कैंसर जांच के नमूने गायब, फिर होगा दर्द व पड़ेगा खर्च!

लोहिया चिकित्सा संस्थान में जांच के नाम पर लापरवाही की हद

कैंसर जांच के नमूने गायब, फिर होगा दर्द व पड़ेगा खर्च!

77 वर्षीय बुजुर्ग मरीज के कैंसर की प्रारंभिक जांच का मामला

लखनऊ। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित प्रतिष्ठित डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान एक बार फिर लापरवाही के आरोपों के घेरे में आ गया है। इस बार मामला बेहद संवेदनशील और चौंकाने वाला है। एक 77 वर्षीय बुजुर्ग मरीज की कैंसर की प्रारंभिक जांच के लिए लिए गए बायोप्सी के नमूने लैब तक पहुंचे ही नहीं और रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दर्ज कर दिया गया कि "लैब में खाली कंटेनर पहुंचे, किसी भी कंटेनर में कोई भी नमूना नहीं था।" यह गंभीर लापरवाही न केवल संस्थान की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है बल्कि मरीज की जान के साथ खिलवाड़ भी है। घटना के शिकार हुए मरीज रामसेवक (उम्र 77 वर्ष) हैं जिनका इलाज डॉ० ईश्वर राम दयाल की देखरेख में चल रहा था। मरीज का सीआर नंबर ढढ: 2025/069958 है। डॉक्टरी सलाह के अनुसार मरीज की स्थिति देखते हुए कैंसर की आशंका जताई गई थी और उसकी पुष्टि के लिए बायोप्सी कराई गई।

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बायोप्सी कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं होती- यह एक तकलीफदेह और संवेदनशील जांच होती है जिसमें मरीज के शरीर से ऊतक (टिश्यू) के सैंपल लिए जाते हैं। मरीज की बायोप्सी के लिए कुल 12 कंटेनरों में सैंपल भरे गए थे जिसे अस्पताल की प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजा गया था। कई दिन इंतजार के बाद जब लैब से रिपोर्ट आई तो पूरा परिवार हैरान रह गया। रिपोर्ट में साफ लिखा था : "लैब में कुल 12 कंटेनर प्राप्त हुए, किंतु किसी भी कंटेनर में कोई भी ऊतक या जैविक नमूना मौजूद नहीं था।" इसका अर्थ है कि या तो नमूने लिए ही नहीं गए या फिर उन्हें कंटेनरों में सही से नहीं डाला गया या फिर रास्ते में कहीं गलती से उन्हें निकाल दिया गया। इस संवेदनशील जांच में ऐसी घोर लापरवाही एक आपराधिक स्तर की चूक मानी जा रही है।

इस गंभीर गलती के बाद मरीज और उनके परिजनों को अस्पताल की ओर से यह कहकर टाल दिया गया कि "अब जांच दोबारा करवानी पड़ेगी"। लेकिन समस्या यहीं खत्म नहीं होती बायोप्सी के लिए इस्तेमाल होने वाला सारा सामान बाहर से खरीदना होता है। मरीज रामसेवक के परिजनों ने बताया कि उन्होंने पहली बार की बायोप्सी के लिए करीब 7,000 से 8,000 रुपये का मेडिकल सामान खरीदा था। अब डॉक्टरों द्वारा दूसरी बार बायोप्सी कराने की बात कहने पर परिवार मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से पूरी तरह टूट चुका है।

मरीज रामसेवक के परिजनों ने कहा कि ह्ल हमारे मरीज की हालत देखकर डॉक्टरों ने खुद बायोप्सी की सलाह दी थी। हमने सारा खर्च वहन किया, बाहर से सारा जरूरी सामान खरीदा, तकलीफदेह प्रक्रिया सहन की। मगर जब रिपोर्ट आई तो उसमें खाली कंटेनरों की बात कही गई। क्या यह सामान्य लापरवाही है, हमने तो नमूने भरते हुए देखा था। 

सवाल है कि वो नमूने गए कहां ?परिजन इसे महज एक 'लापरवाही' नहीं बल्कि 'जानबूझकर की गई एक गंभीर गलती' मान रहे हैं। वे मांग कर रहे हैं कि इस मामले की जांच कर दोषियों को सस्पेंड किया जाए और मरीज को हर तरह का चिकित्सा लाभ मुफ्त में दिया जाए। डॉ० राम मनोहर लोहिया संस्थान जैसे बड़े सरकारी अस्पतालों में इस तरह की लापरवाहियां अगर खुलकर सामने आने लगी हैं तो यह पूरे चिकित्सा तंत्र पर एक काला धब्बा है। रामसेवक जैसे बुजुर्ग मरीज जो इलाज की आस लेकर अस्पताल आते हैं उन्हें इस तरह की लापरवाही झेलनी पड़े यह न केवल अमानवीय है बल्कि एक सामाजिक अपराध भी है। तो वहीं बुधवार को डॉ. ईश्वर राम दयाल ने मरीज की 27400 रुपए की पीएसएमए-सीटी स्कैन जॉच करवाई है।

क्या बोले लोहिया संस्थान के प्रवक्ता...!
डॉ. भुवन चंद्र तिवारी ने बताया कि किसी कारणवस टिशूज नहीं आते तो दोबारा सैंपल लिये जाते है। जिसमें अब मरीज का पीएसएमए-सीटी स्कैन किया जा रहा है। हालांकि उन्हें इस जांच से कोई दिक्कत नहीं होगी और पहली जांच के पैसे मरीज को वापस दिये जायेगा।

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