प्रयागराज: ग्राम पुलिसकर्मी और होमगार्ड के पद समान नहीं

प्रयागराज: ग्राम पुलिसकर्मी और होमगार्ड के पद समान नहीं

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्राम पुलिसकर्मियों के विनियमितिकरण के मामले में सैकड़ों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए कहा कि ग्राम पुलिसकर्मी नियमित प्रतिष्ठान और होमगार्ड में काम करने वाले पुलिसकर्मियों के बराबर नहीं हैं और इसलिए वे नियमित पुलिस बल में काम करने वाले पुलिसकर्मियों को दिए जाने वाले मूल वेतन के हकदार नहीं हैं।
 
ग्राम पुलिसकर्मियों के पारिश्रमिक को न्याय के सिद्धांत पर परखते हुए कोर्ट ने माना कि यह वेतन कम हो सकता है, लेकिन उनके कार्य को देखते हुए यह मनमाना या अनुचित या भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि वेतन में संशोधन करने या बेहतर कार्य स्थितियों को प्रदान करने के लिए सरकार को निर्देश जारी करना न्यायालय का कार्य नहीं है। ये अनिवार्य रूप से वित्तीय और नीतिगत मामले हैं, जो कार्यकारी क्षेत्राधिकार में आते हैं । अतः कोर्ट ने याचियों को कोई राहत दिए बिना याचिका का निस्तारण करते हुए राज्य को निर्देश दिया कि वह ग्राम पुलिसकर्मियों के पद को भविष्य में प्रभावी और जीवंत बनाने के लिए एक कानून बनाने पर विचार करें। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर की एकलपीठ ने लवकुश तिवारी और 1486 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया।
 
मामले के अनुसार ग्राम पुलिसकर्मी, चौकीदार या ग्राम प्रहरी के पद पर तैनात हैं। उन्हें उत्तर-पश्चिमी प्रांत ग्राम और सड़क पुलिस अधिनियम, 1873 के तहत नियुक्त किया गया था, जिसे निरसन और संशोधन (द्वितीय) अधिनियम, 2017 द्वारा निरस्त कर दिया गया था। ये ग्राम पुलिसकर्मी ब्रिटिश काल में दूरदराज के गांवों में तैनात पुलिस बल का एक विस्तारित नेटवर्क हैं। समय बीतने और व्यवस्थाओं के विकास के साथ पद अल्पविकसित हो गए हैं, लेकिन ऐसे पदों पर अभी भी कर्तव्य निभाए जा रहे हैं। चूंकि याची दशकों से काम कर रहे थे, इसलिए उन्होंने यूपी राज्य में नियमित प्रतिष्ठानों में तैनात पुलिसकर्मियों के समान न्यूनतम वेतन पाने का अधिकार मांगा।
 
याचियों का तर्क
याचियों का तर्क है कि उन्हें 2500 रुपए का मानदेय मिल रहा है और वे अवध कानून अधिनियम, 1876 के अध्याय IV की धारा 29 से 38 और उत्तर प्रदेश पुलिस विनियमन के अध्याय IX के पैराग्राफ 89 से 92 के तहत कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। विनियमन के तहत याचियों को पुलिस बल के सहयोगी के रूप में माना जाता है और वे विनियमन के तहत दंड के भी पात्र हैं, फिर भी राज्य उन्हें उचित वेतन न देकर उनका शोषण कर रहा है। यह तर्क दिया गया कि राज्य बेगार ले रहा है जो संविधान के अनुच्छेद 23 के तहत निषिद्ध है। 
 
कोर्ट ने यूपी पुलिस विनियमन के कुछ पैराग्राफ में वर्णित ग्राम चौकीदारों के कर्तव्यों पर विचार करते हुए पाया कि ग्राम चौकीदार पुलिस के अंतर्गत नहीं आते हैं। पूर्णकालिक रोजगार की सबसे ज़रूरी शर्त यह है कि कर्मचारी को पूरे साल अपने कर्तव्यों का पालन करना होता है। यह कर्मचारी को वैकल्पिक व्यवसाय करने की आज़ादी नहीं देता, जैसे एक पंजीकृत पुलिसकर्मी के लिए कोई और व्यवसाय करना एक कदाचार है, लेकिन ग्राम पुलिसकर्मियों के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है। अंत में कोर्ट ने ग्राम पुलिसकर्मियों और होमगार्ड के पद को समान न मानते हुए याचियों को होमगार्ड वेलफेयर एसोसिएशन बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लाभ देने से इनकार कर दिया।
 

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‘तरुणमित्र’ श्रम ही आधार, सिर्फ खबरों से सरोकार। के तर्ज पर प्रकाशित होने वाला ऐसा समचाार पत्र है जो वर्ष 1978 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जैसे सुविधाविहीन शहर से स्व0 समूह सम्पादक कैलाशनाथ के श्रम के बदौलत प्रकाशित होकर आज पांच प्रदेश (उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तराखण्ड) तक अपनी पहुंच बना चुका है। 

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