लोकतंत्र की अकल्पनीय जीत हैं ये परिणाम

लोकतंत्र की अकल्पनीय जीत हैं ये परिणाम

विशेष संपादकीय

24 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर क़े उदघाटन क़े समय निर्मित वातावरण क़े मद्देनज़र कोई भी राजनीति का ज्ञानी यह परिकल्पना नहीं कर सकता था कि चंद महीने बाद इसी धरती पर उस पार्टी का प्रत्याशी पराजय हासिल कर सकता है जिसने 500 वर्ष बाद अयोध्या में रामलला क़े मंदिर निर्माण का गौरव हासिल किया। वास्तव में 2024 क़े लोकसभा चुनाव क़े परिणाम न सिर्फ़ भाजपा बल्कि हर दल क़े लिए अप्रत्याशित हैं। देश भर में भाजपा -कांग्रेस क़े बाद सबसे बड़ा दल बनने की कतार में खड़ी समाजवादी पार्टी भी इस तथ्य की परिकल्पना नहीं कर पा रही होगी। कभी 2 सांसदों से 303 तक पहुँचने वाली भारतीय जनता पार्टी क़े लिए यह अभूतपूर्व स्थिति है। एग्जिट पोल्स की रोशनी में 400 सीटों की कल्पना में डूबी भाजपा अब केन्द्र में तीसरी बार सत्ता प्राप्ति क़े लिए नीतिश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे सहयोगियों की ओर देखने को विवश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क़े लिए तो यह विशेष परिस्थिति है। हो सकता है कि वे निरंतर तीसरी बार प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल कर किसी गैर कांग्रेसी सरकार क़े मुखिया होने की उपलब्धि प्राप्त कर भी लें लेकिन एक लंगड़ी सरकार का मुखिया होना उन्हें कितना रास आएगा, यह बेहद महत्वपूर्ण सवाल है। वास्तव में देखा जाए तो यह परिणाम भारतीय मतदाताओं की परिपक्वता क़े परिचायक भी हैं। भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व और सरकार जिस तरह निरंकुशता भरे निर्णय ले रही थी, छद्म राष्ट्रवाद और कट्टरता पूर्ण वातावरण का निर्माण कर रही थी, वह मतदाताओं क़े लिए असहज था। अनेक भाजपाई सांसदों या उम्मीदवारों ने यहां तक कहना आरम्भ कर दिया था कि तीसरी बार सत्ता में आने पर भाजपा सरकार संविधान का आधार ही परिवर्तित कर देगी। आरक्षण, राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, सीएए जैसे मुद्दों को सत्ता का आधार समझकर केंद्रीय नेतृत्व आम भारतीय मानस को भूल चुका था, जो बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी क़े मकडजाल में उलझकर जीवन जीना भूल सा चुका था। इन लोकसभा चुनाव क़े जरिये इसी मतदाता ने यह संदेश दे दिया है कि सत्ता भले ही भाजपा या एनडीए बना ले, लेकिन आम जनजीवन की त्रासदियों को आसान बनाना सरकार का काम है। कांग्रेस ने जिस तरह न्याय की 5 गारंटियां दीं, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में इन गारंटियों को लागू कराया, उसने भी मतदाता को आकर्षित किया। यही वज़ह है कि कांग्रेस अपनी लोकसभा सीटों की संख्या को तीन अंकों तक पहुँचाती दिख रही है। कांग्रेस की इस सफलता ने उसे आत्मविश्वास दिया है। भले कांग्रेस अब विपक्ष में भी बैठे लेकिन मतदाताओं ने उसे शक्ति दी है कि वह सत्ता क़े गलत कामों को रोक सकती है। अब जरुरत इस बात की भी है कि कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल 'इंडिया गठबंधन' को मिली इस सफलता और और जनता क़े विश्वास को अक्षुण्य बनाएं और एकजुटता बनाए रखें। मतदाता ने अपना काम कर लोकतंत्र को जीवित रखने का काम किया है। विपक्ष में अब चाहे एनडीए रहे या इंडिया गठबंधन, उसके हाथों में इतनी शक्ति होगी कि वह लोकतंत्र को सुदृढ़ कर सके।

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