असीम मुनीर को पाकिस्तान ने बनाया फील्ड मार्शल
इस्लामाबाद : पाकिस्तान सरकार ने जनरल असीम मुनीर को फील्ड मार्शल की रैंक दी है, जो सेना में सबसे बड़ी पोस्ट मानी जाती है। पाकिस्तान में फील्ड मार्शल सबसे हाई लेवल रैंक है और इसे फाइव स्टार रैंक के रूप में जाना जाता है। इस पद की सबसे खास बात ये है कि ये रैंक औपचारिक होती है और या फिर युद्धकाल में दी जाती है या फिर युद्ध के दौरान विशेष परिस्थितियों में खास सैन्य उपलब्धियों के हासिल करने पर ये रैंक दी जाती है। पाकिस्तान के इतिहास में दूसरी बार फील्ड मार्शल की रैंक असीम मुनीर को दी गई है जो भारत के ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ पाकिस्तान की ओर से शुरू किए गए ऑपरेशन बन्यनुन मार्सूस में उनके सैन्य नेतृत्व, वीरता और पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए दिया गया है।
पाकिस्तान में कैसे दी जाती है फील्ड मार्शल की रैंक
पाकिस्तान में देश का राष्ट्रपति सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर होते हैं तो वहीं देश में प्रधानमंत्री के पास कार्यकारी शक्तियां होती हैं और वे राष्ट्रीय शासन, सैन्य नियुक्तियों और नीतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं।तो वहीं फील्ड मार्शल की नियुक्ति प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रक्षा मंत्रालय और संभवतः सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के संवैधानिक मार्गदर्शन के साथ एक विशेष अपील के माध्यम से की जाती है, जिसके आधार पर ही असीम मुनीर को ये रैंक मिली है।
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल की शक्तियां
पाकिस्तान में हालांकि फील्ड मार्शल का रैंक अतिरिक्त संवैधानिक प्राधिकार प्रदान नहीं करता और कानून में फील्ड मार्शल की नियुक्ति के लिए कोई स्थायी या नियमित तंत्र नहीं है। यह रैंक कोई अतिरिक्त विधायी, कार्यकारी या न्यायिक शक्तियां प्रदान नहीं करता। पाकिस्तान का संविधान किसी भी व्यक्ति, चाहे वह सैन्य या असैन्य हो, को अस्वीकृत राजनीतिक या प्रशासनिक शक्ति का उपयोग करने से रोकता है।पाकिस्तान के इतिहास में जनरल असीम मुनीर से पहले फील्ड मार्शल की रैंक केवल एक बार 1959 में जनरल मुहम्मद अयूब खान को दिया गया था। अयूब खान पाकिस्तान सेना के कमांडर-इन-चीफ और बाद में देश के राष्ट्रपति बने थे।
असीम मुनीर, एक जासूस का फील्ड मार्शल तक का सफर
जनरल असीम मुनीर का करियर सैन्य खुफिया के क्षेत्र में अत्यधिक सक्रिय और महत्वपूर्ण रहा है। वह इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) और मिलिट्री इंटेलिजेंस (MI) दोनों का प्रमुख रह चुका है और पाकिस्तान में यह उपलब्धि बहुत कम अधिकारियों को ही मिली है। 1986 में सेना में कमीशन प्राप्त करने के बाद मुनीर ने तेजी से रैंक और प्रभाव हासिल किया। साल 2022 में मुनीर को सेना प्रमुख नियुक्त किया गया था।
भारत के पहले फील्ड मार्शल कौन थे
भारत में भी फील्ड मार्शल की रैंक सेना की सबसे बड़ी रैंक मानी जाती है। भारत में फील्ड मार्शल को जनरल का पूरा वेतन मिलता है साथ ही उन्हें उनकी मृत्यु तक एक सेवारत अधिकारी भी माना जाता है। साल 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में जीत के बाद सैम मानेकशॉ को पहली बार फील्ड मार्शल की रैंक प्रदान की गई थी। मानेक शॉ को जून 1972 में सेवानिवृत्त होना था और उनका कार्यकाल छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया और 1 जनवरी 1973 को उन्हें फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था। उन्हें 3 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक समारोह में औपचारिक रूप से फील्ड मार्शल का रैंक दिया गया था। वे इस पद पर पदोन्नत होने वाले पहले भारतीय सैन्य अधिकारी बने थे।
भारत के दूसरे फील्ड मार्शल
सैम मानेकशॉ के बाद साल 1986 में कोडंडेरा मडप्पा करियप्पा यानी केएम करियप्पा को फील्ड मार्शल की रैंक दी गई थी। बता दें कि केएम करियप्पा स्वतंत्र भारत के पहले सेना प्रमुख थे जिन्हें 15 जनवरी 1986 को फील्ड मार्शल की उपाधि से सम्मानित किया गया था। करियप्पा को यह सम्मान उनकी असाधारण सैन्य सेवा और 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में उनके योगदान के लिए दिया गया था।
कई देशों में दी जाती है फील्ड मार्शल की रैंक
फील्ड मार्शल भारतीय सेना में पांच सितारा रैंक और सर्वोच्च प्राप्त करने योग्य रैंक है। यह एक औपचारिक या युद्धकालीन रैंक है, जिसे केवल दो बार प्रदान किया गया है। फील्ड मार्शल के प्रतीक में एक पार किए गए लाठी और कृपाण पर कमल के पुष्पांजलि में राष्ट्रीय प्रतीक शामिल हैं। फील्ड मार्शल की रैंक सामान्य रूप से जनरल के पद से ऊपर होती है। भारत, पाकिस्तान सहित यूके, जर्मनी सहित कई देशों में ये सम्मान प्रसिद्ध है।
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