फिर चला मादक, मोहक मंजरी का मैजिक

फिर चला मादक, मोहक मंजरी का मैजिक

मुंबई। इंसानी दिमाग के साथ ये अच्छी बात है कि ये आघातों को भुलाता चलता है। बहुत दर्दनाक बातें भुलाने में उसे तकलीफ कम होती है। कोरोना के दिन कुछ ऐसे ही दिन रहे हैं। शायद ही ऐसी कोई गली या मोहल्ला रहा होगा देश का, जहां किसी न किसी के अपने ने कोरोना के संक्रमण में आकर दम न तोड़ा हो। उसी कालखंड की ये कहानी है फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’। देखा जाए तो ये तीन कहानियों का एक संगम है। साहिर लुधियानवी के लिखे बेहद खूबसूरत से गीत से फिल्म का नाम लिया गया है। और, कोशिश की गई है एक ऐसी फिल्म बनाने की जो जिंदगी को हर मुश्किल वक्त में खूबसूरत बना सकने वाली बातें कर सके।

तीन कहानियों के संगम पर चमके सिद्धांत
फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’ एक फिल्मावली जैसी है। इसमें तीन कहानियां बुनने में एक ऐसे इंसान की मदद ली गई है, जिसके पास दुनिया में खोने को कुछ है ही नहीं। वह घर के सारे जरूरी सामान पहुंचाता है लेकिन समाज का वही सबसे गैर जरूरी व्यक्ति भी है। ये आम इंसान किसी भी कालखंड का सबसे जरूरी पहिया होता है। लेकिन सफर पूरा होते ही सबसे पहले सड़क किनारे उतरकर भी उसे ही खड़ा होना होता है। यहां इस किरदार में हैं अभिनेता सिद्धांत कपूर। शक्ति कपूर का बेटा होने का तमगा उन पर न लगा होता तो इस फिल्म के बाद उनके पास फिल्में न सहीं तो कम से कम वेब सीरीज के प्रस्तावों की कतार जरूर लगी होती।

कहानियों की चाल से चलती जिंदगी
जैसे सलमान खान की फिल्म ‘जुड़वा’ में बाल कलाकार के तौर पर करियर शुरू करने वाले सिद्धांत को अब जाकर अभिनय का अपना असली खांचा मिला है। कुछ कुछ ऐसा ही करतब इस फिल्म में मंजरी फडनिस ने दिखाया है। सिद्धांत की कहानी अगर इस फिल्म का पूरब है तो मंजरी की कहानी पश्चिम। कथक के नाच के बीच थिरकती जीवन की उलझनों और पीढ़ियों के बीच की सरगम के कभी ताल खोने तो कभी आरोह में जाने के बीच एक अटकती-भटकती कहानी उन दो जोड़ों की भी है जिनके जोड़ीदार बदल गए हैं तीन परिवारों के बहाने जिंदगी के तीन पड़ावों की शक्लों से नकाब उतारती चलती फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’ की चाल अच्छी है।

यहां आकर अटक गई फिल्म
फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’ की रफ्तार कमजोर होती है इसकी पटकथा की बुनावट से। ये कोरोना काल की टीस को तो कुरेदती है लेकिन इसकी बुनावट इतनी अधपकी है कि तीनों कहानियों का जो रस एक दूसरे में मिलकर सिनेमा का स्वाद बनने वाला था, वह तीन अलग अलग व्यंजनों में बंट गया है। अच्छा होता कि बजाय इनको पिरोने के चक्कर में ये तीन अलग शॉर्ट फिल्मों के रूप में ही बना ली जातीं। निर्देशक आरती बागड़ी ने फिल्म की लिखाई में अपने साथ फिल्म के निर्माताओं में भी शामिल शाकिर खान को भी क्रेडिट दिया है और इसी से फिल्म के पटरी से उतर जाने का संकेत भी समझ में आ जाता है।

मादक, मोहक मंजरी का मैजिक
सिद्धांत कपूर के अलावा फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’ में मंजरी फडनीस ने भी कमाल काम किया है। चढ़ती उम्र के साथ उनका जादू बढ़ता जा रहा है। ओटीटी के इस दौर में मंजरी को अब भी कोई प्रौढ़ प्रेम कहानी विजय सेतुपति और तृषा की ‘96’ जैसी मिले तो वह कमाल कर सकती है। उनका रूप और लावण्य परदे पर कमाल दिखता है, आंखों उनकी अब भी कमाल करती हैं। बस उनकी अदाकारी को किसी अच्छे निर्देशक की आंच मिलना बाकी है। सीमा बिस्वास का अपना अलग आभा मंडल है। वह परदे पर दिख भर जाएं तो लोग खुश हो जाते हैं। दूसरे कलाकारों में त्रिमाला अधिकारी ने अपनी अदाकारी का कमाल बहुत मजबूती से दिखाया है। उनको बिल्कुल सही रोल उनकी प्रतिभा के अनुरूप मिला भी है। इंद्रनील गुप्ता और रोहित खंडेलवाल के किरदार खांचे में सधे हैं, दोनों कलाकारों ने अभिनय भी वैसा ही किया है। बरखा सेनगुप्ता से जो उम्मीदें थीं, उनकी कसक अभी पूरी होनी बाकी है।

जी 5 ने कराया ‘भैयाजी’ से मुकाबला
तकनीकी रूप से फिल्म कोई खास कमाल अलग से उल्लेख करने लायक नहीं करती है। सिनेमैटोग्राफी ठीक है। संपादन औसत है और संगीत औसत से कमतर। ओटीटी जी5 की अपनी एक अलग पहचान हिंदी की ओरिजिनल फिल्मों को लेकर बन सकती है। ‘सिर्फ एक बंदा काफी है’ जैसी फिल्मों ने उसकी ब्रांडिंग भी बेहतर की है, लेकिन ‘भैयाजी’ की रिलीज के दिन ही फिल्म ‘चलती रहे जिंदगी’ को भी अपने ओटीटी पर रिलीज करके जी5 ने दोनों ही फिल्मों के लिए समस्या खड़ी कर दी है। ‘भैयाजी’ वैसे ही एक खराब फिल्म है। लेकिन, ‘चलती रहे जिंदगी’ को जो थोड़े बहुत दर्शक ओटीटी की इस हफ्ते की इकलौती फिल्म मानकर देख भी लेते, वे भी सब ‘भैयाजी’ की तरफ चले जाएंगे।

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