गन्ने का रस पीलाकर मनाया जैनियों ने अक्षय तृतीय का पर्व
लखनऊ। जैन धर्म प्रवर्धिनी सभा लखनऊ के अध्यक्ष अतुल कुमार जैन ने अक्षय तृतीया के पर्व पर जैन अनुयायियों द्वारा डालीगंज,सीतापुर ब्रांच रोड, पर गन्ने के जूस का वितरण किया। अक्षय तृतीया का जैन धर्म में महत्व के बारे में बताया कि अक्षय तृतीया, जिसे वैशाख शुक्ल तृतीया भी कहा जाता है, जैन धर्म में अत्यंत पावन और शुभ पर्व माना जाता है। यह पर्व विशेष रूप से पहले तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) से जुड़ा हुआ है। जैन परंपरा में इस दिन का विशेष महत्व तप, त्याग और संयम से जुड़ा हुआ है।
जैन धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान ऋषभदेव ने दीर्घकालीन तपस्या और उपवास के पश्चात इसी दिन आहार (गन्ने का रस) ग्रहण कर अपनी तपस्या पूर्ण की थी। उन्होंने लगातार 13 महीने और 13 दिन तक केवल उपवास किया था, और जब वे आहार के लिए निकले, तो किसी को यह नहीं पता था कि एक मुनि को किस विधि से आहार दिया जाता है।
अंततः राजा श्रेयांस ने विधिपूर्वक गन्ने के रस से उन्हें आहार कराया। यही घटना “अहिंसा, तप और त्याग” की पराकाष्ठा का प्रतीक बन गई। इसी कारण, जैन समुदाय इस दिन को “आहार दान महोत्सव” के रूप में भी मनाता है। कई श्रद्धालु इस दिन तपस्या करते हैं, उपवास रखते हैं और मुनिराजों को विधिपूर्वक आहार कराते हैं। कुछ स्थानों पर भगवान ऋषभदेव को गन्ने के रस का अभिषेक भी किया जाता है। “अक्षय” का अर्थ होता है – जो कभी क्षय न हो।
इस दिन किया गया कोई भी पुण्य कार्य अनंत गुना फलदायी माना जाता है। जैन धर्म में यह दिन तप, दान और संयम का अक्षय फल देने वाला माना गया है। देशभर में जैन समाज के मंदिरों में विशेष पूजन, रथयात्रा और प्रवचन का आयोजन किया जाता है। साधु-साध्वियों द्वारा तप की महिमा पर प्रवचन होते हैं और श्रद्धालु बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। अक्षय तृतीया केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह त्याग, संयम और आत्मशुद्धि का संदेश देता है। जैन धर्म में यह दिन आत्मकल्याण और मोक्ष मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है।
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