सबक सिखाने के लिए बलूच ने लिया बदला, 10 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए
By Tarunmitra
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नई दिल्ली। पहलगाम में आतंकी हमले के दो दिन बाद, क्वेटा के पास बलूच विद्रोहियों ने एक विस्फोट किया, जिसमें दस पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। बलूच विद्रोही लगातार मजबूत होते जा रहे हैं, जिससे भारत को जैसे को तैसा वाले अंदाज में बदला लेने का अवसर मिल सकता है। हमें बालाकोट जैसा हवाई हमला करने या उरी के बाद की तरह सर्जिकल स्ट्राइक करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि पाकिस्तान यही उम्मीद कर रहा है। ऐसे हमले तभी सफल होते हैं, जब हैरान करने वाला तत्व हो। इससे बेहतर पाकिस्तान के अंदर सक्रिय विद्रोही गुटों का इस्तेमाल करके उसकी सेना को नुकसान पहुंचाना है।
भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के जवाब में 1960 की सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है और राजनयिक प्रतिनिधित्व को कम करने के अलावा पाकिस्तानियों को वीजा देना बंद कर दिया है। यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आएगी, जो पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। कुछ लोगों का सुझाव है कि भारत को वही करना चाहिए, जो इस्राइल ने गाजा में हमास के साथ किया था। भारत के पास कोई आसान उपाय नहीं है। हम वह नहीं कर सकते, जो इस्राइल ने गाजा में किया, क्योंकि पाकिस्तान परमाणु शक्ति संपन्न देश है, हमास जैसा कोई संगठन नहीं।
अगर हम पीओके में घुसकर आतंकी ठिकानों पर हमला करते हैं, तो बड़े पैमाने पर युद्ध का जोखिम उठाना होगा। कुछ लोग पीओके में मौजूद आतंकवािदयों के ठिकानों और लॉन्चपैड्स पर बालाकोट जैसे हवाई हमले को उचित ठहरा सकते हैं। बालाकोट इसलिए संभव हुआ, क्योंकि इसकी पाकिस्तानियों को तब उम्मीद नहीं थी। अब वे जानते हैं कि ऐसा हो सकता है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, पूरे पाकिस्तान में हवाई अड्डे पहले से ही हाई अलर्ट पर हैं। कुछ सेवानिवृत्त भारतीय सैन्य अधिकारी सही कहते हैं कि असली दुश्मन आतंकी गुट नहीं, बल्कि उनकी प्रायोजक पाकिस्तानी सेना है। जब तक उसे नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, आतंकी घटनाएं नहीं रुकेंगी। इसलिए सोचना यह है कि पाकिस्तानी सेना को किस तरह से नुकसान पहुंचेगा। पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारियों की जान जाएगी, तो पाकिस्तानी सेना के जवानों का मनोबल गिरेगा। बलूचिस्तान, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और कभी-कभी सिंध में ऐसा होता है।
हाल ही में बलूच विद्रोहियों द्वारा एक पूरी ट्रेन को अगवा करने के कारण पाकिस्तानी सेना को भारी अपमान का सामना करना पड़ा था। पिछले कुछ वर्षों में बलूच विद्रोही और भी ज्यादा मजबूत और साहसी हो गए हैं। इसकी हताशा पाकिस्तान के सेना प्रमुख के हिंदुओं और कश्मीर के खिलाफ उग्र बयानों में दिखी तथा शायद इसी वजह से आईएसआई ने पहलगाम पर हमला करवाया। तीस साल पहले, मैंने अपनी पुस्तक इनसर्जेंट क्रॉसफायर में तर्क दिया था कि कम लागत वाले आक्रामक हथियार के रूप में उग्रवाद को पारस्परिक समर्थन देना उत्तर-औपनिवेशिक दक्षिण एशिया की विशेषता रही है। मुझे लगता है कि दक्षिण एशिया में इनसर्जेंट क्रॉसफायर का दूसरा चरण शुरू हो गया है।
