जीनोम संपादित धान की दो किस्मों का भारतीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि
By Tarunmitra
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नई दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा विश्व की पहली जीनोम संपादित धान की किस्में-डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1 विकसित करना एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक नवाचार का प्रतीक तो है ही, इससे देश की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी। गौरतलब है कि हमारे देश में खाद्य सुरक्षा के लिए धान का पहले से ही महत्वपूर्ण स्थान है और अब इन किस्मों की खेती से धान के उत्पादन में करीब 45 लाख टन का इजाफा होगा, तो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी करीब 20 फीसदी की कमी आएगी।
सबसे उल्लेखनीय बात तो यह है कि वैश्विक जल संकट के दौर में इन किस्मों की खेती में कम पानी की खपत होगी और फसल पककर तैयार होने में भी कम समय लगेगा, जिससे किसानों को अगली फसल की बुआई के लिए पर्याप्त समय मिल सकेगा। इसलिए अगर यह उम्मीद जताई जा रही है कि धान की ये नई किस्में दूसरी हरित क्रांति की शुरुआत में अग्रणी भूमिका निभाएंगी, तो हैरत नहीं होनी चाहिए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च, हैदराबाद द्वारा डीआरआर धान 100 (कमला) को सांबा महसूरी (बीपीटी 5204) धान के बीज से विकसित किया गया है, जो उच्च उत्पादन, सूखा को सहन करने और सांबा महसूरी की तुलना में कम समय में तैयार होने में सक्षम है। दूसरी किस्म पूसा डीएसटी राइस 1 को आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा एमटीयू 1010 नामक व्यापक रूप से खेती की जाने वाली किस्म से विकसित किया गया है। जीनोम संपादन तकनीक से विकसित धान की इन दोनों किस्मों में बीजों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किया गया है और कोई विदेशी डीएनए को जोड़ा नहीं गया है, इसलिए इससे किसी भी तरह के बुरे प्रभाव का खतरा भी नहीं है।
कृषि मंत्री द्वारा प्रस्तावित ‘माइनस 5 और प्लस 10’ के नए सूत्र से, जिसका लक्ष्य चावल की खेेती के क्षेत्र को 50 लाख हेक्टेयर कम करके उत्पादन को एक करोड़ टन बढ़ाना है, मुक्त भूमि का उपयोग दाल और तिलहन की खेती के लिए किया जा सकता है, जो देश की आयात निर्भरता को कम करने में सहायक होगा। आज जब जलवायु परिवर्तन, बढ़ती आबादी और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियां हमारे सामने हैं, आईसीएआर की यह उपलब्धि एक नई उम्मीद जगाती है। यह न केवल भारतीय कृषि को सशक्त बनाएगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत को खाद्य उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र भी बनाएगी। इस नवाचार को अपनाने और इसे किसानों तक पहुंचाने के लिए सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि हम एक समृद्ध और पर्यावरण के प्रति जागरूक देश का निर्माण कर सकें।
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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है।
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