अविष्कार करें, खेती करें: डॉ. संजय
लविवि में जलवायु परिवर्तन पर हुआ राष्ट्रीय सम्मेलन
लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय में "जलवायु परिवर्तन के तहत सतत कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए जैविक विज्ञान में वर्तमान रुझान" पर राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ। सम्मेलन के आयोजन सचिव प्रो मुन्ना सिंह ने वनस्पति विज्ञान विभाग के संस्थापक प्रो बीरबल साहनी सहित सभी गणमान्य व्यक्तियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने फसल उत्पादकता बढ़ाने में प्लांट फिजियोलॉजी अनुसंधान की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया। करअइ के अध्यक्ष प्रोफेसर एसएल मेहता ने जैविक और अजैविक तनाव के महत्व पर जोर दिया, फसल पौधों के जीन में हेरफेर की वकालत की और कृषि विश्वविद्यालयों में जैव रसायन विषयों को बढ़ावा देने की आवश्यकता बताई।
गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.एस. दुबे ने बायोएथेनॉल उत्पादन में नए शोध पर चर्चा की और बीटी कपास जैसे तनाव-प्रतिरोधी पौधों को विकसित करने के लिए आनुवंशिक इंजीनियरिंग के महत्व पर जोर दिया, जो बढ़ती, भूखी आबादी की चुनौतियों का समाधान करने में महत्वपूर्ण है।
प्रो. एके सिंह, सीएसएयू कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति ने कहा कि फसल उत्पादकता बढ़ाना, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना और मानव और पशु स्वास्थ्य की रक्षा करना देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने विज्ञान, कृषि और वनस्पति विज्ञान के मिश्रण पर प्रकाश डालते हुए सम्मेलन के बहु-विषयक दृष्टिकोण की सराहना की।
उन्होंने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय बहुविषयक दृष्टिकोण पर जोर देते हुए नई शिक्षा नीति 2020 लागू कर रहा है। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य छात्रों को अनुसंधान क्षेत्र में शीघ्र लाभ प्रदान करना है। डॉ. संजय कुमार ने कृषि विज्ञान में स्टार्टअप पर अंत: विषय अनुसंधान और पहल पर जोर दिया। उन्होंने उत्तर भारत में दालचीनी की खेती के विस्तार पर भी चर्चा की, जो परंपरागत रूप से दक्षिण भारत तक ही सीमित थी, और पूरे देश में हींग की व्यापक खेती होगी।
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