अगर पाकिस्तान कश्मीर, पंजाब या पूर्वोत्तर में आतंकवाद का समर्थन करना जारी रखता है (बांग्लादेश के अंतरिम शासन का उपयोग करके), तो भारत बलूचिस्तान, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और सिंध में बिना जिम्मेदारी लिए विद्रोह को बढ़ावा देने पर विचार कर सकता है। छाती ठोककर जीत का बखान करने की कोई जरूरत नहीं है। गुप्त ऑपरेशन तभी सफल होते हैं, जब उन्हें गुप्त रखा जाता है। अगर पाकिस्तान इन उग्रवाद को समर्थन देने के लिए भारत को दोषी ठहराता है, तो दिल्ली को वह करने से क्यों कतराना चाहिए, जिसके लिए उसे दोषी ठहराया जा रहा है? भारत गांधीवादी होने का दिखावा करते हुए खुद को आतंकवाद का शिकार बता सकता है, लेकिन उसी हथियार का इस्तेमाल पाकिस्तान को जान-माल का नुकसान पहुंचाने के लिए कर सकता है। अगर आप उनसे ज्यादा खून बहाएंगे, तो वे अंततः हार मान लेंगे। इस तरह की कार्रवाई से भारतीय जनमत को, खास तौर पर युद्ध के लिए उतावले लोगों को शायद खुशी न हो, लेकिन ऐसा ही होना चाहिए।
किसी विरोधी को घुटनों पर लाने के लिए जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। 1971 में काफी योजनाएं बनाई गई थीं, तब पाकिस्तान को तोड़कर स्वतंत्र बांग्लादेश का जन्म हुआ। लेकिन पाकिस्तान की सेना ने सबक नहीं सीखा और कश्मीर, पंजाब तथा पूर्वोत्तर में अपनी शरारतें जारी रखीं। इसलिए अब उसे याद दिलाना चाहिए कि एक बार टूटा हुआ देश फिर से टूट सकता है। कश्मीर या पंजाब के भारत में आर्थिक एकीकरण के कारण भारत को कम डर है। पहलगाम हमले पर कश्मीरियों के गुस्से को देखें। पहलगाम आतंकी हमले के बाद पूरे कश्मीर में मोमबत्ती जलाकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, क्योंकि उनकी रोजी-रोटी दांव पर है। कश्मीर भारत के तेजी से बढ़ते पर्यटन उद्योग का बड़ा लाभार्थी है। पिछले तीन वर्षों में इस केंद्रशासित प्रदेश में आने वाले पर्यटकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और यह 15 लाख के आंकड़े को पार कर गया है। प्रति व्यक्ति आय और स्थानीय राजस्व में तेजी से वृद्धि हुई है और कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। हैरानी नहीं कि कश्मीर में लोगों की मानसिकता में भारी बदलाव आया है और स्थानीय लोगों को डर है कि कहीं आतंकी हमले से पर्यटन चौपट न हो जाए। आर्थिक एकीकरण भावनात्मक एकीकरण की नींव रखता है।
अगर सरकार पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए गंभीर है, तो उसे जनता की भावनाओं के बहकावे में जल्दबाजी आकर नहीं करनी चाहिए। भारत और उसके डीप स्टेट को पाकिस्तान की जातीय दरारों पर काम करना चाहिए और इसे पूरी तरह से विफल राज्य में बदलने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ना चाहिए। यह एक दीर्घकालिक परियोजना है, जिसे शक्ति के दिखावटी प्रदर्शन के बगैर चुपचाप चलाना चाहिए। राष्ट्रीय नीतियों को गंभीरता से तैयार करके आगे बढ़ाया जाना चाहिए और अल्पकालिक चुनावी लाभ के लिए कभी भी घुटने टेकने वाली प्रतिक्रियाओं तक सीमित नहीं होना चाहिए। चाणक्य ने दंड को अंतिम विकल्प बताया था, न कि पहला। लेकिन दंड का बुद्धिमानीपूर्ण उपयोग यह होगा कि इसे इस तरह से इस्तेमाल किया जाए कि सीधे युद्ध की नौबत आए बगैर ही पाकिस्तान घुटने टेक दे।
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