटे:

14 मई को सुबह 9:37 बजे ऑर्थोपेडिक ओपीडी में कोई भी मेडिकल प्रैक्टिशनर मौजूद नहीं था। इसके अलावा, ऑपरेशन थिएटर में एनेस्थीसिया ट्रॉली, मॉनिटर, आपरेशन थियेटर . टेबल, सी-आर्म मशीन और एयर कंडीशनर सिस्टम की कमी थी। डॉक्टरों द्वारा दोपहर दो बजे के बाद कोई ऑपरेशन नहीं किया जा रहा था।

कोर्ट ने कहा कि स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल अधीक्षक प्रभारी/उप अधीक्षक प्रभारी के अधीन है, जो अस्पताल के दैनिक मामलों को देखते हैं। कोर्ट ने अधीक्षक प्रभारी/उप अधीक्षक प्रभारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी को शुक्रवार दोपहर दो बजे उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। इसके अतिरिक्त कोर्ट ने अस्पताल की स्थिति में सुधार के लिए डीएम और नगर आयुक्त की सहायता मांगी है। वीडियोग्राफी की एक पेनड्राइव भी कोर्ट के समक्ष रखी गई है, जिसे रजिस्ट्रार जनरल को सीलबंद लिफाफे में रखने का निर्देश दिया गया है।

 

 

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