विपक्ष मुक्त चुनाव!
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पिछले कुछ महीनों में केंद्रीय एजेंसियों की कार्यवाही में झारखण्ड मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन, दिल्ली मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल सहित विपक्षी नेताओं को जेल भेजा गया है, उससे लोकसभा चुनाव में भाजपा को फायदा हो या न हो, लेकिन सरकार की नीयत पर सवाल उठ रहे हैं। एनडीए सरकार क़े 400+ अभियान क़े रास्ते में विपक्ष क़े नेताओं की गिरफ्तारियां मिशन को निष्कंटक बनाने क़े लिए हो सकती हैं। हालांकि विपक्षी नेताओं की इन गिरफ़्तारियों से ये फायदा अवश्य हुआ है कि बिखरा हुआ विपक्ष पुनः एकजुट होने को मजबूर हुआ है।
विपक्षी एकता की ये कोशिशें कितनी परवान चढ़ेंगी ये विपक्षी महारैली में अवश्य दिखेगा जो केजरीवाल गिरफ़्तारी मुद्दे पर 31 मार्च को आयोजित हो रही है। यह एकता झारखण्ड क़े मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन क़े समय नहीं दिखी, हालांकि वे भी झारखंड के चुने हुए मुख्यमंत्री थे और प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें इस्तीफा देने को बाध्य किया था। केजरीवाल की गिरफ़्तारी को लेकर विपक्ष जितना सक्रिय है, अन्य विपक्षी नेताओं को लेकर भी होना चाहिए था। ईडी ने केजरीवाल को दिल्ली शराब घोटाले का सरगना और मुख्य साजिशकर्ता करार दिया है। उन पर हवाला के जरिए करोड़ों रुपए इधर उधर करने क़े भी आरोप हैं।
गिरफ़्तारी भी दिल्ली उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों द्वारा केजरीवाल को कानूनी संरक्षण देने से इंकार क़े बाद हुई है। बुनियादी सवाल यह है कि क्या केजरीवाल ही विपक्ष का केंद्रीय मुद्दा हैं। विपक्ष के महत्वपूर्ण घटक उप्र, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और उड़ीसा आदि राज्यों में सक्रिय और प्रासंगिक हैं। वे भी भाजपा-एनडीए के लिए चुनौती बनने में सक्षम हैं, पर इनके लिए विपक्षी एकता नहीं दिखी। फिलहाल ये सभी दल इंडिया गठबंधन की छतरी तले एकजुट होने का दिखावा कर रहे हैं, लेकिन ऐसा प्रतीकात्मक ही है, क्योंकि उनमें बिखराव के हालात अभी समन्वय में तबदील नहीं हुए हैं।
विपक्ष यह स्थापित करने में लगा है कि मोदी सरकार में लोकतंत्र और संविधान सुरक्षित नहीं हैं, लेकिन कमोबेश इस वक्त विपक्ष भी केजरीवाल को बचाने में सक्षम नहीं है। फिर जनता भी विपक्षी एकता की सच्चाई जानती है और ये भी जानती है कि लोकतंत्र और संविधान इतने कमजोर नहीं होते कि एक मुख्यमंत्री को जेल हो जाने से ढह जाएं। ईडी, सीबीआई, आयकर आदि ने पहले की सरकारों के दौरान भी विपक्ष के खिलाफ कार्रवाइयां की थीं और आज भी कर रहीं हैं। केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी राजधानी दिल्ली की 7 और पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर जनादेश की दिशा और दशा तय करने में सक्षम हो सकती हैं।
इस गिरफ्तारी से दिल्ली और पंजाब में कुछ हद तक मतदाताओं की सहानुभूति केजरीवाल के पक्ष में कारगर साबित हो सकती है, लेकिन वह चुनावी लहर की दिशा नहीं बदल सकती। विपक्ष यह भी प्रचार कर रहा है कि भाजपा सरकार विपक्ष के उन मुख्यमंत्रियों अथवा नेताओं को भी जेल में डलवा सकती है, जो उसके लिए राजनीतिक खतरा पेश कर रहे हों, लेकिन यह हर सरकार करती आई है। भारत एक संवैधानिक देश है, जहां सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के भी कई फैसलों को पलटा है, इसलिए ऐसी चिंताएं फिजूल हैं। बहरहाल चुनाव अपेक्षाकृत निष्पक्ष व स्वतंत्र हों, चुनाव आयोग इस प्रयास में है।
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