सावधान बाघ! अब रहमानखेड़ा में उतरा ‘असल शिकारी’!
40 दिन बाद भी वन विभाग टीम के हाथ लगे केवल पगमार्क व कुछ फुटेज
रवि गुप्ता
- सीतापुर, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, कानपुर व लखनऊ की टीम कॉम्बिंग में लगी
- पहली बार टाइगर सर्च अभियान के माहिर डॉ. उत्कर्ष शुक्ला ने किया जमीनी मुआयना
- अभी तक नरभक्षी नहीं हुआ बाघ, ऐसे में केवल पकड़ा ही जा सकता है, मारा नहीं
लखनऊ। 2025 का नया साल भले ही प्रदेश सहित लखनऊ वासियों के लिये खुशियों से भरा हुआ दिख रहा हो, मगर शहर से सटे रहमानखेड़ा के जंगली क्षेत्र के आसपास निवास करने वाले गांव वासियों के लिये अभी भी दहशत का माहौल बना हुआ है। आलम यह है कि रविवार को 40 दिन बीतने के बाद यदि देखा जाये तो वहां कंट्रोल रूम के आसपास कॉम्बिंग कर रही और छावनी बनाकर रह रही वन विभाग की टीम के हाथ अब तक केवल जहां-तहां घूम रहे बाघ के केवल पगमार्क और कुछ सीसीटीवी फुटेज लग सके...जिसके आधार पर हर दिन या फिर यूं कहे कि हर दूसरे-तीसरे दिन वन विभाग टीम को अपनी पूर्व रणनीति में यकायक परिवर्तन करना पड़ता है।
बहरहाल, रविवार को जब तड़के से ही मौसम ठंडा बना रहा और कहीं-कहीं शीत की बूंदें भी पड़ रही थीं तो ऐसे में रहमानखेड़ा के उक्त प्रभावित जंगली क्षेत्र में जब अन्य वन अधिकारियों व वन्य कर्मियों की टीमों के बीच एक हरा जैकेट नीली जींस पहने, सफेद बाल, गहरी मूछ...मगर पैनी निगाह वाला शख्स उतरा तो वहां दबे जुबां खुद वन्य कर्मियों का ही कहना रहा कि अब तो भई, इस बाघ की खैर नहीं...क्योंकि आज जंगल में असल शिकारी उतर गया है जिसकी ‘टाइगर सर्च स्पेशलिटी’ से वो संभवत: बच नहीं सकता। वैसे बता दें कि जिस शख्स को लेकर ऊपर के पंक्तियों में जो उल्लेख किया जा रहा, वो डॉ. उत्कर्ष शुक्ला हैं जोकि पूरे प्रदेश के वन विभाग के लिये किसी परिचय के मोहताज नहीं है।
मौजूदा समय में वो लखनऊ प्राणि उद्यान के उपनिदेशक और वेटेनरी डॉक्टर हैं और पूर्व में लम्बे समय तक टाइगर सर्च अभियान को लेकर पूरे प्रदेश के वन विभाग में एकमात्र विशेषज्ञ पशु चिकित्सक रहे हैं। वहीं कुछ वन्य जीव जानकारों का कहना रहा चूंकि बाघ अभी तक नरभक्षी नहीं हुआ है तो ऐसे में वन विभाग टीम की यह मजबूरी है कि उसे ऐसे ही नहीं मारा जा सकता है, बल्कि उसे पिंजरे में बंद किया जा सकता है, बेहोश करने के लिये ट्रेंकुलाइज किया जा सकता है।
बाघ सर्च अभियान में ‘ट्रेंकुलाइजर एक्सपर्ट’ की भूमिका...!
वहीं राजधानी मुख्यालय से कुछ किमी की दूरी पर बीते डेढ़ माह से जो वन विभाग की टीमों और इस बाघ के बीच जो चूहे-बिल्ली का दौड़ चल रहा है, इस पर जब तरूणमित्र टीम ने प्रदेश के वन विभाग की रिपोर्टिंग में खास स्थान रखने वाले सीनियर जर्नलिस्ट तारा पाटकर से काफी खोजबीन के बाद उनसे दूरभाष पर बातचीत की तो उन्होंने इसके कई सारे पहलू बताये जोकि काफी रोचक, रोमांचक और शानदार रहे। तारा पाटकर बोले कि वैसे तो अब वो अपने गृह क्षेत्र महोबा में निवास करते हैं और बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा अभियान की अगुवाई करते हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने काफी सारी बातें बताई।
बोले कि हां अखबारों में तो रोजाना देख रहा हूं लखनऊ में बाघ पकड़ो अभियान चल रहा है, मगर जब उन्हें यह पता चला कि रविवार को डॉ. उत्कर्ष शुक्ला पहली बार मौके पर पहुंचे। उन्होंने बेहिचक कहा कि डॉक्टर साहब का तो जवाब नहीं, आगे बोले कि हां हो सकता है कि कुछ स्वास्थ्य कारणों के चलते वो अब काफी लम्बे समय से ऐसे खतरनाक अभियानों से दूर रहते हैं। लगता है कि जब वन विभाग की पूरी टीम थक गई तो उन्हें याद किया गया।
आगे कहे कि डॉ. शुक्ला अपने समय में कई सारे ऐसे वन्य जीव सर्च अभियान का प्रमुख हिस्सा रहे हैं और ऐसे में उन्हें ऐसे जानवरों की हरकत का भी अच्छा खास अनुभव है और वो एक शानदार ‘ट्रेंकुलाइजर एक्सपर्ट’ हैं, क्योंकि यह ऐसा काम होता है जैसे बाघ अचानक आपके टारगेट पर दिख गया और बिना समय गंवाये उसे सटीक टारगेट करते हुए ट्रेंकुलाइज करना पड़ेगा।
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