मरु भूमि से माही अँचल तक माघ मदनोत्सव का समीर, महोत्सव की धूम

मरु भूमि से माही अँचल तक माघ मदनोत्सव का समीर, महोत्सव की धूम

डॉ. दीपक आचार्य

पर्व-उत्सवों और त्योहारों की अनवरत् विद्यमान श्रृंखला मेंं उल्लसित और ऊर्जावान जीवन व्यवहार का आनन्द पाने वाले भारतवासियों के लिए हर दिन कोई न कोई व्रत, पर्व, उत्सव और त्योहार होता है, और हर कहीं कुछ कुछ आयोजन चलते ही रहते हैं। और इन्हीं से प्रतिबिम्बित होता है लोक जीवन का उमंग उल्लास भरा विराट बिम्ब, जहाँ हर जीव और हर परिवेश मदमस्त हो उठता है।

ऐसा ही है माघ माह का मदनोत्सव। पश्चिमी राजस्थान में रेत के समन्दर के बीच मरु महोत्सव के रोमांचक और आकर्षक कार्यक्रमों की जबर्दस्त धूम छायी रहती है, वहीं दक्षिणी राजस्थान में धर्म अध्यात्म और भक्ति का ज्वार उमड़ाता बेणेश्वर महामेला।

माघ पूर्णिमा और आस-पास के दिनों में इन दोनों ही स्थानों पर मेला संस्कृति और महोत्सवी उल्लास का दिग्दर्शन हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देता है। हर साल देशी-विदेशी पर्यटकों की इनमें बहुत बड़ी संख्या में मौजूदगी इन परम्परागत आयोजनों को प्रदेश और देश की सीमाओं तक सीमित नहीं रखकर अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति दिलाते हैं।

मरु महोत्सव मरुभूमि की परम्पराओं, लोक संस्कृति, साहित्य, संगीत और कला तथा जनजीवन से जुड़े पहलुओं से साक्षात् कराते हुए लोक सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और मनोरंजक कार्यक्रमों से आनन्द के समन्दर में नहलाने में समर्थ हैं।

देश और दुनिया के लोग सीमावर्ती सैन्य क्षेत्र से जुड़े करतबों, मशहूर कलाकारों की प्रस्तुतियों, स्थानीय कला प्रवाह से लेकर वह सब कुछ यहां देखते और अनुभव करते हैं जो मरु भूमि का अपना वैशिष्ट्य कहा जाता है।

मौसम के हिसाब से वसन्तोत्सवी बयारों के बीच माघ का अपना ख़ास आनन्द दक्षिण और पश्चिम दोनों तटों पर अभिभूत कर देने वाला होता है। भीषण गर्मी के आगाज से पहले वासन्ती हवाओं और मदमस्ती से खिली फसलों और इठलाते हरियाले खेतों के बीच आनन्द का दरिया मंथर-मंथर ज्वार पर थिरकता रहता है और इसी में डूब कर मेलार्थी और सैलानी अनिर्वचनीय सुकून का अहसास कर धन्य हो उठते हैं।

पश्चिमी सरहद पर जैसलमेर मरु महोत्सव के जरिये जहां मनोरंजक कार्यक्रमों और लोक सांस्कृतिक वैभव का दिग्दर्शन कराते हुए सभी को लोकानुरंजन से जोड़ता है वहीं दक्षिणी राजस्थान का बेणेश्वर महामेला भक्ति परम्पराओं और पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा अभिव्यक्ति का वार्षिक पर्व है, जहां हर साल माघ पूर्णिमा पर लगने वाले दस दिनी मेले में आकर लाखों मेलार्थी जनजाति संस्कृति, त्रिकालज्ञ संत श्री मावजी महाराज के विलक्षण एवं अद्भुत अवतारी व्यक्तित्व, उनकी भविष्यवाणियों और दुर्लभ साहित्य की थाह पाते हैं और पवित्र जलसंगम तीर्थ में आस्था की डुबकी लबाते हुए नई जीवनी शक्ति पाकर घर लौटते हैं।

दोनों ही अंचल इन दिनों बहुआयामी आनन्द का अनुभव कराने में रमे हुए हैं। माघ पूर्णिमा का दिन मरु महोत्सव और बेणेश्वर मेले के लिए चरम यौवन से भरा-पूरा रहता है। इस दिन दोनों ही क्षेत्रों में खूब सारे आयोजनों की भरमार रहती है। इस बार महाकुंभ की वजह से माघ पूर्णिमा ख़ास बन पड़ी है।

माघ के इन वासन्ती मदनोत्सवों का आनन्द जो एक बार पा लेता है, बार-बार आने के लिए आतुर रहता है। जैसलमेर का मरु महोत्सव और बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर की सीमा पर बेणेश्वर का मेला इस बार भी समुत्सुक है अपने कद्रदानों के स्वागत के लिए। राजस्थान का पश्चिम और दक्षिण क्षेत्र आतिथ्य प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा।

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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