कहीं बलि की बकरी न बन जाएँ सीतारमण

कहीं बलि की बकरी न बन जाएँ सीतारमण

@ राकेश अचल   
लेबनान में नसरल्लाह की मौत और जम्मू-कश्मीर तथा हरियाणा के चुनावी शोरगुल में एक बड़ी खबर दबकर रह गयी । ये खबर बहुचर्चित इलेक्टोरल बांड से जुड़ी है ।  इस खबर के मुताबिक बेंगलुरु में चुने हुए प्रतिनिधियों के लिए नामित मैजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड के मुद्दे पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और प्रवर्तन निदेशालय के ख़िलाफ़ जबरन वसूली और आपराधिक साज़िश का मुक़दमा दर्ज कर लिया गया है।
 निर्मला सीतारमण  जी इस देश की सबसे सबल और निर्मल वित्तमंत्री हैं।  वे रक्षा मंत्री तो अच्छी साबित नहीं हुईं किन्तु बतौर वित्तमंत्री उन्होंने भाजपा की नयी और पुरानी सरकार के लिए ऐसे-ऐसे सीताराम बजट बनाये की सरकार की बल्ले-बल्ले हो गयी और जनता आह भी नहीं भर पायी, जबकि उसके हिस्से में सिवाय मंहगाई और करों के बोझ के अलावा कुछ नहीं आया । वे माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी मंत्रिमंडल की पहली महिला सदस्य हैं जिनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया गया है। दरअसल ये मुकदमा तो   बिट्टू के खिलाफ होना चाहिए थ। उन्होंने लोकसभा  में विपक्ष के नेता राहुल गाँधी को देश का आतंकी नंबर वन कहा था।
आपको बता दूँ कि  कोर्ट ने ये फ़ैसला आदर्श अय्यर की याचिका पर सुनाया था. आदर्श जनाधिकार संघर्ष परिषद (जेएसपी) के सह-अध्यक्ष हैं. उन्होंने मार्च में स्थानीय पुलिस को एक शिकायत दी थी जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। कोर्ट के आदेश के अगले ही दिन यानी शनिवार दोपहर करीब तीन बजे एफ़आईआर दर्ज की गई। जेएसपी एक ऐसी संस्था है जो शिक्षा का अधिकार क़ानून और बाक़ी मुद्दों से जुड़ी समस्याओं को उठाती रही है।  कोर्ट ने अपना काम कर दिया है,अब आगे का काम पुलिस को करना है।
सब जानते हैं कि निर्मला जी बेहद ईमानदार ,वफादार और तेज-तर्रार वित्त मंत्रीं ह।  ये बात अलग है कि उनके फैसलों और उनके बनाये बजटों से उनके अपने पति भी खुश नहीं होते,देश कि जनता के खुश होने कि बात तो दूर की बात है।  केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने  लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फ़ैसला किया था। निर्मला सीतारमण ने कहा था  कि चुनाव लड़ने के लिए उनके पास पैसों की कमी है और आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु जैसे दक्षिण के राज्यों में जीत के लिए जो मानदंड होते हैं, उन पर वह खरी नहीं उतरती हैं। उनकी बात पर यकीन करना मुश्किल है क्योंकि उनकी ही वजह से पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के इस प्रस्ताव के जरिये सरकार इलेक्टोरल बांड के जरिये 6  हजार करोड़ से ज्यादा का  चुनावी चंदा  जुटाने में कामयाब हुईं थी ।
यदि आप अपनी याददाश्त पर जोर डालें तो आपको  याद  आ जाएगा कि इलेक्टॉरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड 2017 में शुरुआत से लेकर 15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किए जाने तक भारत में राजनीतिक दलों के लिए फंडिंग का एक तरीका था। इनकी समाप्ति के बाद, मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को दानकर्ताओं और प्राप्तकर्ताओं की पहचान और अन्य विवरण भारत के चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया, जिसे चुनाव आयोग ने अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित किया।माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरल बंद को असाम्वीधनीक तो घोषित कर दिया था लेकिन न बांड से मिले धन को राजसात करने के बारे में कुछ कहा और न किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे।
जहाँ तक मुझे याद है कि एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2018 से अप्रैल 2022 तक की अवधि के दौरान ₹9,857 करोड़ के मौद्रिक मूल्य के बराबर कुल 18,299 चुनावी बांड का सफलतापूर्वक लेन-देन किया गया। बाद  में 7 नवंबर 2022 को चुनावी बॉन्ड योजना में संशोधन किया गया, ताकि किसी भी विधानसभा चुनाव वाले वर्ष में बिक्री के दिनों को 70 से बढ़ाकर 85 किया जा सके। चुनावी बॉन्ड (संशोधन) योजना, 2022 पर निर्णय गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनावों से कुछ समय पहले लिया गया था, जबकि दोनों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू की गई थी।
ख़ुशी की बात ये है कि जो काम देश कि सर्वोच्च अदालत करना भूल गयी थी उसे बेंगलूर कि एक अधीनस्स्थ अदालत ने पूरा कर दिखाया। अब केंद्र के सर्वविदित हथियार ईडी और सबसे ईमानदार मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण के खिलाफ पुलिस में बाकायदा एफआईआर दर्ज की  गयी है ।  आप कह सकते हैं कि अब आया है ऊँट पहाड़ के नीचे। अब यदि पुलिस ईमानदारी से फुर्ती के साथ मामले कि जांच कार आरोपियों को अदालत कि दहलीज पर ला खड़े करे तो एक बड़ा काम हो जाये।
कायदे से तो श्रीमती निर्मला सीतारामण  जैसी ईमानदार मंत्री को ये एफआईआर दर्ज होते ही नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा देते हुए राजनीति से सन्यास कि घोषणा कर देना चाहिए ,लेकिन ऐसा होगा नहीं। नैतिकता से सीता जी का और उनकी पार्टी  से दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। निर्मला जी बलि कि मकरी बन रहीं है।  उन्होंने तो जानबूझकर कुछ किया नहीं, जो उनसे पार्टी और सरकार ने कहा वो उन्होंने किया। वे और कर भी क्या  सकती थीं । वे अपने खिलाफ मामला  दर्ज होने के बाद इस्तीफा दे सकतीं है लेकिन उनकी पार्टी और उनकी सर्कार के नेता ही उन्हें इस्तीफा देने नहीं देंगे।
इलेक्टोरल बांड के जरिये धन वसूली  के मामले में सीता  जी और ईडी के निदेशक ही नहीं बल्कि इस मामले में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कर्नाटक बीजेपी अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र को भी आरोपी के तौर पर नामित किया गया है बल्कि  भाजपा  के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजेंद्र को भी आरोपी के तौर पर नामित किया गया है ,कर्नाटक में कांग्रेस कि सरकार ह।  कांग्रेस कि सरकार हहै तो एपीआई पुलिस को सक्रिय कर इस मामले में सीता जी और ईडी के निदेशक कि गिरफ्तारी करा सकती है ,लेकिन कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अभी खुद भ्र्ष्टाचार के एक मामले में उलझे हुए हैं।
सीता जी और ईडी प्रमुख  के खिलाफ एफआईआर होने के मुद्दे का लाभ कांग्रेस और दूसरे   दल हरियाणा और जम्मु-कश्मीर के विधानसभा चुनावोंमें शायद न उठा पाए लेकिन विपक्ष को मौक़ा हैकि महाराष्ट्र  विधानसभा के चुनावों में वो इस मुद्दे पर सरकार और भाजपा को घेर। फ़िलहाल  हमारी सहानुभूति श्रीमती निर्मला सीतारमण और ईडी के निदेशक के साथ है।

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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