केजीएमयू में कटे पैर की सफल प्रत्यारोपण सर्जरी

हार्वेस्टर मशीन से कटा था मरीज का पैर

केजीएमयू में कटे पैर की सफल प्रत्यारोपण सर्जरी

लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने एक जटिल और चुनौतीपूर्ण पैर प्रत्यारोपण सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया,जिससे एक तीस वर्षीय मरीज को नई आशा मिली,जिसका पैर एक दुर्घटना में कट गया था। बराबंकी निवासी दिलीप कुमार 19 फरवरी की सुबह लगभग 8:30 बजे अपने ट्रैक्टर से आलू हार्वेस्टर को अलग करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गए। दुर्भाग्यवश,हार्वेस्टर उनके बाएं पैर के ऊपर से गुजर गया। जिससे उनका पैर पूरी तरह से कटकर अलग हो गया।

जिला अस्पताल बाराबंकी ले जाया गया। जहां उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया और उनके कटे हुए पैर को सावधानीपूर्वक साफ करके ठंडे पैक में संरक्षित किया गया। चोट की गंभीरता को देखते हुए, उन्हें तुरंत केजीलएमयू ट्रॉमा सेंटर लखनऊ रेफर किया गया। जहां वे सुबह 9:30 बजे पहुंचे। ट्रॉमा सेंटर में प्रारंभिक उपचार और जांच के बाद, प्लास्टिक सर्जरी टीम को बुलाया गया ताकि पैर को पुनः जोड़ने की संभावना पर विचार किया जा सके। मरीज सही समय पर अस्पताल पहुंच गया था और कटे हुए हिस्से को भी सही तरीके से संरक्षित किया गया था। जिससे पुनः प्रत्यारोपण की संभावना बढ़ गई।

 इसके बाद मरीज को प्लास्टिक सर्जरी विभाग में स्थानांतरित किया गया, जहां इस जटिल माइक्रोवैस्कुलर सर्जरी को अंजाम दिया गया। इस सर्जरी का नेतृत्व प्रोफेसर बृजेश मिश्रा ने किया। इस जटिल सर्जरी में शामिल टीम में डॉ.रवि कुमार (एसोसिएट प्रोफेसर), डॉ. गौतम रेड्डी (असिस्टेंट प्रोफेसर), डॉ. मेहवश खान, डॉ. कर्तिकेय शुक्ला, डॉ. गौरव जैन, डॉ. प्रतिभा राणा, डॉ. अभिनव नकरा और डॉ. राहुल राधाकृष्णन (सीनियर रेजिडेंट) शामिल थे। एनेस्थीसिया टीम का नेतृत्व डॉ. तन्वी (कंसल्टेंट) ने किया, जिनके साथ डॉ. अनी (सीनियर रेजिडेंट), डॉ. शिखा और डॉ. कंचन (जूनियर रेजिडेंट) भी मौजूद रहीं।

डाक्टर बृजेश के मुताबिक,सात घंटे तक चली इस जटिल सर्जरी में माइक्रोवैस्कुलर मरम्मत हड्डी को स्थिर करना और सॉफ्ट टिशू पुनर्निर्माण जैसी प्रक्रियाएं शामिल थीं। ताकि रक्त संचार और पैर की कार्यक्षमता को बहाल किया जा सके। यह सर्जरी बिना किसी जटिलता के सफलतापूर्वक पूरी हुई। अब सर्जरी के पांच दिन बाद मरीज के पैर में रक्त संचार सामान्य हो गया है और उनकी स्थिति में तेजी से सुधार हो रहा है। हालांकि चोट की गंभीरता को देखते हुए पूर्ण रूप से चलने में दो से तीन महीने का समय लग सकता है, और उन्हें लगातार फिजियोथेरेपी की आवश्यकता होगी।

कुलपति केजीएमयू प्रो सोनिया नित्यानंद ने पूरी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह उल्लेखनीय उपलब्धि केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग की जटिल अंग प्रत्यारोपण सर्जरी में विशेषज्ञता और समर्पण को दर्शाती है। माइक्रोसर्जरी के क्षेत्र में इस तरह की प्रगति केजीएमयू की सर्वोत्तम ट्रॉमा केयर और पुनर्निर्माण सर्जरी प्रदान करने की प्रतिबद्धता को और मजबूत करती है, जिससे ज़रूरतमंद मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मिल सकें।

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