महाकुंभ: संगम नोज़ तक पहुंचाने का ले रहे 100 से 500!

फाफामऊ पांटून पुल से एक ही मार्ग पर स्नानार्थी, ई रिक्शा व बाइकों का रेला

महाकुंभ: संगम नोज़ तक पहुंचाने का ले रहे 100 से 500!

संगम से लौटकर रवि गुप्ता

  • यात्रियों की पीड़ा, 10 से 12 किमी दूर संगम नोज़, वसूले जा रहे मनमाने रेट ,

लखनऊ। भईया, शाहजहांपुर से लंबी दूरी तय करते हुए मेरा पूरा परिवार यहां प्रयागराज महाकुंभ आया, मंशा यही थी कि संगम में जाकर सबके संग स्नान करेंगे...मगर फाफामऊ पांटून पुल से संगम की दूरी जब 10 से 12 किमी बताई गई तो मन हारने लगा। फिर वहीं मार्ग पर एक बाइक वाल से बात हुई तो बोला कि एक सवारी का 100 रुपये नागवासुकी तक और 500 रुपये मेन संगम नोज़ व स्थल तक ले जायेंगे, इतना सुनते ही जब देखा कि हम सभी 14-15 परिवारीजन हैं तो...हिसाब नहीं बैठा, आखिरकार थक-हारकर यहीं गंगा जी में ही डुबकी लगा ली और अपने अंत: मन से ही संगम स्थल को प्रणाम कर लिया।

यह पीड़ा तरूणमित्र टीम को जमीनी रिपोर्टिंग के दौरान एक बुजुर्ग महिला ने बताई, देखा जाये तो अकेले यह उनका दुख नहीं था बल्कि वहां गंगा घाट के पास मेन संगम नोज़ या स्थल तक नहीं जा पाने वाले सैकड़ों ऐसे यात्रियों व स्नानार्थियों की रही, जोकि वहां नदी की धारा के ठीक समानांतर अवैध रूप से फर्राटा भर रहे तमाम ई-रिक्शा, ई-ऑटो और बाइक के आते-जाते टक्कर से चोटिल हो जाते...लेकिन क्या कहें ‘अव्यवस्था पर आस्था’ इस कदर हावी रही कि ये अनचाहे चोट भी उनके 144 साल बाद आयोजित हुए महाकुंभ जैसे महाआयोजन के प्रति प्रेम, संवेदना और पवित्रता को नहीं डिगा सके।

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अस्थाई बस अड्डे बनाये, संगम क्षेत्र में लोकल परिवहन से दूरी!
अब इसे परिवहन विभाग की एक मामले में दूरदर्शिता कहें तो वहीं जनसुविधा से जुड़े दूसरे प्रकरण में मजबूरी या हीलाहवाली कि एक ओर जहां महाकुंभ आयोजन से पहले खासकर बनारस और प्रयागराज में अस्थाई बस अड्डे बनाये गये ताकि सभी श्रेणी के गाड़ियों की पार्किंग में कोई समस्या न आये...मगर फिर वही विभागीय टीम इस बात को लेकर क्यों चूक गई कि संगम क्षेत्र का जो वृहद एरिया है जहां अंदर की सीमाओं में कई संपर्क मार्ग हैं जोकि सीधे संगम नोज़ या संगम स्थल तक जुड़ते हैं। वहां तक के सुविधाजनक आवागमन को लेकर लोकल ट्रांसपोर्ट सेवा का रोडमैप क्यों नहीं बनाया।

10 हजार एकड़ में संगम क्षेत्र, लोकल ट्रांसपोर्ट सीमित!
गौर हो कि सीएम योगी ने स्वयं इस तथ्य को रखा है कि जो संगम क्षेत्र पहले काफी सीमित रहा, अब उनकी सरकार में इसका दायरा 10 हजार एकड़ में फैल चुका है ताकि हर तरफ से आने-जाने वाले संगम क्षेत्र में स्नान आदि के लिये दिक्कत न होने पाये। वहीं दूसरी तरफ इतने व्यापक संगम क्षेत्र में लाखोंं की संख्या में रोजाना पहुंंचने वाले स्नानार्थियों के लिये जब सीमित लोकल ट्रांसपोर्ट के तौर पर चंद वाहनों की संख्या तो फिर परिवहन संबंधित अव्यवस्थायें तो होनी ही थी।

महाकुंभ जिला: डेडिकेटेड आरटीओ-एआरटीओ होता तो...!
महाकुंभ के व्यापक आयोजन से पूर्व ही योगी सरकार ने बेहतर शासन-प्रशासन व्यवस्था को प्रयागनगरी में चुस्त-दुरूस्त रखने की मंशा से अलग से सूबे के 76वें जनपद महाकुंभनगर की अनुमति दी, मगर सुचारू रूप से मेला क्षेत्र में लोकल ट्रांसपोर्ट सिस्टम की मॉनीटरिंग और ऑपरेटिंग करने वाले किसी भी जनपद स्तर के परिवहन अधिकारी (डेडिकेटेड आरटीओ-एआरटीओ) की तैनात नहीं की। व्यवस्था के जानकार बताते हैं कि जब मेला क्षेत्र के लिये अलग से डीएम, डीआईजी और अन्य पुलिस अधिकारियों व प्रशासनिक टीमों की तैनाती हो सकती है, जिनका पूरा फोकस महाकुंभ मेला क्षेत्र पर ही होगा तो फिर परिवहन साधन के नजरिये से परिवहन विभाग की तरफ से अतिरिक्त नियुक्ति क्यों नहीं की गई।

उनके अनुसार प्रयागराज जनपद में वैसे तो आरटीओ-एआरटीओ अफसर कार्यरत हैं, मगर इनके ही ऊपर मेला क्षेत्र की भी परिवहन व्यवस्थायें डालने से संभवत: कार्य विभाजन हो गया। ऐसे में मेला क्षेत्र के अधिकृत अधिकारियों की तरफ परिवहन संबंधी जो भी गाइडलाइंस आती रही, ये प्रयागराज जनपद के आरटीओ-एआरटीओ फॉलो करते रहे...मगर यह स्पष्ट रहा कि उनका मेला क्षेत्र में व्यवस्थित परिवहन सेवा के मद्दनेजर कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं रहा, जिसका खामियाजा अभी भी महाकुंभ मेला क्षेत्र में आने-जाने वाले स्नानार्थियों को भुगतना पड़ रहा है।

क्या बोले परिवहन मंत्री...!
इस प्रकरण पर सूबे के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह का कहना रहा कि आपके जरिये प्रकरण संज्ञान में आया है, इसको दिखवाते हैं, आगे क्या हो सकता है। 

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