स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को जीवन से जोड़ा
बस्ती - स्वामी विवेकानन्द जयंती के उपलक्ष्य में कबीर साहित्य सेवा संस्थान द्वारा प्रेस क्लब सभागार में साईमन फारूकी के संयोजन में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र ने स्वामी विवेकानन्द के जीवन वृत्त, योगदान पर विस्तार से प्रकाश डालते हुये कहा कि जब भारत कई टुकड़ों में विभाजित था, भुखमरी, महामारी से देश के अनेक हिस्से प्रभावित थे उस समय युवा सन्यासी ने देश को ऊर्जा देने के साथ ही शिकागो के भाषण से विश्व में भारत की प्रतिष्ठा बढाई, उन्होने धर्म को जीवन से जोड़ा और मुसीबत में होम्योपैथ की दवा लेकर सेवा करने निकल पड़े।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम प्रकाश शर्मा ने कहा कि अपने गुरू स्वामी रामकृष्ण के निधन के बाद विवेकानन्द के जीवन में नया मोड़ दिया। 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन लिया, उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। गरीब, निर्धन और सामाजिक बुराई से ग्रस्त देश के हालात देखकर दुःख और दुविधा में रहे विवेकानन्द करोड़ो युवाओं के प्रेरणा श्रोत बन गये। बी.के. मिश्र ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द सदा अपने को गरीबों का सेवक कहते थे। भारत के गौरव को देश-देशांतरों में उज्ज्वल करने का उन्होंने सदा प्रयत्न किया। इस परम्परा को आगे बढाने की जरूरत है। अध्यक्षता करते हुये वरिष्ठ कवि डा. रामकृष्ण लाल जगमग ने कहा कि युवाओं को स्वामी विवेकानन्द के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये। उन्होने स्व रचित स्वामी विवेकानन्द महाकाव्य का अंश सुनाया ‘ राष्ट्र धर्म जन-जन में गूजंे, हो चहुदिश आनन्द, हो अवतरित धरा पर फिर से एक विवेकानन्द’। उन्होने स्वामी जी के व्यक्तित्व कृतित्व के विभिन्न विन्दुओं पर प्रकाश डाला। तौव्वाब अली, अनुरोध श्रीवास्तव, साद अहमद शाद, रहमान अली रहमान, डा. अफलज हुसेन, डा. सिद्धार्थ कुमार आदि ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द सभी धर्मों का आदर करते थे यही कारण है कि सभी धर्मानुरागियों में उन्हें आदर प्राप्त है। कहा कि स्वामी विवेकानंदजी का दृढ़ विश्वास था कि अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा। उन्होने भारतीय दर्शन को विश्व में प्रतिष्ठित किया।
कार्यक्रम में दीपक सिंह प्रेमी, बटुकनाथ शुक्ल, विशाल पाण्डेय, जय प्रकाश गोस्वामी, फूलचन्द चौधरी, दशरथ प्रसाद यादव, अर्चना श्रीवास्तव, आदि उपस्थित रहे।
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