लोकसभा 2024: अयोध्या से अंबेडकरनगर सधेगा, प्रतिष्ठा दांव पर!
सपा से लालजी वर्मा, भाजपा से रितेश पांडेय, बसपा से हाजी कमर हयात मैदान में
By Harshit
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शिशिर पटेल
- अयोध्या का हिस्सा रहा अंबेडकरनगर, कभी बसपा का गढ़ मना जाता रहा
- मायावती लगा चुकीं जीत की हैट्रिक, तीनों प्रतिद्वंद्वियों का बसपा से रहा ताल्लुक
लखनऊ। प्रदेश की महत्वपूर्ण लोकसभा सीट अंबेडकरनगर पर सपा, बसपा और भाजपा द्वारा प्रत्याशी घोषित किये जाने के बाद से सियासी गतिविधियां इन दिनों चरम पर हैं। कभी अयोध्या का हिस्सा रहे अंबेडकनगर को कभी बसपा का गढ़ माना जाता था। यह वहीं सीट है जहां से बसपा सुप्रीमो मायावती जीत की हैट्रिक लगा चुकी हैं, तब सीट अकबरपुर सुरक्षित नाम से थी। खास बात यह है कि लगातार तीन जीत के साथ ही उन्होंने हर बार अपनी जीत का अंतर भी बढ़ाया। यही वजह रही कि अंबेडकरनगर जनपद से पूर्व सीएम मायावती का गहरा नाता रहा है, लेकिन इस चुनाव में भाजपा से रितेश पांडेय और सपा से लालजी वर्मा की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। 2019 के चुनाव में बसपा के टिकट पर लड़े रितेश पांडेय भाजपा के मुकुट बिहारी वर्मा को हराकर यहां से सांसद बने थे। पिछले दिनों रितेश ने बसपा छोड़ भाजपा ज्वाइन कर ली और भाजपा ने उन्हें मैदान में उतार दिया। वहीं सपा ने इस सीट से छह बार के विधायक, वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। लालजी वर्मा की पिछड़े वर्ग के वोटरों में अच्छी पैठ बताई जाती है। कहा जा रहा है कि लालजी के आने से इस सीट पर चुनाव काफी दिलचस्प हो गया है।
कभी मायावती के मुख्यमंत्री काल के दौरान सृजित जनपद अंबेडकर नगर ने न केवल परवर्ती सपा सरकार में जिले के अस्तित्व के संकट का सामना किया बल्कि मायावती के शासन काल में तरक्की की रफ्तार भी बाद में काफी धीमी हो गई। बसपा सुप्रीमो के शासन काल में इंजीनियरिंग कॉलेज, पीजीआई समेत जनपद स्तरीय सुविधाओं से लैस हुए इस जिले की जनता ने बसपा को इसका खूब सिला दिया और इसे बसपा का गढ़ माना जाने लगा।
आज भी परोक्ष रूप से बीएसपी के राजनीतिक अखाड़े से ही निकले तीन प्रत्याशी आमने सामने खड़े हैं जिनके बीच मुकाबला तमाम दल बदल, सियासी बयानबाजी के चलते बेहद रोमांचक और दिलचस्प हो चला है। बसपा से सांसद चुने गए और मौजूदा समय में बीजेपी प्रत्याशी रितेश पांडेय हो या बसपा छोड़कर सपा में आए सपा प्रत्याशी कटेहरी विधायक लालजी वर्मा हों या बसपा से ताल ठोंक रहे विधान सभा चुनाव लड़ चुके मौजूदा प्रत्याशी हाजी कमर हयात हों,ये सभी अपनी राजनीति के दांव पेंच बसपा के अखाड़े से ही सीख कर अब लोकसभा चुनाव के मैदान में आमने-सामने हैं। फिलहाल तीनों ही प्रत्याशियों की लड़ाई पर लोगों की नजर बनी हुई है।
मायावती को बहुत कुछ दिया, मगर अब बनाई दूरी...!
मायावती को बहुत कुछ दिया, मगर अब बनाई दूरी...!
