आधुनिक शिक्षा पाते हुए देश की परम्पराओं से जुड़े रहे

आधुनिक शिक्षा पाते हुए देश की परम्पराओं से जुड़े रहे

नई दिल्ली। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने देश के आंगनवाड़ी केंद्रों में शिक्षा के लिए तकनीक के जुड़ाव के साथ-साथ भारतीय पारम्परिक पद्धतियों का पालन किए जाने का ज़िक्र किया और कहा कि इससे ज़मीन से जुड़े रहकर आधुनिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है.

आत्मविश्वास भी कर सकेंगे पैदा
स्मृति ईरानी के अनुसार, नई से नई तकनीक का इस्तेमाल किए जाने से न सिर्फ़ बच्चे आज की दुनिया की चुनौतियों से जूझ सकेंगे, बल्कि खुद में आत्मविश्वास भी पैदा कर सकेंगे कि वे किन्हीं भी हालात से निपटने के लिए तैयार हैं. और साथ ही भारतीय परम्पराओं को भी जानते रहने से उन्हें ज़मीन से जुड़े रहने में मदद मिलेगी, ताकि वे अपने जैसे देश के अन्य बच्चों से प्यार और लगाव की भावना को बनाए रख सकेंगे, तथा देश के गौरव को बनाए रखने में निमित्त बनेंगे.

आधुनिक शिक्षा पाते हुए देश की परम्पराओं से जुड़े रहे
उन्होंने कहा, इसके अलावा, आंगनवाड़ी के संचालन और प्रशासन में भी सबसे ज़्यादा मददगार हुई है तकनीक को लेकर बनाई गई होलिस्टिक एप्रोच. तकनीक से तैयार किए गए ट्रैकर की मदद से मंत्री, सचिव और संचालन में जुड़े अन्य लोगों को तुरंत ही पता चल जाता है कि किस आंगनवाड़ी केंद्र में या किस आंगनवाड़ी केंद्र के किस डेस्क पर कोई चीज़ या काम अटक रहा है. इसके साथ ही, पारम्परिक खिलौने भी हमारी इस होलिस्टिक एप्रोच का हिस्सा रहे हैं. इसके तहत विदेशी खिलौनों को आयात करने के स्थान पर पहले से भारत में मौजूद खिलौनों की व्यापक संस्कृति का इस्तेमाल करने के बारे में सोचा गया, ताकि बच्चे आधुनिक शिक्षा पाते-पाते भी देश की परम्पराओं से जुड़े रहें.

आधुनिक तकनीक से किया लैस
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के एक-दिवसीय कॉन्क्लेव ‘अमृतकाल की आंगनवाड़ी’ के दौरान स्मृति ईरानी ने कहा कि आंगनवाड़ी केंद्रों को भी आधुनिक तकनीक से लैस किया गया है, ताकि देश की सभी महिलाओं को सभी तरह की समस्याओं के लिए आंगनवाड़ी केंद्र भी सटीक सुझाव पाने का ज़रिया लग सके. स्मृति ईरानी के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच के मुताबिक, हर साल 300 करोड़ के बजट का एक हिस्सा आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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