विशेष राज्य के दर्जे से पिछड़े-अतिपिछड़ों व दलितों को होगा सर्वाधिक लाभ: राजीव रंजन
पटना- बिहार के पिछड़े-अतिपिछड़े व दलित समाज के विकास के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग को बेहद जरूरी बताते हुए जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व प्रवक्ता श्री राजीव रंजन ने आज कहा है कि जातिगत गणना के नतीजों से यह साफ़ हो गया है कि बिहार में पिछड़े-अतिपिछड़े व दलित समाज के लोग सर्वाधिक हैं। जाहिर है कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने पर राज्य की कुल जनसख्या में लगभग 80ः हिस्सेदारी रखने वाले इन्हीं लोगों को सबसे अधिक लाभ मिलेगा। यह समाज तेजी से प्रगति करेंगे और इनके माथे से गरीबी का ठप्पा हट जाएगा। लेकिन इस समाज के लोगों को बंधुआ मजदूर समझने वाली भाजपा इनकी प्रगति की बात सोच भी नहीं सकती। यही वजह है कि यह लोग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से मना कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि विशेष राज्य का दर्जा देने के नियमों के मुताबिक यदि किसी राज्य की सीमा से अगर कोई देश की सीमा लगती है, तो उसे विशेष राज्य का दर्जा दिया जा सकता है। इसी तरह आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य को भी विशेष राज्य का दर्जा देने की बात नियमों में कही गयी है। बिहार दोनों मानकों को पूरा करता है। बिहार की सीमा से नेपाल की अंतरराष्ट्रीय सीमा भी लगती है, वहीं हालिया रिपोर्ट के मुताबिक आजादी के 75 वर्षों बाद भी बिहार में 34ः लोगों की सालाना आय 6000 रु से भी कम है। रघुराम राजन रिपोर्ट में भी बिहार को सबसे कम विकसित प्रदेशों की श्रेणी में रखा गया था। इसके बाद भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देना भाजपा की केंद्र सरकार के बिहार के प्रति सौतेले व्यवहार का जीवंत प्रमाण है।
जदयू महासचिव ने कहा कि वर्तमान में 11 राज्यों को विशेष राज्य की श्रेणी में रखा गया है। इनमें पूर्वाेत्तर के सभी राज्य शामिल हैं। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड और हिमाचल को भी विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त है। ऐसे भाजपा को बताना चाहिए कि बिहार को इससे वंचित क्यों रखा जा रहा है?
उन्होंने कहा कि वास्तव में चाहे जातिगत गणना हो, आरक्षण हो या विशेष राज्य का दर्जा भाजपा वैसे किसी भी काम का समर्थन नहीं कर सकती जिससे पिछड़े-अतिपिछड़े व दलित समाज को फायदा मिले। आज भी भाजपा की निगाह में इस समाज के लोगों का वजूद वोट बैंक से अधिक नहीं है। भाजपा यह जान ले कि विशेष राज्य का दर्जा बिहार का हक है और बिहारवासी इसकी मांग को बुलंद करते रहेंगे।
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