चमन लाल महाविद्यालय में बौद्धिक संपदा अधिकार पर साप्ताहिक व्याख्यान माला का समापन

चमन लाल महाविद्यालय में बौद्धिक संपदा अधिकार पर साप्ताहिक व्याख्यान माला का समापन

रुड़की/लंढौरा (देशराज पाल)।चमन लाल महाविद्यालय में बौद्धिक संपदा अधिकार पर विद्वत जनों का साप्ताहिक  व्याख्यान कार्यक्रम का समापन  महाविद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष राम कुमार शर्मा ने दीप प्रज्वलित कर किया। मुख्य वक्ता के रूप में प्रथम दिन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार से डॉ.श्रेयांश भारद्वाज तथा अन्य सत्रों में डॉ. गिरीश कपिल लॉ कॉलेज प्राचार्य तथा डॉ. निरमेश शर्मा एवं डॉ. अरविंद कुमार तथा डॉ. हेमंत पवार उपस्थित रहे। समापन के अंतिम सत्र में डॉ. प्रशांत कुमार डीएवी कॉलेज देहरादून से आमंत्रित किए गए।डॉ. निरमेश ने अपने वक्तव्य में बताया कि हमारे राष्ट्रगान का पेटेंट नहीं हुआ है। आगे उन्होंने बताया कि जब गूगल पर कुछ भी सर्च किया जाता है तो इमेज के साथ कॉपीराइट लिखा हुआ आता है यह लीगल प्रोटेक्शन देता है। डॉ. पवार ने बताया कि पेटेंट एक निश्चित समय के लिए लगभग 20 साल के लिए किया जाता है l. IPR के इतिहास से भी अवगत कराया। 1847 में आईपीआर की अवधि 42 साल की थी ,1970 में आईपीआर के नियम आज भी लागू किए गए हैं। 1856 में भारत में पेटेंट की अवधि 30 साल थी। प्राचीन भारत में बौद्धिक संपदा अधिकार  नहीं थे क्योंकि भारतीयों ने अपने ज्ञान का कोई श्रेय लेने की इच्छा नहीं रखी थी। किंतु अंग्रेजों के आने के बाद स्थिति में बदलाव आया। संसार का कोई भी देश ऐसा नहीं है जो पूरी तरीके से आत्मनिर्भर हो एक दूसरे के उत्पाद सभी देश उपयोग करते हैं। अलीगढ़ के  लॉकर, असम की चाय इत्यादि का पेटेंट 20 साल के लिए होता है। उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति अपनी नवाचार का पेटेंट करा सकता है जिससे कि वह अपने पेटेंट के द्वारा अपने नवाचार को सुरक्षित कर सकता है साथ ही उन्होंने अपने व्याख्यान में विभिन्न उदाहरणों की सहायता से यह भी समझाया कि किस प्रकार बौद्धिक संपदा अधिकार का उल्लंघन करने से कितनी कंपनियां पर मुकदमे इत्यादि हो जाते हैं। कोई भी व्यक्ति अपने सेंटर पर डोमिनोज एवं पिज़्ज़ा का प्रतीक नहीं लगा सकता क्योंकि उसको कॉपीराइट का अधिकार नहीं होता है। इस अवसर पर उपस्थित आइक्यूएसी समन्वयक डॉ. दीपा अग्रवाल ने कहा कि आज आधुनिक समय में  पेटेंट अथवा कॉपीराइट जैसे मुद्दों पर भी बात होनी जरूरी है इसका भी दुरुपयोग किया जा रहा है।डिजिटल शिक्षण कार्य से भी छात्र-छात्राओं को सुविधा मिली है। नवाचार के माध्यम से शिक्षा को आसान बनाया जा सकता है जिससे छात्र-छात्राओं में शिक्षा के प्रति रुचि उत्पन्न हो सके। कार्यक्रम में उपस्थित महाविद्यालय प्राचार्य डॉ. सुशील उपाध्याय ने कहा कि छात्र-छात्राओं को ऐसे विषयों की जानकारी समय-समय पर देना आवश्यक है जिससे छात्रों में नवाचार हेतु विचार उत्पन्न हो सके। नवाचार के माध्यम से शिक्षा को और बेहतर बनाया जा सकता है। नेक के दृष्टिगत भी इसका अपना महत्व है। नवाचार को बढ़ावा देने से छात्र-छात्राओं में कौशल विकास का जन्म होता है। कार्यक्रम समन्वयक डॉ.अनामिका चौहान ने भी बौद्धिक संपदा अधिकार की विषय वस्तु पर प्रकाश डाला और बताया कि किस प्रकार कॉपीराइट एवं पैड जनरल प्रकाशित किए जा रहे हैं जिसमें गुणवत्ता की भारी कमी है। हमें अपने रिसर्च पेपर पर उसकी गुणवत्ता को ध्यान में रखकर ही प्रकाशित करना चाहिए। यह कार्यक्रम ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यम से संपन्न कराया गया। इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त शिक्षक एवं गैर शिक्षक कर्मचारी उपस्थित रहे।

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