युवाओं के सद्कार्यों से देश की प्रगति : डॉ. अखिलेश त्रिपाठी
प्रयागराज। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि बिना कर्म के धन एकत्रित करना अपराध है। इसलिए भारत के प्रत्येक नागरिक को उद्यमी होना चाहिए। उद्यमिता ही भारत को गौरवान्वित कर सकता है। उद्यमिता से ही हम राजनीतिक और आर्थिक दासता को दूर कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि भारत के शौर्य और गरिमा के लिए यहां के प्रत्येक व्यक्ति का उद्यमी होना सबसे जरूरी है। उनका मानना था कि युवाओं के सद्कार्यों से देश की प्रगति हो सकती है।यह बातें ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के सांस्कृतिक एवं सहगामी गतिविधि प्रकोष्ठ द्वारा स्वामी विवेकानंद जयंती के अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अखिलेश त्रिपाठी ने कही। उन्होंने अपना वक्तव्य स्वामी विवेकानंद के वेदांती मंतव्य ‘चरैवेति, चरैवेति...’ से शुरू किया।
‘स्वामी विवेकानंद :राष्ट्रीय एकात्मकता, उद्यमिता और युवा’ विषयक एकल व्याख्यान में उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद को वेदांती कहा जाता है। भारत की सामाजिक व्यवस्था पहले वेद के नियमों पर आधारित थी, जहां वर्ण व्यवस्था योग्यता पर आधारित होती थी। मगर बाद में यह जातिगत जड़ता की वजह से रूढ़ हो गई। स्वामी विवेकानंद ने भारत सामाजिक पाखंड, जातिगत भेदभाव, सती प्रथा आदि का पुरजोर विरोध करते हुए पुनः वैदिक ज्ञान की नये सिरे से व्याख्या की। उन्होंने राष्ट्रीय एकात्मकता की नींव सामाजिक समरसता से रखी।
उन्होंने कहा कि सबसे जरूरी व्यक्तिगत मुक्ति नहीं है बल्कि सामूहिक विचार, प्रयास व दावा ही हमारी सोच होनी चाहिए।डॉ. अखिलेश त्रिपाठी ने अंत में राष्ट्रीय एकात्मकता, उद्यमिता और देश के युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए ‘चरैवेति, चरैवेति..’और स्वामी विवेकानंद के विचारों को मूलमंत्र कहा। सांस्कृतिक एवं सहगामी गतिविधि प्रकोष्ठ की समन्वयक एवं संयोजिता डॉ. गायत्री सिंह ने संचालन किया। डॉ. मनोज कुमार दूबे ने बताया कि कार्यक्रम को महाविद्यालय के शिक्षकों, शोधार्थियों एवं अन्य छात्र-छात्राओं की सहभागिता ने सफल बनाया। मंच संचालन शोधार्थी रंजीत नारायण एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अश्विनी ने किया।
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