भारत-पाक संघर्ष: सैन्य पराक्रम की गूंज के बीच इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गिरती साख : सिकंदर यादव
भारतीय सेना की अभूतपूर्व रणनीतिक बढ़त को झूठे दावों और सनसनीखेज रिपोर्टिंग से मीडिया ने किया धूमिल
गाजियाबाद। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य संघर्ष ने जहां भारतीय सेना के अद्भुत पराक्रम और अत्याधुनिक तकनीकी क्षमता का परिचय दिया, वहीं भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया—विशेषकर टीवी चैनलों—की रिपोर्टिंग ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारतीय सेना की सटीक और योजनाबद्ध कार्रवाई ने दुनिया को चौंका दिया। भारत ने दुश्मन के एयरबेस और रणनीतिक ठिकानों पर प्रभावी हमले किए और पाकिस्तान की ओर से किए गए अधिकतर हमलों को अपनी प्रभावशाली रक्षा प्रणाली से विफल कर दिया।
जहां एक ओर सीमा पर सेना विजय के झंडे गाड़ रही थी, वहीं दूसरी ओर भारतीय टीवी चैनलों की स्तरहीन और अतिरंजित रिपोर्टिंग देश की साख पर सवालिया निशान लगा रही थी। कुछ चैनलों ने तो यहां तक दावा कर दिया कि भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच गई है, पीओके पर कब्जा कर लिया गया है, कराची नष्ट हो गया है और पाकिस्तान के सेना प्रमुख को बंदी बना लिया गया है। एक चैनल ने तो यहां तक कह डाला कि पाकिस्तान में तख्ता पलट हो गया है।
ऐसी भ्रामक रिपोर्टों का स्रोत प्रामाणिक समाचार एजेंसियां नहीं, बल्कि सोशल मीडिया की अपुष्ट खबरें थीं। एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के चौथे स्तंभ से इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता की उम्मीद नहीं की जा सकती। इससे न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को धक्का पहुंचा, बल्कि देशवासियों का मीडिया पर बचा-खुचा विश्वास भी डगमगाने लगा है।
संघर्ष विराम की घोषणा जिस प्रकार अचानक अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा की गई, उसने भी कई सवाल खड़े किए हैं। जब भारतीय सेना हर मोर्चे पर पाकिस्तान पर हावी थी, तब यह सीजफायर क्यों और कैसे हुआ? इसके अलावा, संघर्ष के दौरान चीन और तुर्की जैसे देशों का पाकिस्तान के पक्ष में खड़ा होना और भारत के लिए कोई भी देश खुलकर समर्थन में न आना, हमारी विदेश नीति की दिशा पर भी पुनर्विचार की आवश्यकता दर्शाता है।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा वर्षों से प्रचारित मजबूत अंतरराष्ट्रीय संबंध इस संकट के समय कहीं दिखाई नहीं दिए। यहां तक कि ‘घनिष्ठ मित्र’ माने जाने वाले डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में तौलते हुए दोनों को महान राष्ट्र कहा, जो भारत के गौरव और कूटनीति को चुनौती देता है।
इस पूरे घटनाक्रम ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एक ओर जहां सेना देश की गरिमा और सुरक्षा के लिए सतत प्रयासरत है, वहीं मीडिया को भी अपनी भूमिका को समझने और अधिक उत्तरदायी बनने की आवश्यकता है, ताकि देश की प्रतिष्ठा और जनता का विश्वास सुरक्षित रह सके।
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