अंबेडकरनगर संसदीय सीट का राजनीतिक इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। इसकी शुरूआत तब हुई जब पहली बार मायावती मुख्यमंत्री बनते ही अयोध्या (तत्कालीन फैजाबाद) जनपद को विभक्त कर 29 सितंबर 1995 को अंबेडकरनगर नाम से नए जिले की घोषणा कर दी। इसके लिए वह स्वयं अकबरपुर आई थीं। शिवबाबा मैदान पर हुई रैली में ही पहले डीएम और एसपी से जनता का परिचय कराया। इसके बाद अपने प्रत्येक कार्यकाल में मुख्यमंत्री के तौर पर जिले को बड़ी-बड़ी विकास परियोजनाएं दीं।
बसपा प्रमुख ने इस जिले को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि भी बनाई। उन्होंने वर्ष 1998 के आम चुनाव में यहां से लड़ने की घोषणा कर हलचल मचा दी थी। हालांकि तब भी ज्यादातर लोगों को लगा कि अंत तक मायावती यहां नहीं आएंगी, पर नामांकन शुरू होने पर मायावती ने यहां पहुंचने के साथ ही अकबरपुर सुरक्षित संसदीय सीट से बतौर प्रत्याशी परचा भी भर दिया। भाजपा और सपा ने स्थानीय प्रत्याशियों पर दांव लगाकर पूरी मजबूती से टक्कर दी। नतीजा यह रहा कि बड़ा कद होने के बावजूद मायावती सिर्फ 25,179 मत के अंतर से जीत सकीं। उन्हें 2,63,561 मतदाताओं का साथ मिला।
केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार विश्वासमत में गिर जाने के बाद 1999 में फिर हुए चुनाव में भी मायावती ने इसी सीट को चुना। इस बार उन्होंने पिछले चुनाव से शानदार प्रदर्शन किया। 2,59,762 वोट हासिल कर उन्होंने सपा प्रत्याशी राम पियारे सुमन को 53,386 मत के बड़े अंतर से हराया। बसपा प्रमुख ने वर्ष 2004 के चुनाव में भी अंबेडकरनगर का रुख किया। इस बार न सिर्फ उन्होंने जीत की हैट्रिक लगाई वरन जीत का अंतर भी बढ़ाने में सफलता हासिल की। उन्होंने सपा के शंखलाल मांझी को 58,269 वोट से पीछे छोड़ दिया। हैट्रिक की सफलता के साथ मायावती ने अपने वोटों की संख्या तीन लाख के पार पहुंचा दी। हालांकि वोट में ज्यादा बढ़ोत्तरी सपा प्रत्याशी की भी हुई।2009 के चुनाव में बसपा की टिकट पर राकेश पांडे को यहां से जीत हासिल हुई थी, जो कि मौजूदा बीजेपी प्रत्याशी रितेश पांडे के पिता और समाजवादी पार्टी के सिंबल से जलालपुर विधानसभा के विधायक है। हालांकि 2014 के संसदीय चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और यह सीट भी बीजेपी के खाते में आ गई।
तब बीजेपी के टिकट पर हरिओम पांडेय ने बसपा प्रत्याशी और सांसद राकेश पांडेय को एक लाख से अधिक मतों से हराया था। सपा के राम मूर्ति वर्मा तब तीसरे स्थान पर रहे थे। फिर 2019 के चुनाव में राकेश पांडेय के छोटे बेटे और बसपा प्रत्याशी रितेश पांडेय मैदान में उतरे थे उन्होंने बीजेपी के मुकुट बिहारी को 95880 मतों के अंतर से हराया था। बता दें कि परिसीमन के पहले से सीट का नाम अकबरपुर संसदीय सीट हुआ करता था। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में यहां एक रिकॉर्ड बना था जब कांग्रेस के खिलाफ हर ओर बने हुए माहौल में भारतीय लोक दल के मंगल देव विशारद को अकेले 78.023 प्रतिशत वोट मिले और उन्होंने 2 लाख 11 हजार से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीता था जो आज तक रिकॉर्ड है।
अंबेडकर नगर संसदीय सीट पर चुनाव में दलित वोटर काफी अहम भूमिका निभाते हैं। बसपा के सांसद रितेश पांडेय अब बीजेपी का दामन थाम चुके हैं सपा लालजी वर्मा और बसपा हाजी कमर हयात को प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। इस बार कांग्रेस और सपा का गठबंधन भी अस्तित्व में है। ऐसे में बेहद दिलचस्प हो चुकी लोकसभा सीट के चुनाव की जंग पर सभी की नजरें बनी रहेंगी। जातीय समीकरण की बात की जाए तो अम्बेडकरनगर लोकसभा क्षेत्र में करीब 18 लाख 50 हजार से अधिक मतदाता हैं। माना जाता है कि इनमें करीब चार लाख दलित मतदाता, तीन लाख 70 हजार मुस्लिम, एक लाख 78 हजार से अधिक कुर्मी, एक लाख 70 हजार यादव, लगभग एक लाख 35 हजार ब्राह्मण, एक लाख के करीब ठाकुर मतदाता हैं। बाकी अन्य जाति के मतदाता हैं।
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