आदिवासी साहित्य भारतवर्ष का सांस्कृतिक धरोहर: डॉ. अलका
लखनऊ। डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविधालय लखनऊ की शिक्षिका डॉ अलका सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग एवं तकनीकी संकाय में हो रही अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी रिसेंट एडवांसेज इन एप्लाइड साइंसेज एंड ह्यूमैनिटीज इन इवोल्यूशन आॅफ इंजीनियरिंग ( राशी 2025)" के द्वितीय सत्र "ट्राइबल लिट्रेचर, विमेन एंड दलित लिट्रेचर" में अपने बीज व्याख्यान में भारत में उत्तर आधुनिक अंग्रेजी साहित्य के परिपेक्ष्य में आदिवासी साहित्य और सांस्कृतिक विमर्श पर चर्चा की।
उन्होंने कहा कि आदिवासी साहित्य जड़, जंगल और जमीन से निकला हुआ मानवीय संवेदनाओं, धार्मिक और सांस्कृतिक संवादों का अनुष्ठान है। इसके गीत, कहानी और परंपराओं में भारतीय समाजिकता और मानवाधिकार के आदर्श मूल्यों का समायोजन है। आदिवासी साहित्य सांस्कृतिक धरोहर है जो पारंपरिक भारतीय ज्ञान कोषों के समृद्ध संकलन है। उत्तर आधुनिक अंग्रेजी साहित्य में आदिवासी साहित्य का प्रतिनिधित्व एक नए दृष्टिकोण से हो रहा है, जिसमें आदिवासी समुदायों की न केवल आवाजें और अनुभव साझा किए जाते हैं, अपितु इसके प्राकृतिक मर्म को भी समझा जा रहा है।
यह विमर्श भारतीय साहित्य और संस्कृति की विविधता को प्रदर्शित करता है और आदिवासी समुदायों के अधिकारों और संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाता है। डॉ अलका सिंह ने मुंडा, बैगा, धनकुट, ज्वार, अंग आदि जातियों पर चर्चा करते हुए कहा कि आदिवासी साहित्य मानव जीवन के अस्तित्व और पारिस्थितिकीय समीकरण के संबंधों की भी उत्कृष्ट समझ है।
सत्र में लविवि से डॉ सुमेधा द्विवेदी, डॉ पारुल, डॉ सव्यसाची, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय से डॉ नेहा अरोरा , सेंट्रल यूनिवर्सिटी आॅफ साउथ बिहार के शिक्षक डॉ सरोज कुमार यादव, रक्षा विश्वविद्यालय से शिक्षक और छात्रों ने भाग लिया।
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